ये विकास है या विनाश है
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समझ आता नहीं दोस्तों
ये कौन सा मुकाम है?
यूँ जो मिल रही सुविधाएं
उनका तो निश्चित ही,निरंतर
हर पल बढ़ रहा आयाम है।
मगर जब ये गिरफ्त में लेकर
बनाती हमें अपना गुलाम हैं
तब ज्ञान होता कि सच में
हमारा कितना बुरा हाल है।
हरे-भरे दरख्त सारे कट रहे और
चारों ओर फैला टावरों का जाल है।
यूँ कम्यूनिकेशन तो हो रहा आसान
मगर दिल से बतियाने वालों का
आज हमारे पास गहरा अभाव है।
प्लास्टिक,पाॅलिथिन का कचरा
आसपास बिखरा सिरदर्द अपार है।
वहीं रेडिएशन,प्रदूषण का खतरा
सुरसा से मुँह का कर रहा विस्तार है।
दरअसल हमारे ऊंटपटांग कामों से
ये कुदरत चल रही बड़ी ही नाराज है।
कहीं सूखा तो कहीं दिख रही अतिवृष्टि
वहीं कहीं अतिसर्दी,कहीं भीषण गर्मी है।
सच अगर कहें तो ये हमारी ही अपनी
विकृत,कलुषित सोच का परिणाम है।
हवा,पानी,मौसम सब का बुरा हाल है।
अब तो धरा पर रहना ही हुआ बेहाल है।
इस पर भी अगर हम न चेते शीघ्र तो
भविष्य अवश्य ही होना तार-तार है।
सो ढूंढना तो होगा जल्द से जल्द हमें
कोई इसका सटीक समाधान है।
वरना तो विषबुझी शरशय्या पर हम
खून के ऑसू रोने को विवश हो जायेंगे।
तब आसपास कृष्ण,अर्जुन कोई न होंगे
जो अपनी युक्ति,शक्ति से हलक में अटके
प्राणों को पुचकार,दे सकेंगे हमें जीवनदान
@नलिन#तारकेश
I am an Astrologer,Amateur Singer,Poet n Writer. Interests are Spirituality, Meditation,Classical Music and Hindi Literature.
Tuesday, 3 September 2019
विकास या विनाश
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