यूँ तो तू हर जगह मौजूद रहता है।
मगर मुझे क्यों नहीं दिखाई देता है।।
कहाँ से लाऊँ तुझे देखने की नजर बता।
ये मेहरबानी भी तो तू ही अता करता है।।
कहता है तू ही कि बसता हूँ तेरे दिल में।
ढूँढने पर मगर कहाँ अब तक तू मिला है।। माँगता हूँ क्या तुझसे और तू देता है क्या। पागल बना जाने क्यों भटकाता रहा है।।
जानता है जबकि इम्तिहान से डरता हूँ मैं।
खौफ दिलाने में मगर तूझे आता मजा है।।
उस्ताद सजदा किए बैठा हूँ मैं तो कब से।
एक नजर देख तो सही तेरा जाता क्या है।।
@नलिन#उस्ताद
I am an Astrologer,Amateur Singer,Poet n Writer. Interests are Spirituality, Meditation,Classical Music and Hindi Literature.
Monday, 9 September 2019
गजल-229 यूँ तो तू हर जगह मौजूद
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