Monday, 9 September 2019

गजल-229 यूँ तो तू हर जगह मौजूद

यूँ तो तू हर जगह मौजूद रहता है।
मगर मुझे क्यों नहीं दिखाई देता है।।
कहाँ से लाऊँ तुझे देखने की नजर बता।
ये मेहरबानी भी तो तू ही अता करता है।।
कहता है तू ही कि बसता हूँ तेरे दिल में।
ढूँढने पर मगर कहाँ अब तक तू मिला है।। माँगता हूँ क्या तुझसे और तू देता है क्या। पागल बना जाने क्यों भटकाता रहा है।।
जानता है जबकि इम्तिहान से डरता हूँ मैं।
खौफ दिलाने में मगर तूझे आता मजा है।।
उस्ताद सजदा किए बैठा हूँ मैं तो कब से।
एक नजर देख तो सही तेरा जाता क्या है।।
@नलिन#उस्ताद

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