Monday, 2 September 2019

राधा-कृष्ण

श्रीकृष्ण को जबसे राधा का संग-साथ मिल गया।
प्यार का नया ही इंद्रधनुषी उसे आगार*मिल गया।।*घर
श्रीराधा जी तो हैं हमारी अति सुकोमल-कली,राजकुमारी।
मन-भ्रमर नटवर का छंछिया भर छांछ पर लट्टू हो गया।।
देवदूत,जड़-जीव सभी उत्कंठित बड़े थे महारास देखने को।
प्रीत-नगरी वृंदावन सो उनका अब नित्य ही धाम हो गया।।
भाव-विभोर हुए गंधवॆ इतना कि सब जड़ हो गए।
वहीं जड़ थे जो उनमें चेतना का नव्य संचार हो गया।।
अपेक्षा जो भी थी हमारी उससे ज्यादा ही साकार हो गई।
नीतिपूणॆ जीवन-मुक्ता का जबसे सभी को
आशीष मिल गया।।
माया जनित विकारों का समस्त अस्तित्व ही मिट गया।
दृगों में जब से युगल सरकार का अलबेला स्वरूप छा गया।।
प्रेम का अलौकिक रंग अमृत सा बनके जब यूँ छलकने लगा।
सभी रसिकों के हृदय सरोवर शतदल नलिन दिव्य खिलता गया।।
@नलिन#तारकेश

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