Tuesday, 3 September 2019

गजल225 खफा है

तू भी मुझसे लगता हो गया खफा है।
मगर बता तो सही क्या मेरी खता है।।
ये जीने वाला तेरी खातिर जी रहा है।
मगर जो मरा वो तेरे वास्ते ही मरा है।।
रखते हो जितनी बदनियति गैरों के लिए जेहन में।
ध्यान रखना उसके पास सब का लेखा-जोखा है।
जो पहेली जिंदगी की बूझ पाए तू अगर। भली है ये बहुत वरना तो बड़ा झमेला है।। चाहे तो मुगालता पाल कर देख ले तू भी।
सच तो यही कि काटना सफर अकेला है।। सब कुछ  हर बार सलीके में ही न ढूंढा कर तू।
ये जो  है बेतरतीब इसमें भी एक सलीका है।।
बूझ न पाए वो खुद ही जरा ये गौर कीजिए।
मिजाज़ ऐसा अपने उस्ताद का अनोखा है।।
@नलिन#उस्ताद

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