Sunday, 24 November 2019

गज़ल: 276 - चाहतें तुझे पाने की

चाहतें तुझे पाने की हैं मेरी समंदर की लहरों सी।
घूम-फिर के आती हैं अपनी जिद पर बच्चों सी।।
यूं समझता है तू कही-अनकही सब बातें मेरी।
मगर हरकतें हैं तेरी वही फरेबी नाजनीनों सी।।
आया तो था यहाँ तुझसे मिलूंगा बस यही सोच कर। भटकाती रही मगर जिंदगी कहाँ से कहाँ बादलों सी।।
ऑखों में धुंआ-धुंआ सा दिल में बेचैनी है बड़ी।
सुलगती रहेंगी बता कब तलक सांसें अंगारों सी।।
"उस्ताद" बस तेरी इनायतों पर चल रही है जिन्दगी।
वरना तो उम्मीदें सभी लगती यहाँ अब झूठी दलीलों सी।।
@नलिन#उस्ताद

No comments:

Post a Comment