Friday, 1 November 2019

गजल-264:चेहरे से हटा कर जुल्फें

चेहरे से हटा कर जुल्फें फिर बार-बार गिराते हैं।
अपनी अदाओं से कातिल वो तो बस जलाते हैं।।
बहुत गुरूर है अपने जिस्म की रानाई* का।*सुन्दरता 
तभी तो हुजूर हमें भाव बहुत दिखाते हैं।।
निगाहों से निगाहों का पैमाना टकरा के जो है छलका।
इल्जाम देखिए अब किस पर ख़ूबसूरती से लगाते हैं।।
मिलाते नहीं निगाह ये भी एक अजब किस्सा रहा।
गैर की पर आड़ ले अक्सर वो हमें ही सुनाते हैं।।
ठुकरा दिया अपना जिन्हें शागिर्द बनाने से। 
वही खुद को अब असल "उस्ताद" बताते हैं।।
@नलिन#उस्ताद

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