Wednesday, 6 November 2019

गजल-269:पीनी शराब

छोड़ दी मैंने शराब पीनी कसम से।
पी के निकलता झूठ नहीं कसम से।।
सच का सरेआम कत्ल हुआ है जब से।
बगैर झूठ जिंदगी न गुजरती कसम से।।
देर-सवेर जीतता था सच एक दौर पहले।
हर कदम अब झूठ की बिकवाली*कसम से।।
*मुनाफे हेतु शेयर या हिस्सेदारी बेचने की प्रक्रिया
झूठ पढ़ लो चाहे साफ-साफ आंखों में उसकी।
कहने की हकीकत ये ताब* न रही कसम से।।*हिम्मत 
झूठ भी बेच ले होशियारी से जो पूरा सफ़ेद।
है "उस्ताद" वही नामी गिरामी कसम से।।
@नलिन#उस्ताद

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