Thursday, 21 November 2019

गजल:274-कभी खिलखिलाने रोज़ पड़े

कभी खिलखिलाते रो पड़े,कभी रोते-रोते हंसने लगे। प्यार में जब से हम पड़े अजब हरकतें करने लगे।।
कुछ था नहीं जमीनी बस ख्वाब एक रूमानी रहा।
फसाने को समझ हकीकत यार हम मचलने लगे।। 
एक अजब नशा मदहोशी सी रहती है अब तो।
लोग सरेआम अब तो हमें शराबी कहने लगे।।
वो निभायेगा या साफ मुकर जाएगा वादे से अपने।
बेवजह की इस बेकली से अब तो ऊपर उठने लगे।।
प्यार किया है हमने तो निभायेगा फिर भला कौन कहो।
परवान इस तरह आजादी को बख़ूबी अपनी चढ़ाने लगे।।
प्यार हो सच्चा तो चाहता कहाँ कुछ भी महबूब से।
खुदा का शुक्रिया हम ये बारीकियां हैं समझने लगे।।
जबसे हमारे दिल में उसका दिल धड़कने लगा।
कहो अब कहाँ तन्हा उस्ताद हम रहने लगे।।
@नलिन#उस्ताद

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