Monday, 18 November 2019

272:गज़ल-आँखों में चढ़ी है

आँखों में चढ़ी है ऐसी गज़ब की खुमारी उसकी।
खुली हो,बंद हो अब तस्वीर मिटती नहीं उसकी।।
सुबह-शाम,हर घड़ी यही चाहत मुझमें है बाकी। 
सुनता रहूँ बस इनायतों की चर्चा अजूबी उसकी।।
वो मेरे आस-पास है खुद ही राज ये खोला उसने।
लो मैं भी सूंघता फिर रहा सांसे महकती उसकी।।
कदम दर कदम ठोकरें खा रहा हूँ जैसे शराबी।
अजब हाल पर मिटती नहीं दीवानगी उसकी।।
बहुत बोलता है इशारों-इशारों में वो तो हमसे हरदम।
समझ सको जो बिखरी जर्रे-जर्रे में खामोशी उसकी।। "उस्ताद"ये नशा भी अजीब है जो उतरता ही नहीं।
दिखाता है कैसे-कैसे अजब मंजर बलिहारी उसकी।।
@नलिन#उस्ताद 

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