Saturday, 31 December 2022

498:ग़ज़ल: उम्मीद ए रोशनी

तोहफा मेरे नए साल भला क्या तुझे दूँ।
सोचता हूँ एक अदद कोरी ग़ज़ल दे दूँ।।

झूमती,बलखाती,मौज-मस्ती की अदाएं भरी। 
सुहाने मुस्तकबिल कि आज मैं दुआएं तुझे दूं।।

यूँ तो यहां सब कुछ है फानी ओस की बूंद सा।
है मगर जब तक साँस चल रही तराने नये दूँ।।

सूरज,चांद,सितारे कुदरत के अनमोल नजारे।
सदा हर कदम इनको दामन में लुटा तेरे दूँ।।

जाने क्यों "उस्ताद" यहाँ हर चेहरे पर उदासी बिखरी है।
दिलों में उम्मीद ए रोशनी के चलो जला चिराग सबके दूँ।। 

नलिनतारकेश @उस्ताद 

Thursday, 29 December 2022

497: ग़ज़ल: क्या क्या कहें

बरगलाता तो बहुत है कबूल करने से पहले प्यार तेरा। चाहता है वो दरअसल बनकर बस तू रहे सदा उसका।।

यूँ ही नहीं मोहब्बत अपनी लुटाता है किसी पर।
इत्मीनान से पहले ठोक-बजा के तौलता है पूरा।।

पत्थर नहीं वो तो है असल में दरियादिल बहुत बड़ा। 
पकड़ ले जो हाथ एक बार तो फिर कभी न छोड़ता।।

ये दुनियावी रंगीन हकीकतें तो महज कोरा ख्वाब हैं। 
जो समझो तो कायनात ये सारी तिलिस्म है उसका।।

क्या-क्या कहें,क्या-क्या लिखें और कब तक भला।
ये फन भी तो हमें सारा "उस्ताद" वही अता करता।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Wednesday, 28 December 2022

496: ग़ज़ल: पेंचोखम बड़े हैं

तेरी ये जुल्फें सुलझाने में पेंचोखम बड़े हैं।
मगर देख जिद पर हम भी अपनी अड़े हैं।।

माना डगर कठिन है बड़ी कूचे की तेरे यारब।
कलेजा हाथ लिए चौखट पर सजदा किए हैं।।

जाने कितनी सदियां बीत गई तलाश में भटकते।
हौसला बदलने को मुस्तकबिल अभी भी डटे हैं।।

हर तरफ अन्धेरा गजब का डसने को बेचैन है।
परवाह से बेफिक्र हम तो बेखौफ बढ़ते रहे हैं।।

मौज लेता है क्यों हम जैसे नादानों से भी "उस्ताद"।
पर चल देख ले तू भी तलबगार भला कहाँ डरते हैं।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Tuesday, 27 December 2022

495:ग़ज़ल:छत पर चौपाल

किस मोल है गुलशन में गुलों का खिलखिलाना।
ये पता चला जब घर हमने अपना सजाना चाहा।।

यूँ सच कहें तो हमसे ज्यादा जज़्बाती हैं ये बेज़ुबान।
दोस्ती की कदर इनको ही आता है असल निभाना।।

हवाएँ करती हैं मुखबिरी तो करने दो यार उनको।
खुली किताब रहा है बेदाग सदा किरदार हमारा।।

शाम हो गई अब तो चलो घर चलें अपने-अपने।
लिखेंगे नयी ग़ज़ल कल तब तुम हमको सुनाना।।

छत की धूप में है अब तो चौपाल रोज ही जमती।
"उस्ताद" हमें आता है सर्दियों का लुत्फ उठाना।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

Monday, 26 December 2022

494:ग़ज़ल:दुनिया के मसाइल से हटकर

जिंदगी को अपनी पूरे सुकूं से गुजारिए हुजूर।
दिमाग बस मतलब भर का ही लगाइए हुजूर।।

रंजो-गम है यहाँ हम सब के पास नसीब के।
कुछ देना ही चाहें तो खुशियां बांटिए हुजूर।।

बढ़ा तो रहे हैं कुछ कदम हम तेरे कूचे की तरफ। 
कुछ आप भी तो इनायत हम पर कीजिए हुजूर।।

हवा में कलाबाजी खाते परिंदे बेखौफ,बेफिक्र दिखते। 
कभी यूँ आप भी जरा अपना हौसला दिखाइए हुजूर।। 

कौन है वो जो चलाता है "उस्ताद" सारी कायनात को। दुनिया के मसाइल से हटकर कभी ये भी सोचिए हुजूर।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Thursday, 22 December 2022

493:ग़ज़ल: खौफ न खाओगे

हर इंच पैमाइश पर क्या रिश्तो की नींव डालोगे। 
खुदा कसम  ऐसे तो कहाँ तुम साथ निभा पाओगे।।

समझौते इसलिए नहीं कि तुम कमतर हो या कभी हम। तराजू के दोनों पलड़े हर तौल बाद बराबर तो लाओगे?।।

हर बात मुकाबला ये सिफ़त तो ठीक नहीं यारब।
ऐसे तो तुम हर बार गांठ और भी बढ़ाते जाओगे।।

बाल की खाल निकालने में भला जोर क्यों है तुम्हारा।
अभी का होश है नहीं आने वाला कल क्या संवारोगे।। 

"उस्ताद" हर शै तुम्हारी गुलाम नहीं इतना जान लो।
अब सच कहो क्या खुदा से भी तुम न खौफ खाओगे।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Wednesday, 21 December 2022

492:ग़ज़ल:चहकते मिलो

जब भी मिलो तुम किसी से तो चहकते मिलो।
गम अपने सारे तब जमींदोज कर लिया करो।।

अजब है हर बात गुणा-भाग में ही मशगूल दिखे।
दरिया ए जिन्दगी में बेवजह पत्थर मारते हो क्यों।।

नब्ज थाम कर जो दिलों का हाल बयां कर सके।
चारागर* अब भला मिलते कहाँ जरा तुम ही कहो।।*डाक्टर 

लोग गुजर जाते हैं खबर मगर अब होती ही नहीं।
नए जमाने में ये किस तरह के रिश्ते निभा रहे हो।।

धूप सेकने को गलीचा तो सबकी खातिर बिछा लिया।
दूर के कहाँ आयें जब जुटा नहीं पाते घर के लोगों को।।

ये सच तो है हम सभी अपने-अपने दर्द से बेहाल हैं।
खुदा की खातिर मगर दूसरों के भी मरहम लगाओ।।

बुझ गया एक दीप* जो रोशन करता था दिले-आंगन।
चलो "उस्ताद" चौखट पर जरा सजदा तो कर आओ।।
*डाक्टर दीप

नलिनतारकेश @उस्ताद

Tuesday, 20 December 2022

491: ग़ज़ल:

बगैर तल्खी साफगोई से करनी हर बात अच्छी है।
कम से कम शीशे सी आर-पार साफ तो रहती है।। 

कौन किसको समझाएगा भला इस नए जमाने में। 
दलीलें जब बच्चे की बड़े-बड़ों के कान काटती है।।

मौसम में ठिठुरन तो थी अब कोहरा भी देख बढ़ने लगा।
जाम खाली भर दे जरा ए साकी ये तबीयत बिगड़ती है।।

हर झोंके से हो बेखौफ हवा में परिंदे उड़ते दिख रहे।
हमारी तो बस दो कदम चढ़ने पर ही सांस फूलती है।।

बेवजह अक्सर बदनाम किए जाते हैं "उस्ताद" सभी।
बगैर देखे अपना-पराया कलम जो इनकी चलती है।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Sunday, 18 December 2022

490: ग़ज़ल: मौज बनी रहती है

नये जमाने की हवा बहुत शातिर हो चली है।
ले अपनी गिरफ्त में हम सबको डुबो रही है।। 

मेकअप किए सारे सामान बिक रहे अब तो बाजार में।
कहाँ बात असली-नकली की समझ हमें आ सकी है।।

कभी तो अपने हाथों को भी जुंबिश दे दिया कीजिए।
रोज थाली सजी-सजाई  दस्तरख्वान मिलती नहीं है।।

दो कदम गुनगुनाते खिरामां-ख़िरामां भी चलिए हुजूर।
देखिए तो कुदरत भी किस कदर ख़ैर-म़क्दम* करती है।।*स्वागत 

अता की है बस इसलिए थोड़ी-बहुत इल्म की खुरचन।
उंगलियाँ उठें तो मौज उसकी "उस्ताद" बनी रहती है।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

Saturday, 17 December 2022

489: ग़ज़ल:अपने ही अशआर याद नहीं रहते

अरमानों के सूखे पत्ते ही रह गए हम तो ता-उम्र झाड़ते।
दिले-आंगन में फल तो गिरे नहीं दरख़्त से यार अपने।।

हमारे ही करम से बनेंगी-बिगड़ेंगी लकीरें ये हाथ की। कल जो बोई थी फसल आज वही तो हम हैं काटते।।

कौन कितने पानी में है सारे कच्चा-चिट्ठे पता हैं यारब। हौंसला ये अलग है कि तो भी हम अंजान हैं बने रहते।। 

जमीन पर अच्छे से चलने का थोड़ा हुनर भी सिखाइए। चांद सितारे तो छू ही लेंगे काबिल जो है आज के बच्चे।। 

लिखाता है वो हाथ पकड़ जब चाहे गाहे-बगाहे हमसे। "उस्ताद" तभी तो ये अशआर कमबख्त याद नहीं रहते।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Friday, 16 December 2022

488: ग़ज़ल:आस्तीन से उतार फेंकिए

जमाने की तेजी से बदल रही है रफ्तार जनाब जानिए। बाबा आदम की सोच से निकल भी अब आप आइए।। 

जिसको आपने रोशनी का मसीहा,आफताब समझा। जलाकर वो राख कर गया आशियां एक घड़ी देखिए।।

दरिंदगी,वहशीपन का कितना जहर भरा है दिमाग में।
जरा घर की चौहद्दी से कभी बाहर निकलकर बूझिए।। 

शुतुरमुर्ग की तरह रेत पर सर छुपाने से हल मिलता नहीं। 
गंधारी आंखों में श्रद्धा की पट्टी चढ़ाना अब तो छोड़िए।। 

बहुत हो चुकी गंगा-जमुनाई तहजीब की रटी-रटाई बातें। "उस्ताद" जी दो मुंहे साँपों को आस्तीन से उतार फेंकिए।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Thursday, 15 December 2022

487:ग़ज़ल: उम्मीद खिलने लगी है

कुछ भी कहो फिजा तो बदलने लगी है।
धुंध जो छाई थी चौतरफा छंटने लगी है।।

हर तरफ छाया था घना अंधेरा जो एक दौर से।
कम से कम अब रोशनी दस्तक तो देने लगी है।।

निजाम ए तख्त जब से बदला है कसम से।
सुदूर मैली कुचली बस्ती भी संवरने लगी है।।

ऐसा नहीं है कि दूध के धुले ही हैं यहाँ सब कोई।
मगर जो थी कभी अन्धेरगर्दी वो मिटने लगी है।।

लब खिलेंगे "नलिन" से सबके,गंगा मोहब्बत की बह कर रहेगी।
कहीं न कहीं पुरजोर उम्मीद,दिलों में "उस्ताद" ये खिलने लगी है।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Wednesday, 14 December 2022

486: ग़ज़ल- जन्नत भी जाना है

हर रंग  जिंदगी का ग़ज़ल में हमने अपनी ढाला है।
जिया नहीं चाहे खुद से पर यकीं सबको दिलाया है।।

तूफ़ान हो,बारिश हो या बर्फबारी हो तो भी हर हाल।
हौंसला हमारे जवानों ने हर वक्त बखूबी दिखाया है।।

अमावस की रात में बन कर पूनम तुम जो मुस्कुरा दिए।
चांद के जज्बात को तुमने क्या खूब और भी उभारा है।।

रोशनी के फव्वारे दामन में हैं अपने अक्सर सुना तो है।
हाथ में कोहिनूर बमुश्किल ये कभी किसी के आया है।।

गुस्ताखियां ए ग़ज़ल-गो हद से गुजर न जाएं तू देखना। अभी "उस्ताद" को ख्वाबों में ही सही जन्नत भी जाना है।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Tuesday, 13 December 2022

485:ग़ज़ल: फासले मिटते नहीं

मैले दामन को कभी वो अपने देखते नहीं। 
यूँ सिखाने में शउर गैरों को हिचकते नहीं।।

तेरी जुल्फ में गुल सजाने की ख्वाहिश तो थी ए ज़िन्दगी। जो मुकद्दर के सिकंदर होते यारब तो हम भी चूकते नहीं।

शतरंज की बिसात पर भला कौन राजा,वजीर,प्यादा। कठपुतलियों सी नचाती उंगलियों से कोई बचते नहीं।। 

बहुत लंबा सफर है और कहो तो है बहुत छोटा भी।
वक्त की पैमाइश के हमें सबब याद सारे रहते नहीं।।

जिंदगी के एक  छोर पर तू और दूसरी तरफ हम खड़े हैं। तुझसे आंख चार कर के भी "उस्ताद" फासले मिटते नहीं।

नलिनतारकेश @उस्ताद 

Monday, 12 December 2022

484: ग़ज़ल लब खोलें तो मुश्किल

दर्द को चुपचाप सहने से मसला कोई सुलझता नहीं।
दर्द तो दर्द है यार ये जमाने से कभी भी छुपता नहीं।।

नए जमाने का आफताब* अब तो शर्मोगैरत में डूबो रहा है।*सूर्य 
सफर को अकीदत* के हमारे तार-तार करने से बाज आता नहीं।।*श्रद्धा

ये किन चांद-तारों पर जा झंडे गाड़ने की बात कर रहे हो तुम।
अपनी जमीं के मसाइलों* का ही हमसे जब हल निकलता नहीं।*मुश्किलें

कहाँ तो मुतमईन* था जमाना की जमाने की फिजा बदलेगी।*निश्चिन्त 
मगर यहाँ तो दूर-दूर तक बदलता मुस्तकबिल* दिखता नहीं।।* भविष्य 

जख्म जब अपने ही दें तो कोई क्या करें "उस्ताद" कहो तुम।
लब खोलें तो मुश्किल और सिलें तो चैन जरा भी मिलता नहीं।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Friday, 9 December 2022

ग़ज़ल 483: नए जमाने का इश्क

दिल की किताब अब चेहरे से पढ़ी जाती नहीं है।
उम्र गुजर जाए तहे जिल्द उसमें इतनी चढ़ी है।।

हर टूटते दिल की आवाज में अजब खामोशी मढी है।
कम कहने को कानों में देखो सबके सांकल* लगी है।।*चिटकनी 

दर्द निगाहों से बहना भी चाहे तो भला बहे कैसे।
आंखों से कजरे की चमक जो धुल के मिटती है।।

सुनहरे ख्वाबों की तामील को जमीं तो पुख्ता चाहिए।
वर्ना बिना रगड़े कहाँ हिना भी खिलखिला सकती है।।

नए जमाने का इश्क "उस्ताद" हमारे पल्ले तो पड़ता नहीं। प्यार की एक पेंग भरने से पहले जिसकी डोर चिटकती है।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Thursday, 1 December 2022

482:ग़ज़ल हमें क्या हम तो

जो हुआ सो हुआ चलो सब कुछ भूल जाएं।
गुलशन में फिर से बहारों के नए गीत गाएं।।

मौसम ए मिजाज तो है बदलना,कभी गरम कभी ठंडा।   

हालात हो बदतर तो भी हौंसला भला क्योंकर गवाएं।। 

इश्क है आसां नहीं निभाना गालिब भी जब कह गए।
 आओ पतंगा बन उम्मीद ए रोशनी में चलकर नहाएं।।

किस्मत की लकीरें जो लिखना चाहें हर कदम वो लिखें।
हमें क्या हम तो तूफानों को बस जा गले अपने लगाएं।।

दिल तो नाजुक से है टूटता है कई बार हालात बिगड़ने से। 
"उस्ताद" ए फन तो यही है हम हर बार मुस्कुराते नजर आएं।।

Monday, 14 November 2022

481:ग़ज़ल =बचपन की बात

जाने क्यों भला इस जमाने ने मुझे बुड्ढा कहा।
दामन जो झांका खुद के तो एक बच्चा मिला।। 

शोख,मासूम अपनी ही दुनिया में अलमस्त रोता,हंसता। मुझे तो बच्चों का किरदार अलहदा एक नियामत लगा।।

ख्वाबों में रंग इंद्रधनुषी भरने का जब तलक जज्बा रहा। हर उस सुख़नफ़हम* शख्स में सभी को बच्चा ही दिखा।।*ज्ञानी

चांद को पकड़ने की जिद पर मचलता जिसका बचपन। अल्हड़ मिजाज वो मिट्टी में मौज से लोटता-पोटता रहा।।

उम्र महज एक सोच है चाहो तो गुणा-भाग करते रहो।
चंगुल से इसके यूॅ तो बस एक "उस्ताद" ही निकला।।

नलिनताकेश@उस्ताद

Sunday, 13 November 2022

480:ग़ज़ल =तेरी जुल्फें मुझसे

तेरी काली घनी जुल्फें मुझसे सुलझती नहीं ए जिंदगी। 
जितनी करता हूँ कोशिश और-और हैं जाती उलझती।।

चुल्लू से अपने छोटे पी लूं समंदर को भला कैसे बता। 
प्यास ऐसी लगी कमबख्त बुझने का नाम लेती नहीं।।

दो कदम चलने पर ही हांफने लगता हूँ अब तो मैं।
तू है कि हर कदम बढ़ाने में लगा है मंजिल से दूरी।।

सलीका प्यार में तुझे इम्तहान लेने का नहीं आता।
हर घड़ी तुझे तो सूझती है अजब-गजब मसखरी।।

क्या करें "उस्ताद" जिद पर हम भी अड़े हैं कुछ भी हो।
यकीं तो है पूरा तू भर देगा कभी न कभी अपनी झोली।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Saturday, 12 November 2022

ग़ज़ल:479= बंजर जमीन पर

ग़ज़ल:479

झूठ एक बार गैरों से फिर भी यारब चल जायेगा। 
हर लफ्ज़ मगर खुद से झूठ का हिसाब मांगेगा।।

कोई नहीं बनाता यहाँ पर मुस्तकबिल किसी का।
तराशोगे खुद को तो नूर तेरा भी निखर आयेगा।।

जरा दिल लगाकर चप्पू तूफ़ां में तुम चलाते रहो।
ये बुलंदियों का आकाश कदमों में सजदा करेगा।।

कोई भी नहीं है यूँ तो हकीकत यहाँ अपना कहो तो।
जो देखो सभी मैं उसी को वो ही अपना कहलायेगा।।

ख्वाबों की फसल लहलहाती है तब जा कर हथेली में यारा।
बंजर जमीं हल चलाने का हौंसला "उस्ताद" जो दिखलायेगा।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Friday, 11 November 2022

ग़ज़ल 478:लबे जाम का हाथ से फिसल जाना

ग़ज़ल:478
लबे जाम का यूँ हाथ से फिसल जाना।
मुश्किल है बड़ा यार तुझे भूला पाना।।

जो भी कोई बीमार तेरी वजह से शहर में।
हर शख्स वो तो चारागर* खुद को बताता।।*डाक्टर 

जिगर चाहिए बड़ा तभी मुमकिन होगा।
रकीबों के ईमान को सर-माथे लगाना।।

किस-किस का अन्दाजे बयां हम लिखें कहो।
ता-उम्र से रहा है हरेक तेरे हुस्न का परवाना।।

शोहरत,दौलत की है किसे परवाह "उस्ताद" जी।   
जब दस्ते-पाक से मिल रहा हो नायाब खजाना।। 
           
नलिनतारकेश @उस्ताद      

Thursday, 10 November 2022

ग़ज़ल:477=इल्जाम मढ़ें किसपे

ऐशोआराम को बाहों में भर लिया जबसे हमने।
चुम्बनों से कसम से लहूलुहान कर दिया उसने।।

कहते तो क्या कहते लब सिल गए थे हमारे।
बड़े अदब से जब इकराम किया था सबने।।

ठोक-बजाकर चाहे जितना परख लो किसी शय को।
मौज लेने पर ही आए अगर खुदा तो कोई  क्या करे।।

निमुजी* ही जो होने लगे दुनियावी मसाइल**से हमें।*उच्चाटन  ** दिक्कतों से
रो,हंस,खीझ कर कब तलक यहाँ दिल बहलाइये।।

मुरझाए गुलाब की पंखुड़ियां भी सहेज रखी हैं। 
तेरे प्यार की बात जमाने को दिखाने के लिये।।

तेरे शहर की हर गली "उस्ताद" पहचानने लगी है। 
जो तू ही कन्नी काटे,बता फिर इल्जाम मढ़ें किसपे।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Wednesday, 9 November 2022

ग़ज़ल 476: फकत चलते जाना है

सच-सच कहूं उसने ये हर बार चाहा है।
मगर जब भी कहो वो तो रूठ जाता है।।

फसक* मारने का शौक उसका पुराना है।*गप्प 
हकीकत से तभी दूर उसका आशियाना है।।

चाय के तलबगार को क्या लेना मयखानों से।
हर घूंट में दिखे जब उसकी झूमता जमाना है।।

पूनम के चांद से इश्क तुम बड़े एहतियातन करना।
नाज़ो अंदाज से देना उसे झटके बखूबी आता है।।

वक्त का क्या है वो तो हर घड़ी करवट बदलेगा ही। आफताब*,चांद-सितारे तो महज उसका इशारा है।।*सूर्य 

'उस्ताद" तुम भी कहां चकल्लस में लगे हो कहो तो। 
हवा के झोंकों से उलट तुम्हें तो फकत चलते जाना है।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Friday, 4 November 2022

475: ग़ज़ल:-चिंगारी को एक अदद

देवोत्थानी एकादशी की सबको बहुत बधाई 
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चिंगारी को एक अदद झौंके की तलाश जारी है।
लौ लगनी तेरे दीदार की अभी भी यार बाकी है।।

रूह तो सिसकियां भर के जार-जार रो रही है।
मांग भर सकूंगा कभी इसकी ये उम्मीद पूरी है।।

जन्मों से कस्तूरी की दौड़ में बस भटकता ही रहा हूँ।
शुक्र है पता तो चला वो कहीं अपने भीतर ही रही है।।

ख्वाहिशों के जंगल में ख्वाब कब तलक बटोरें कहो तो। हकीकत में जन्नत की राह इतनी आसान होती नहीं है।।

बस एक बार दामन तेरा मिल जाए सर छुपाने को।
ये दिले अरदास अभी कसम से "उस्ताद" अधूरी है।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Wednesday, 2 November 2022

ग़ज़ल:474=गम ये अपना बिसार लूँगा

सोचा था तेरी जुल्फों की छांव में,उम्र गुजार लूँगा। 
इस तरह रूठी हुई तकदीर को,अपनी संवार लूँगा।।

सोचने से मगर,होता है कहाँ कुछ भी यहाँ यारब।
चलो देर ही सही,चढ़ी हुई खुमारी भी उतार लूँगा।।

रास्ते हो जाएं जुदा?जब एक मोड़ पर पहुंचकर।
चाहते न चाहते,बेमन तेरी,जुदाई स्वीकार लूँगा।।

तूफान आता तो है,जिंदगी में हरेक की एक बार।
चलो तिनके-तिनके घौंसले के,मैं भी बुहार लूँगा।।

हर फैसला,फैसला है गलत सही कुछ भी,मान के चलो।
"उस्ताद" बमुश्किल ही सही,गम ये अपना बिसार लूँगा।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

ग़ज़ल :473 आओ तो सही

फुर्सत निकालकर थोड़ी कभी आओ तो सही।
पहलू में हमारे आकर बेवजह ही बैठो तो सही।।

वक्त का क्या,वो तो बहता ही चला जायेगा यूँ ही।
निगाहों के जरा दो अपने जाम टकराओ तो सही।।

वो देखो दूर कहीं उम्मीद ए रोशनी टिमटिमा रही है।
बुझ न जाए वो कहीं आकर उसे जलाओ तो सही।।

हालात के थपेड़ों से डरते रहोगे तो भला कैसे चलेगा। 
मंझधार में दिल लगा पुरजोर चप्पू चलाओ तो सही।।

रंगे मस्ती बसती तो है दिल में हर किसी के "उस्ताद"।
नजरों में काजल,शादाब ए उल्फ़त का लगाओ तो सही।।

शादाब:हरा-भरा/प्रफुल्लित 

नलिनतारकेश @उस्ताद

Monday, 31 October 2022

ग़ज़ल:472 --- तेरे हुस्न की

तेरे हुस्न की तारीफ मैं करूं तो कैसे करूं।
पलकें झपकें जो अगर तभी तो कुछ कहूं।।

ये निगाहों की मस्ती डुबो देती है सर से पांव तक।
होश रहे यारब तब तो कलाम अपना लिख सकूं।।

रूप,रंग,अदा सभी तो है बांकी तेरी कसम से।
तू ही बता किस-किस को याद करूं किसे भूलूं।। 

देखा है जबसे बन गए हैं आशिक तेरे हम तो दिल से।
तू कबूले नहीं अगर तो बता कहाँ जाकर भला रोऊं।।

देर है तो देर ही सही हम तो अड़े बैठे हैं दर पर तेरे।
तू ठोक-बजा इत्मीनान से परख क्या "उस्ताद" हूं।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Sunday, 30 October 2022

ग़ज़ल 471: हुआ क्या?

दो और दो का जोड़ पढ़कर भी यारा हुआ क्या?
सफर इससे जिंदगी का कहो आसां हुआ क्या?

दावे तो बहुत गजब के सफेदपोशों ने अक्सर किए। 
असल थोड़ा-बहुत भी रंग बेहतर हमारा हुआ क्या? 

तुमसे किसने कहा था नजदीक हमारे आने को इतना।
आग और पानी का कभी संग साथ चलना हुआ क्या? 

होठों पर हंसी दिल में जख्म लिए चलते रहे ताउम्र हम।कभी इस बात का गुमान भी किसी को जरा  हुआ क्या? 

लिखे भला क्यों रूहानी नूर पर "उस्ताद" कलाम अपना। सूरज को चिराग दिखाने से मकसद हल भला हुआ क्या?

नलिनतारकेश @उस्ताद

Sunday, 23 October 2022

दीपावली की बधाई

दीपावली की सभी को बहुत बहुत बधाई 
卐卐卐卐卐卐ॐ卐卐卐卐卐卐卐

प्रकाश पर्व करे दूर जीवन से,अमावस के घोर-घने अंधेरे।
जगमग दीप ज्योत्सना नित्य बिखेरे,उर में उजाले अपने।।

आशा-विश्वास,उमंग कि हर श्वास बहती पुनीत त्रिवेणी रहे। 
हों निर्मल,सहज-सरल,जिसमें मन-प्राण लगा डुबकी हमारे।। 

विनय,विवेक युक्त श्री गणेश मन-मस्तिष्क की लगाम रहें थामें। 
श्री लक्ष्मी उल्लासित हो फिर क्यों न त्वरित वेग घर-द्वार पधारें।
 
दिन में होली,रात दिवाली यूँ हंसते-गाते बीते जीवन हम सबके। 
झूले में परस्पर अनुराग,प्रेम के आओ हम सब मिलकर झूलें।।

मनो-मालिन्य,कटुता,राग-द्वेष के द्वन्द्व-फंद अब सब छोड़ें। 
गले लगा कर एक दूजे को,मानव-जन्म ये सफल बना लें।।

नलिनतारकेश

Wednesday, 19 October 2022

ग़ज़ल:470

ग़ज़ल 470:
==##/==##

दिलो-दिमाग के जंग लगे दरीचे खुलवा ले। 
किताबों,रिसालों से अपना रिश्ता बना ले।।

काम आएगी ना ये धन-दौलत हर वक्त तेरे।
इस जिंदगी को यार जरा नेकी से जिला ले।।

पेंचोखम बड़े हैं सफर के हर कदम में।
थोड़ा ठहर के कभी नाम खुदा का ले।।

पहले ही कम ज़हर खुला है फिजाओं में।
आ अब तो जरा मोहब्बत का गीत गा ले।।

"उस्ताद" बन्दगी की ताकत तुझे पता ही नहीं।
चाहे तो एक पल में सबको नूर उसका दिखा ले।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

Monday, 17 October 2022

469:ग़ज़ल

नजरें उनसे क्या मिलीं,नसीब अपने संवरने लगे।
चले फिर जिस राह हम,शोख गुल महकने लगे।।

चले जो हाथों में हाथ लिए,मील के पत्थर छूटने पीछे लगे। 
वजूद अपने अलग जो थे जाने कब,खुशगवार होने लगे।।

एक दौर था जमाने को जब,ऐतराज़ खूब रहा यारी पर हमारी।
मगर धीरे-धीरे मोहब्बत में हमारी पत्थर-दिल भी पिघलने लगे।।

सजाया आशियाना तिनके जुटा,गहरे तूफानों में हमने कैसे।
देख हौसला ए हुनर हमारा,सब दांतो तले उंगलियां दबाने लगे।। 

अपराजिता तूली ने भरे,अनिर्वाण रंग नम्रता से घोलकर। ललिता श्रीमुख से दिव्य स्वर,अलख निरंजन गूंजने लगे।।

उमर अस्सी-पिच्चहतर,साथ साढे चार दशकों का शबाब यूँ चढ़ा।
कभी नोक-झोंक,कभी हंसी-ठठ्ठा तो "उस्ताद" कभी तौबा- तौबा करने लगे।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Sunday, 9 October 2022

कविता बरसात की

बिजली की कड़क थाप पर राग मेघ बजने लगे। 
कार्तिक आश्विन तो सावन भादो से बरसने लगे।।

किसका दशहरा रावण वध की तो जरूरत ही ना रही।
आत्मग्लानि से गलित हो दशशीश स्वयं बिखरने लगे।।

दीपावली पर इस बार अतिथि कक्ष नूतन सिंगार दिखा। कुर्ते पाजामे तौलिए सब वहीं जब सोफे पर सूखने लगे।।

शरद पूर्णिमा की रात अमृत रस बरसता प्रत्यक्ष दिखा।पटाखे आसमां में लीजिए अभी से पुरजोर बजने लगे।।

"उस्ताद" अभी क्या है अभी तो बस ट्रेलर दिखाया जा रहा। 
होगा अंजाम बुरा जो यूं ही कुदरत से छेड़छाड़ करने लगे।।

नलिनतारकेश "उस्ताद"

कविता

कितनी-कितनी अभिलाषाओं को,नित्य सींचते रहते हम।लेकिन जो एक भी पूरी न हो,बस अश्रु बहाते रहते हम।।

जीवन है यह क्षणभंगुर,प्रवचन सबको सदा ही देते हम। लेकिन धन-दौलत,सुख-सुविधाएं,नित्य जोड़ते रहते हम।

वेद,पुराण कंठस्थ सभी,सबको यह जतलाते रहते हम।
लेकिन वाणी से सदा ही अपनी,गरल टपकाते रहते हम।।

प्रभु ने भेजा था सेवा को हमको,उसको भुला बैठे हम। लेकिन उदर भरा रहे बस,सदा इसी प्रयत्न में रहते हम।।

नलिनतारकेश

Thursday, 29 September 2022

गीत: कैसा है?

भला कहो तुम  कैसा है?
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गले लगाना गैरों को,ये काम तो बड़ा ही अच्छा है। 
मगर भुलाना अपनों को,भला कहो तुम कैसा है।। 

सांस-सांस,जब हो बाट जोहती,सदा तुम्हारी।
सोचो जरा तुम हमको,फिर तरसाना कैसा है।।

धन,वैभव,रूप,यश,नाम पताका फहराती रहे यूँ ही।
लेकिन जाना हो जो खाली हाथ,तो इतराना कैसा है।।

शाश्वत सच यही है प्यारे,हर क्षण को बदलते रहना है।
ऐसे में जो आए दु:ख,तकलीफ तो फिर रोना कैसा है।।

यूँ  तो है संसार उसी का,पर मैं भी तो सदा से उसका हूँ। 
बात सरल जो समझ न आए,तो आत्मसमर्पण कैसा है।।

नलिनतारकेश

Monday, 26 September 2022

नवरात्र गीत

नवरात्र गीत -या देवी सर्वभुतेषू
卐卐卐卐ॐ卐卐卐卐卐

मैं लिखूं गीत तुम उसे सुरों में ढालकर,मोहक सजा दो।
गीत,सुरों पर फिर कोई उसे आवाज दे,गाकर सुना दो।
तालवाद्य विविध बजा फिर,जरा चार चांद उसमें लगा दो।
शिल्प-कला,नृत्य-मुद्रा और चित्र,तूलिका से भी उकेर दो।  याने कि जितने भी हैं आयाम कला के,सब उसमें भर दो। खिलाने को फिर ये इंद्रधनुष,चलो उन्हें हर जगह उगा दो।
जिसके पास जो भी है हुनर उसको,मुक्त-हस्त दिखाने दो। निष्णात हो या न हो कोई भी तो,उसे झिझक मिटाने दो। चेतना का अनन्त विस्तार लिए,प्रेम का वितान फहरा दो।
सृष्टि का पराग-कोष मकरंद सा,उर में सबके खिला दो।।

नलिनतारकेश

Thursday, 22 September 2022

468:ग़ज़ल

महफिल सजा कर वो तो चुपचाप चला गया। 
हंसते-हंसते पी हलाहल पर हमको रुला गया।।

झोली में हमारी भर कर यादों का खजाना गया।
खुद खाली हाथ बन कर फकीरों का राजा गया।।

सोचा जब तक बाहों में भरकर थाम लूं उसको।
हथेली से मगर बेखबर वो फिसल पारे सा गया।।

चाशनी में डूबी जलेबी सी छानकर ढेर बातें।
अपने रंगों अंदाज से दिल जीत सबका गया।।

वहीं फाकामस्ती वही सादगी जो विरासत* में मिली थी। 
बड़े एहतराम खुशी से "उस्ताद" सब पर लुटाता गया।।
*बब्बा जी से
नलिनतारकेश "उस्ताद"

Friday, 16 September 2022

467: ग़ज़ल

जिक्र होता है जब कभी मेरे कूचा ए यार का।
लबालब सारे जहाँ बहता है दरिया प्यार का।।

थाम लेता है जो हाथ सुबकते हुए देखकर। 
बोझ सर से उतर जाता है हमारी हार का।।

कदम बढ़ाओ तो सही चौखट पर फासला मिट जाएगा। बड़ा मुलायमियत भरा फ़राख़दिल*है मेरे दिलदार का।। *उदार 

रहेगी नशे की खुमारी महज बांसुरी की धुन पर।
होश फिर होगा ही नहीं तुमको उसके दीदार का।।

मौसम ए मिजाज पढ़ना उसका हँसी-ठठ्ठा नहीं है यारब। 
हैरान है "उस्ताद" भी देख जलवा सांवले सरकार का।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

Sunday, 11 September 2022

466:ग़ज़ल

ऐसे ही कुछ भी
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यूँ तो लिपे-पुते हम दिखाते बड़े एटिकेट हैं।
जो सच पूछिए तो सभी भीतर से फ्रस्टेट हैं।। 

बात गई रात गई छोड़ो भी रोना-धोना अब। 
जज्बा दिखा आगे बढ़ो बेइंतहा प्रोस्पेक्ट हैं।।

लेना नहीं कतई बच्चा समझ के उससे पंगा।
ये पहले से मासूम नहीं मारते अब करेन्ट हैं।।

गधे भी आलिम फाजिल देखो अब तो बन गए।
बनें न पर शिकार "आप" बस यही रिक्वेस्ट है।।

सर से पांव फूहड़ता से लदे-फदे जो दिख रहे।
आजकल वो सभी हमारे बने चहेते इलीट हैं।।

लिखना न चोरी-छिपे ग़ज़ल अपने नाम से।
हर एक अशआर उस्ताद के पेटेंट हैं।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

Saturday, 10 September 2022

465:ग़ज़ल

तेरी रजा ही मेरी अना है।
बाकी तो खुद पे क़ज़ा है।।

दुनियावी शहवत* को जीना।*भोग-विलास 
सचमुच खुद में एक सज़ा है।।

पहलू में बैठना तेरा।
कारगर मेरी दवा है।।

जो कभी हुआ नहीं हमारा।
उसका भी क्या सोचना है।।
 
उसकी गली से गुजर के देख तो।
तय तेरा खुद को भूल जाना है।।

उसका दीदार अमावस में।
पूनम का चांद देखना है।।

निगाहों से "उस्ताद" बोलना।
बड़ी कातिलाना तेरी अदा है।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

Thursday, 8 September 2022

464:ग़ज़ल

है अपने पास क्या सिवा एक दुआ। 
होगा वही आंखिर जो मंजूरे खुदा।।

जो चौखट पर उसकी रहा बावफ़ा।
करता है वो उसको सबकुछ अता।।

ये दुनिया,ये कायनात यूँ ही नहीं चल रही।
वो तो करना चाहता है हम सबका भला।।

प्यार में,रंज में बस गुफ्तगू रब से किया करो।
जीने का असल जिंदगी बस यही है फलसफा।।

बगैर उसके सांसो में न महक है,न ताजगी है।
सो करते रहो हर हाल बस उसका शुक्रिया।।

जीत लिया दिल जिसने मां-बाप का अपने।
खुदा को उसने अपना खादिम बना लिया।।

आंचल में चांद,तारे,आफताब हैं जाने कितने।
दीदार पर कर न पाया कभी "उस्ताद" उसका।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

Wednesday, 7 September 2022

463: ग़ज़ल

तेरी रूह की खुशबू महका रही है।
लगता है तुझे मेरी याद आ रही है।।

गुमनाम मोहल्ला मेरा अब चर्चा में है।
तेरी आवा-जाही यूं कमाल ढा रही है।। 

सावन-भादो सूखे ही बीत जा रहे तो क्या।
जब निगाहें ही हमारी आंसू छलछला रही है।।

फजीहत से डरता ही कहो अब यहाँ कौन है।
ये तो बनकर अब जाहो-जलाल* छा रही है।।*मान-प्रतिष्ठा

मस्जिद भला क्यो जाएं "उस्ताद" हम।
जब भीतर ही कस्तूरी खिलखिला रही है।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Monday, 5 September 2022

संभवामि युगे युगे का तुमुल जयघोष धर्म संस्थापनार्थाय। 卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐

संभवामि युगे युगे का तुमुल जयघोष धर्म संस्थापनार्थाय।
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कबड्डी कबड्डी कबड्डी की तर्ज पर आज तो हर जगह।
बॉयकॉट बॉयकॉट बॉयकॉट का ट्रेंड वायरल हुआ है। 
लोगों को अब सचमुच जिसमें मजा बड़ा आने लगा है। 
यूं अब तो गड़े मुर्दे भी सारे उखाड़कर लाए जा रहे हैं।
नए पुराने सबका ढीला करैक्टर स्कैन किया जा रहा है।
कमरकस इच्छाधारी मायावी ड्रैगन ब्रह्मास्त्र बनके आया।
मगर फुस्स हो चला नहीं सो कहो कहाँ ये चलेगा दुबारा।
दरअसल हद से ज्यादा कसम से नंगी जमात सेक्यूलर की।
लाल चढ्ढी जो पहनी थी बमुश्किल वो भी अब उतर गई है।
तभी तो कलयुग में देखो जनता को ही कृष्ण बनना पड़ा है। 
शिशुपालों के खिलाफ बॉयकॉट ट्रेंड पूरी शिद्दत व शक्ति से। 
जाति-धर्म से उठकर ऊपर एकजुट हो निकालना पड़ रहा है।
दरअसल कंस,रावण,दुर्योधन सभी कलयुग में एक मंच पर। 
आकर खड़े हैं नेता,अभिनेता,आवार्ड वापसी गैंग आदि बनके।
सर तन से जुदा का परचम लहराने वाले भुला आपस की जंग। 
बेखौफ बेशरम होकर इनके साथ गठबंधन को तैयार खड़े हैं।
अतः संभवामि युगे युगे का तुमुल जयघोष धर्म संस्थापनार्थाय।
हम,आप,सभी को हर हाल में पुरजोर करते रहना पड़ेगा।
ये अपनी भारत की माटी रहे सदा-सदा को निष्कलुष,निर्मल।
बस इसकी ही खातिर संस्कारों की फसल को बचाना पड़ेगा।

नलिनतारकेश

Sunday, 4 September 2022

राधाष्टमी

राधा राधा राधा।राधा नाम है एक  धारा।

अहर्निश बहने वाला।अमर भक्ति का दाता।

श्री चरणों से बहता जाता।जिस में डूबा जग ये सारा। 

जिसने इसमें गोता खाया।उसने इसका स्वाद है जाना। 

हर पल सांसों का आना जाना।व्यर्थ यदि इसको न गाया।

जो चाहो तुम इसको पाना।शक्तिपुंज अद्भुत ये सारा।

मात्र सब समर्पण कर दो सारा।और नहीं कोई भी चारा।।

नलिनतारकेश 

राधे-राधे।

Saturday, 3 September 2022

462: ग़ज़ल

गजल सुनकर वो तो मेरी रोने लगा था।

बेसबब उसका ही दर्द बयां हो गया था।।


दु:खती रग शायद रख दिया था हाथ उसकी।

बेवजह ही मुझे वो चारागर समझने लगा था।।


यूँ तो बीमार है यारब यहाँ हर कोई।

हमको ही मगर अपना ना पता था।।


चेहरे पर देखो हवाइयां उड़ रही हैं उसके।

जमाने का दरअसल वो सताया हुआ था।।


अजनबी हो गया है यह अपना ही शहर हमसे।

बदलेगा वक्त करवट ऐसे किसको ये पता था।।


लिखते हैं कलाम "उस्ताद" जो हर रोज हम।

दर्द निथारना ये निहायत जरूरी हो गया था।।


नलिनतारकेश @उस्ताद

Friday, 2 September 2022

रिझाने के लिए

जाने कब आ जाए मेरा सांवरा मुझसे मिलने के लिए।
जरा कर तो लूं सोलह श्रृंगार उसको रिझाने के लिए।।

अभी तक तो देह,मन,बुद्धि सभी अत्यंत कलुषित रहे हैं।
करना तो पड़ेगा मगर परिश्रम स्वयं को संवारने के लिए।।

भटकता रहा हूँ धरा में आसक्तियों के चलते जाने कब से। ऐसे कहाँ पर निर्वाह होगा प्यास अपनी मिटाने के लिए।।

चिंता बाह्य परिवेश मलिनता की नहीं बस अंतर्मन की है।
जो मिटानी तो होगी उसकी दृष्टि में सदा बसने के लिए।।

लग जायेंगे जाने कितने जन्म अभी और ये किसे ज्ञान है।
सो करूं मैं अनुनय उसी सांवरे से अपना बनाने के लिए।।

नलिनतारकेश

 

Thursday, 1 September 2022

461: ग़ज़ल

लोग जब पत्थर बांध छाती पर तैर रहे।
नंगे पांव चलना भी हमें नागवार गुजरे।।

भीतर झांक कर करें खुद से कैसे गुफ्तगू।
देखने से फुर्सत कहाँ हमें दुनिया के मुजरे।।

परत दर परत पहन नकाब प्याज के छिलकों की मानिंद। 
रिश्ते टिकें नहीं तो भला ताज्जुब कोई कैसे किया करे।।

असल,नकल में बताए कोई कैसे फर्क रत्तीभर का।
कांच ही जब बाजार में हीरे सा मुनव्वर* बिकने लगे।। *चमकीला/रौशन 

उसका तसव्वुर* इतना भी आसान नहीं है "उस्ताद"। *कल्पना
दीदार फिर मयस्सर* हकीकत में भला हो तुझे कैसे।।*उपलब्ध 

नलिनतारकेश @उस्ताद