Wednesday, 7 September 2022

463: ग़ज़ल

तेरी रूह की खुशबू महका रही है।
लगता है तुझे मेरी याद आ रही है।।

गुमनाम मोहल्ला मेरा अब चर्चा में है।
तेरी आवा-जाही यूं कमाल ढा रही है।। 

सावन-भादो सूखे ही बीत जा रहे तो क्या।
जब निगाहें ही हमारी आंसू छलछला रही है।।

फजीहत से डरता ही कहो अब यहाँ कौन है।
ये तो बनकर अब जाहो-जलाल* छा रही है।।*मान-प्रतिष्ठा

मस्जिद भला क्यो जाएं "उस्ताद" हम।
जब भीतर ही कस्तूरी खिलखिला रही है।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

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