Sunday, 11 September 2022

466:ग़ज़ल

ऐसे ही कुछ भी
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यूँ तो लिपे-पुते हम दिखाते बड़े एटिकेट हैं।
जो सच पूछिए तो सभी भीतर से फ्रस्टेट हैं।। 

बात गई रात गई छोड़ो भी रोना-धोना अब। 
जज्बा दिखा आगे बढ़ो बेइंतहा प्रोस्पेक्ट हैं।।

लेना नहीं कतई बच्चा समझ के उससे पंगा।
ये पहले से मासूम नहीं मारते अब करेन्ट हैं।।

गधे भी आलिम फाजिल देखो अब तो बन गए।
बनें न पर शिकार "आप" बस यही रिक्वेस्ट है।।

सर से पांव फूहड़ता से लदे-फदे जो दिख रहे।
आजकल वो सभी हमारे बने चहेते इलीट हैं।।

लिखना न चोरी-छिपे ग़ज़ल अपने नाम से।
हर एक अशआर उस्ताद के पेटेंट हैं।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

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