Thursday, 22 September 2022

468:ग़ज़ल

महफिल सजा कर वो तो चुपचाप चला गया। 
हंसते-हंसते पी हलाहल पर हमको रुला गया।।

झोली में हमारी भर कर यादों का खजाना गया।
खुद खाली हाथ बन कर फकीरों का राजा गया।।

सोचा जब तक बाहों में भरकर थाम लूं उसको।
हथेली से मगर बेखबर वो फिसल पारे सा गया।।

चाशनी में डूबी जलेबी सी छानकर ढेर बातें।
अपने रंगों अंदाज से दिल जीत सबका गया।।

वहीं फाकामस्ती वही सादगी जो विरासत* में मिली थी। 
बड़े एहतराम खुशी से "उस्ताद" सब पर लुटाता गया।।
*बब्बा जी से
नलिनतारकेश "उस्ताद"

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