Thursday, 29 September 2022

गीत: कैसा है?

भला कहो तुम  कैसा है?
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गले लगाना गैरों को,ये काम तो बड़ा ही अच्छा है। 
मगर भुलाना अपनों को,भला कहो तुम कैसा है।। 

सांस-सांस,जब हो बाट जोहती,सदा तुम्हारी।
सोचो जरा तुम हमको,फिर तरसाना कैसा है।।

धन,वैभव,रूप,यश,नाम पताका फहराती रहे यूँ ही।
लेकिन जाना हो जो खाली हाथ,तो इतराना कैसा है।।

शाश्वत सच यही है प्यारे,हर क्षण को बदलते रहना है।
ऐसे में जो आए दु:ख,तकलीफ तो फिर रोना कैसा है।।

यूँ  तो है संसार उसी का,पर मैं भी तो सदा से उसका हूँ। 
बात सरल जो समझ न आए,तो आत्मसमर्पण कैसा है।।

नलिनतारकेश

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