Tuesday, 21 November 2023

615: ग़ज़ल:कुछ नादानियां

कुछ नादानियां तो हमारी जग जाहिर हो चुकीं।
मगर बहुत अभी भी हमने छुपाके हैं रखी हुई।।

यार वैसे सच कहूं तो तुम यकीन कर भी लेना। 
नासमझी कुछ ऐसी हैं जो हमसे भी छुपी रहीं।।

तेरी समझदारी पर है शक-ओ-शुब्हा तो नहीं हमें।
तभी उम्मीद है ये राजे-बात तेरे लिए कतई नहीं।।

दिल खोलकर रखना अच्छा है ताउम्र दोस्ती को।
ये अलग बात है आज कद्र नहीं ऐसे जज़्बात की।।

सफ़र में चलते-चलते अकेले,थक गए हैं हम बुरी तरह।
"उस्ताद" चलो देखें मगर तकदीर में क्या कुछ है लिखी।।

नलिन तारकेश @उस्ताद

Monday, 20 November 2023

614:ग़ज़ल: बेहिसाब हैं चाहतें

जरूरतॆं तो थोड़ी मगर कितनी बेहिसाब हैॆं चाहतें।
दॊनॊं हथेली फैलाकर हम तो हर वक्त बस मांगते।।

वक्त का जब तक दांव चले तब तलक सब ठीक है। 
वर्ना तो खुदा जाने कब वो अशॆ से फर्श पे पटक दे।।

एक महज़ ख़्वाब ही तो है हमारी ये नायाब जिंदगी।
किसी को खुशगवार तो किसी को वो हलकान करे।।

जो मगरूर हो बटोरते रहे बस ऐशोआराम अपने लिए। 
अनगिनत ऐसे शख्स दम तोड़ते अक्सर बेसहारा दिखे।।

ये जिंदगी कसम से कोरी लफ़्फाज़ी के सिवा कुछ है नहीं। 
जाने क्यों भला "उस्ताद" मोहब्बत लोग इससे करते चले।।

नलिन तारकेश @उस्ताद

Sunday, 12 November 2023

613:ग़ज़ल :एक अलग धुन,अलग मस्ती

एक अलग धुन,अलग मस्ती में हम चलते रहे।
भीतर जलाकर चिराग रोज खिलखिलाते रहे।। 

बनावटी उजाले तो छोड़कर चले ही जाते हैं।  
मिला हमें उसका नूर तो परचम लहराते रहे।।

भरपूर दौलत में सुकूं को बस लोगों ने ये किया।
औंधे मुंह मगरमच्छ जैसे चुपचाप बालू पड़े रहे।।

बगैर सोचे समझे चलने की फितरत रही है हमारी। खामियाज़ा भुगता तो कभी तुक्का मार बढ़ते रहे।।

डॉलर,यूरो,रूबल सब हैं ताकत के गुरुर में अपनी।  "उस्ताद" तो खाली जेब भी मगर झूमकर गाते रहे।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

Saturday, 11 November 2023

ग़ज़ल: जहां भी रहे

जहाँ भी रहे वहीं के रंग में ढल गए।
आसां जिन्दगी यूँ बसर करते चले।।

दिन में तो मुठ्ठी भर लोग दिखे यहाँ। 
शाम पर बर्रों से मधुशाला पर जुटे।।

उम्र का अहसास कोई तो रखता नहीं।
झुर्री भरे चेहरों में भी मुस्कुराहट दिखे।।

शहर का जादू तो सर चढ़कर बोल रहा।
पलक भी हमारी झपकने से इंकार करे।।

बाहर निकलते ही कड़ी धूप मिल रही।
"उस्ताद" मस्ती में मगर हम डोलते रहे।।

नलिनतारकेश@उस्ताद 

Friday, 10 November 2023

612: ग़ज़ल :जिन्दगी मेहरबान तो शुक्रिया रहे।

जिन्दगी मेहरबान जब हम पर तो शुक्रिया रहे।
लम्हा-लम्हा उसकी ही बदौलत लुत्फ उठा रहे।।

रंगीन दिन तो रात एक कदम और भी आगे है।
हम देख यहाँ की रौनक हैरत में पड़ते जा रहे।।

बरसात कभी भी खुलकर हो जा रही है यहाँ।
तेज धूप ऑखे दिखाए उसे परवाह कहाँ रहे।।

मेट्रो,टैक्सी बैठ हर गली चौराहे नाप रहे हम।
तेरी चौखट की चाहत में हम कदम बढ़ा रहे।।

समन्दर तो खारापन पीता रहा है सदा के लिए।
हम ही यार हर गाम हलकान हो तौबा मचा रहे।।

रेत पर समन्दर किनारे लिखे नाम से क्या फायदा।
दिन-रात बेखौफ मगर हम "उस्ताद" लिखवा रहे।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

Sunday, 5 November 2023

ग़ज़ल:611:in Malaysia 3

कभी भरा आकाश को बांहों में तो कभी फर्श पर लेटे।
जिन्दगी ने भी क्या-कुछ रंग झोली में फकीरों की भरे।। 

गुमान खुद पर करें तो कैसे करें कहो अब तुम ही भला।
हम एक सांस जब बगैर खुदा ए मेहरबानी भर न सके।।

ये तेरा मुल्क है वो मेरा जेहन में ऐसा कुछ आता नहीं।
हम सच कहें तो हर जगह खुश रहे खुदा के फजल से।।

कतरा-कतरा इबादत ही दिखती है कायनात में उसकी।
जाने कैसे-कैसे ख़्वाबों को हकीकत में वो तब्दील करे।।

"उस्ताद" हम तो उसकी कलाकारी देख जां-निसार हैं।
नायाब बढ़कर एक से एक रंग वो लाता है भला कैसे।।

नलिनतारकेश@उस्ताद 

Saturday, 4 November 2023

610: ग़ज़ल in Malaysia

रोशनी हर गली-कूचे में बिखरी हुई है ऐसे।
आसमां चांद-तारों संग उतरा जमीं हो जैसे।।

दीये की लौ जगमगा रही है हर चेहरे पर।
खुशगवार महौल की जैसे बरसात बरसे।।

रहे मेहरबान खुदा तो कहो क्या गम है।
हर तरफ गुलशन महकते हुए हैं दिखते।।

उसकी रज़ा हर हाल जब बन जाए तेरी।
नाउम्मीदी को भला कहाँ कोई भी तरसे।।

जिस भी रास्ते अब गुजरते हैं "उस्ताद" हम।
पलक-पांवडे बिछाए लोग सजदे कर रहे।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

609:ग़ज़ल towards Singapore

दीपावली in Malaysia 

खुदा के मन की भी भला कौन जानता है।
वो तो हर घड़ी हमें कौतुक में डालता है।।

जो निकलते नहीं घर से दो कदम बाहर।
दुनिया जहां उन्हें घुमा-फिराकर लाता है।।

किसी चेहरे पर गम तो कहीं खुशी दिख रही।
बातें वही सब मगर हौसला वही दिलाता है।।

जुल्फों को खोला उसने तो हैरान थे सब।
भला सुबह-सुबह ये कौन रात सजाता है।।

जिन्दगी के शरार* कम न हों हर हाल में कभी।*जोश
"उस्ताद" ये जज़्बा तो बनाकर रखना पड़ता है।।

Friday, 20 October 2023

सीताराम

श्रीराम,जानकी को हृदयासन में आप अपने विराजिये। 
हो यदि हृदय मलिन,क्लांत,कलुषित तो भी न घबराए।। 
सहज,सरल भाव से बस उनको सतत पुकारते रहिए।
त्वरित ही आएंगे सीता-रामजी विश्वास आप मानिए।।
यदि अब वो आ ही गए तो कौन दूषण रहेगा बताइए।आप होंगे निर्दोष,निर्मल निश्चित सत्यवचन ये जानिए।।
सृष्टिकर्ता परम प्रभु एकमात्र सीताराम हैं जब विचारिए।  निष्कलंक पूर्णिमा के चंद्र सदृश आप तो बस मुस्काइए।। 
उदार विरुदावली उनकी प्रतिश्वांस दृढ होकर उचारिए।
श्रीचरण युगल सरकार देंगे स्थान अवश्य धैर्य ये धारिए।।

नलिनतारकेश

Thursday, 19 October 2023

श्री बांके बिहारी लीला

ॐ ○□बांके बिहारी लीला□○ॐ
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अधरों से श्याम के लगी बाँसुरी राधा ने आज छीन ली।  लगा अपने होठों से फिर उसमें राग अनूठे बजाने लगी।हतप्रभ कृष्ण कुछ क्षण तो समझ ही ना पाए ये पहेली।
मगर प्रभु तो ठहरे नटवरलाल बचपन से महा के छली।
सो तुरंत उन्होंने रूपांतरित कर छवि राधा की बना ली।
और बन गए वो तो राधा रूप धारण करके प्राकृत स्त्री।
सो अब थी हमारी राधारानी के विस्मित होने की बारी।
मगर कहाँ वो हार मानती कृष्ण की प्रियाजी जो ठहरी। झटपट अतः वो भी बन गईं अपने कृष्ण की प्रतिमूर्ति। 
अब निहार दोनों ही एक दूजे की मस्ती भरी ठिठोली। हंसते-खिलखिलाते आलिंगन में देह परस्पर भर ली।
ये देख हाथों से फिसल स्वर-मृदुल बजाने लगी बांसुरी।
सृष्टि भी पोर-पोर खुलकर संगत अप्रतिम देने लगी।
देख अलबेली ऐसी झांकी रोम रोम खिली नलिन कली। राधा कृष्ण के मध्य सत्य में कहां तनिक भी है भेद दृष्टि।
एक प्राण ने तभी हरिदासजी दिखाई छवि बांके बिहारी।।

नलिनतारकेश

Saturday, 14 October 2023

608: ग़ज़ल: #श्रद्धा-सुमन #पित्र पक्ष

#पित्र पक्ष #श्रद्धा-सुमन 

पुरखों को अपने ख़िराज-ए-अक़ीदत* पेश करना।*श्रद्धा-सुमन 
एहसान नहीं वजूद खुद का ही है संभल रखना।।

कहाँ तक रहा कुदरत के सफर में हिस्सा हमारा। 
ये सब देता है ब्यौरा खोल के अपना बहीखाता।।

बूंद से बूंद जुड़कर जैसे एक दरिया की रवानी बनी। कायनात में यूँ चल रहा आदमज़ाद का सिलसिला।।

फुरकत* में दिलदार के ताअकुब** से मुतमईन*** हो गया हूँ। 
*जुदाई    **पता चलाना   ***संतुष्ट 

कहीं गुम न हो बस बनके बादल वो कहीं और बरस जाता।।

यूँ देखो तो कोई किसी का नहीं वरना हैं सब एक ही। "उस्ताद" तिलिस्मी यही है खेल बड़ा परवरदिगार का।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

Friday, 13 October 2023

607: ग़ज़ल: ये भी चाहिए

ये तो चाहिए ही हमें और वो भी चाहिए।
इस दुनिया के रंग सभी सतरंगी चाहिए।।

तलब बाकी ना रह जाए कोई भी अपनी।
खुद से दुआ तो सबको बस यही चाहिए।।

वजूद अपना बरकरार रहे कयामत तक।
हर हाल में यही नुस्खा ए जिंदगी चाहिए।।

कवायद खुदा कसम बस है इसलिए सारी।
झोली हमें अपनी ही सबसे भारी चाहिए।।

खुशी की तलाश में कब से कबाड़ बटोर रहे।
"उस्ताद" समझ इतनी हमें तो होनी चाहिए।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

Thursday, 12 October 2023

606:ग़ज़ल: छलावा देकर

बहुत कहा मैंने अब तुम भी तो कुछ कहो।
जो कुछ है दिल में बेहिचक उसे बहने दो।।

हलक में फंसकर जिगर को जो चीर रहा है।
होता है गुबार हल्का साफ़गोई से जान लो।।

एक-एक कदम रखकर ही आगे फासले मिटते हैं। 
शुरू में कांपते जरूर हैं पर फिक्र तुम ये  छोड़ दो।।
 
तकदीर तो संवरती है बस तदबीर को गले लगाने से।
सौ फीसदी बात है सच्ची मान जाओ इस तकरीर को।।

छलावा देकर बुला तो लेता है हर बार अपनी अंजुमन में।
गली में "उस्ताद" अपनी भटकायेगा कब तलक बता तो।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

Wednesday, 11 October 2023

605: ग़ज़ल: खुदा का नाम

लो आज का दिन भी अपना ज़ाया हो गया।
जुबां को नाम लेना खुदा का तौबा हो गया।।

उम्र बढ़ रही जैसे-जैसे सांसे घटने लगी हैं।
कर्जा ए जिंदगी इस कदर ज्यादा हो गया।।

वो आए नहीं हों चाहे अन्जुमन में अब तलक। 
खबर सुनकर दिल खुशगवार अपना हो गया।।

चाय की प्याली तूफान है आ गया लगता कोई।
वर्ना क्या बात हुई जो आज वो बेवफ़ा हो गया।।

अपने दिलदार से जाने किस मोड़ मुलाकात हो।
जिस्म में "उस्ताद" तभी स़जायाफ़्ता हो गया।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

Tuesday, 10 October 2023

604: ग़ज़ल: खुदा बचाए

लिखता रहा हूँ गजल बस इसलिए।
घाव नासूर न बन जाए रिसते हुए।।

देख जमाने भर के रंजोगम आसपास ।
दिल ए चैन कहाँ भले लाख संभालिए।।

ऐन मौके पर भूलते हो केवल हमें।
अब कहो कैसे तुझे अपना बताएं।।

सच-सच कहें तो आफत चुप रहे तो भी।
भला ऐसे हालत साथ तेरा कैसे  निभाएं।।

जुबान से कहो कुछ और दिल में कुछ रखो।
"उस्ताद" ख़ामख़याली* से तेरी खुदा बचाए।।*फ़र्ज़ी सोच

नलिनतारकेश @उस्ताद

 

Monday, 9 October 2023

603: ग़ज़ल: सब नाचते प्यालों से

जो चाहते नहीं कभी हम औरों से।
अक्सर करते वही हम अपनों से।। 

जो कुछ मिलता नहीं हकीकत में।
बहलाए है दिल उसको ख्वाबों से।।

फासला जो बढ़ गया है हमारे दरमियाँ।
आओ चलो सुलझा लें बैठकर बातों से।।

होगी कभी सर्दी तो कभी धूप मौसम में।
सफर तो करना होगा गुजर कर राहों से।।

किससे रखें उम्मीद और किससे नाउम्मीदी।
वक्त के हाथ सब नाचते "उस्ताद" प्यादों से।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Saturday, 7 October 2023

602: ग़ज़ल: बेसुधी का ऐसा आलम

बेसुधी का ऐसा आलम कि क्या कहें।
तेरी चाहत का है ये नतीजा क्या करें।।

हवाओं से आ रही है तेरे दीदार की खुशबू।
मसला है ये आंखिर सांसों में कितना भरें।।

होंठ बुदबुदाते हैं तो कभी धड़कन में बजता है।
नाम का जादू तेरे भला किस-किससे हम कहें।।

आंखों में तैरती है अब हसीन सूरत तेरी।
कब तलक बंद पलकों में राज ये छुपाएं।।

"उस्ताद" सच कहें तो अब तेरी जरूरत नहीं।
हमसे ज्यादा तो अब हम आपको बेचैन पाएं।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

Friday, 6 October 2023

601: ग़ज़ल: दिल बहलाने को

किताबें रिसाले पढ़ीं तो बहुत मगर याद कहां।
एक लफ्ज़ दिल को मगर याद बस प्यार रहा।।

रात-दिन जिसके ख्यालों में गुजारी हमने यारब।
उसने भी मगर कहाँ जिंदगी में जरा साथ दिया।।

उम्मीद ए लौ टिमटिमाती तो है कहीं दूर फलक में। 
चलो-चल कर देखें क्या है तकदीर में अपनी बदा।।

दुनियावी असबाब में इस कदर मशगूल रहे हम।
तराना ए रूह जो था सुकूं का वो अनसुना किया।।

जिंदगी की जुल्फों के सुलझेंगे न तुमसे पेंचोखम।
दिल मगर बहलाने को "उस्ताद" है कुछ नहीं बुरा।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

Thursday, 5 October 2023

600:ग़ज़ल: इतनी कही,इतनी लिखी

ग़ज़ल संख्या 600
==××=++=÷÷==

इतनी कहीं,इतनी लिखीं कि खुद ही ग़ज़ल हो गया। जिंदगी की पढ़ी शिद्दत से तुज़ुक* तो निर्मल हो गया।।*आत्मकथा

प्रीत की डोर बंधी पेंगे इतनी इस कदर उठीं दिल में।
अपने दिलदार की आंख का वो तो काजल हो गया।।

जमाने ने बेतकल्लुफ दिले-किताब खोल दिखा दी। 
सहज हो उनके लिए जब वो महज रहल* हो गया।।
*किताब रखने की चौकी

सावन का मौसम अंगड़ाई ले दहलीज से जो गुजरा। बेकरार मन उसका बेसाख्ता तब्दील बादल हो गया।।

इनायतें उसकी मुझ पर हर सांस इतनी अनोखी रहीं।
सजदे को झुका "उस्ताद" तो नमाजे फजल हो गया।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

Wednesday, 4 October 2023

599: ग़ज़ल: तन्हा है आदमी

भीड़ में रहते हुए भी कितना तन्हा है आदमी। 
दरिया के पास भी कितना प्यासा है आदमी।।

उम्मीदों के सहारे तो जिंदा रहता है आदमी। 
उनके चलते ही मगर रोज मरता है आदमी।।

निगाहें चार सांवले सलोने से हो गईं जबसे। 
उसी पल से चकोर सा बन गया है आदमी।।

तेरे-मेरे का फासला है तो नहीं पर मिटता भी नहीं। 
दरअसल जिस्म से ऊपर उठ नहीं पाया है आदमी।।

दरियादिली में उसकी कमी "उस्ताद" कभी भी नहीं।
जाननिसारी पर मगर फिर भी डरता रहा है आदमी।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

Tuesday, 3 October 2023

598: ग़ज़ल: भूकंप

मेरी दुआ-सलाम से भी अब वो कतरा रहा।
कतरा-कतरा इस तरह वो मुझे तरसा रहा।।

यूँ तो वायदे किए थे साथ निभाने के उसने मुझसे।
जाने किस बात पर बहाने बना अब है बहला रहा।।

वक्त भी गजब मौज लेता है जब तारे गर्दिश में हों।
जख्म पुराना तो भरा नहीं नया जरूर मिलता रहा।।

सुकून की तलाश में भटकते हो खानाबदोश से क्यों।
देखते ही नहीं झांक कर तहे-दिल वो जो बसता रहा।।

भूकंप के झटके तो आएंगे,पर बाज न आते नामाकूलों।
आंखिर कब से तेरे गुनाहों को हर दिन वो दिखला रहा।।

हवाओं का रुख था जिधर,उधर कश्ती कभी हांकी नहीं। अनजानी मंजिल फिर भी"उस्ताद"इबारतें नई गढ़ता रहा।

नलिनतारकेश@उस्ताद

Monday, 2 October 2023

597: ग़ज़ल: सुर लय ताल में गाइए

सा रे;ग म को जरा एक सुर,लय,ताल में गाइए।
यूँ आसान खुश रहने का नुस्खा मुफ्त पाइए।।

जैसी भी मिली है नसीब से जिंदगी आपको। 
मन लगा,सिटी बजाते बस इसे गुनगुनाइए।।

फूल ही मिलें,रास्तों में बिछे ये मुमकिन नहीं।
जरा कांटों में भी बढ़ने का हौंसला दिखाइए।।

सूरज,चांद,सितारे हर गाम हैं दौड़ते-भागते रहते। 
जीवन की बाजी फिर आप क्यों थक-हार जाइए।।

मदद करता है खुदा भी उसी की जो खुद चप्पू चलाए। 
वरना तो तय है दरिया ए जिंदगी "उस्ताद" डूब जाइए।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

Friday, 29 September 2023

596: ग़ज़ल: वो मुझे चाहता है

वो मुझे चाहता है ये तो पक्का पता है।
जाने इजहार क्यों मुझसे नहीं करता है।।

जो पूछता हूँ उससे हिम्मत करके मैं कभी। 
वो अनसुना कर बातों का सिला बदलता है।।

जरूर हुआ है कोई मुझसे ही बड़ा गुनाह।
यूँ उसे हर कोई बड़ा नरम दिल कहता है।। 

बस ख्यालों में अपने डूबे रहना,मुझे बड़बड़ाने देना।
ये कहाँ कुछ अपनी तरफ से एक लफ्ज बोलता है।।

मेरा होकर भी मेरा भला अब तक जाने क्यों नहीं हुआ।
क्या उसे नहीं गुमान इस सबसे दिले "उस्ताद" टूटता है।।

नलिनतारकेश@उस्ताद 

Thursday, 28 September 2023

597: ग़ज़ल: इसे सबसे छिपाना चाहिए

मरने का कोई न कोई तो बहाना चाहिए।
मुझे तेरे प्यार का तभी तो ठिकाना चाहिए।। 

रोशन होने लगी तेरे ख्याल से जब मेरी जिंदगी।
किसी गैर को भला फिर क्यों रिझाना चाहिए।।

जो मिले जाए किसी को साथ तेरा किस्मत से। 
उसको तो हर हाल बेखौफ हो इतराना चाहिए।।

गम और खुशी तो आनी-जानी है रोजमर्रा में। 
इन वजहों से भला क्यों उसे भुलाना चाहिए।।
 
नजर लगाते हैं जमाने वाले प्यार पर हरेक के।
"उस्ताद" तभी तो इसे सबसे छुपाना चाहिए।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Monday, 25 September 2023

595: ग़ज़ल: दहलीज पार कर न सका

नब्ज़ को टटोला,जब उसकी चारागर ने,हाथ लगा।
बंद थी वो तो मगर,दिल नाम लेकर,था धड़क रहा।।

मासूम चेहरा बनाकर,रंग-बिरंगे जज्बात सजा लिए।
महफिल को उसने ऐसे,दो घड़ी सरेआम लूट लिया।।

आईने ही आईने आशियाने में,उसके लगे हैं चारों तरफ।
सब देखते हैं अक्स अपना,खुद को पर है उसने छुपाया।।
  
नीले गगन में टिमटिमाते तारे,बेतकल्लुफ बतियाते दिखे। जमीं पर मगर कोई भी,पार दहलीज अपनी न कर सका। 

"उस्ताद" तुम तो लिख सकते हो कुछ भी,किसी पर भी। 
ये इख्तियार-ए-हुनर तो तुमको मलिक ने है अता किया।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

Sunday, 24 September 2023

594: ग़ज़ल: यायावर चलिए

ज्यादा मगजमारी,बारीकियों पर न कीजिए।
जब तक सुकून मिले,तब तलक मौज करिए।।

आसान नहीं रही,जिंदगी की राहें कभी भी।
लबों पर किसी जुगत,हंसी बचाकर रखिए।। 

अपना कहते हैं,मानते हैं अगर किसी को।
उनसे तो दिल खोल कर,बतिया लीजिए।।

सावन नहीं बरसे बादल तो,मुरझाइए जरा भी नहीं। 
परवरदिगार की नेमत पर हर-हाल,भरोसा पालिए।।

"उस्ताद" चलते हैं,जानिब-ए-मंज़िल सब अकेले ही। 
मिले कोई हमसफ़र तो ठीक,वरना यायावर चलिए।।

नलिनतारकेश@उस्ताद
SKETCH BY "SIDHARTH" MY DEAR BHATIJA

Saturday, 23 September 2023

593: राधा अष्टमी नन्दा अष्टमी की हार्दिक बधाई

राधा अष्टमी एवं नन्दा अष्टमी की बहुत बहुत बधाई। 
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पदचाप से जो नूपुर छनछनाते हैं लाड़ली ज्यू के।
भक्ति सौभाग्य द्वार वो खोलते हैं लाड़ली ज्यू के।।

कृष्ण-कृष्ण रटते तो सभी भक्त सुबह शाम मगर।
बगैर अनुशंसा कृपा कहाँ करते हैं लाड़ली ज्यू के।।

हंसी-ठिठोली कितनी भी करते हों बात-बात पर चाहे।
रूठ जाएं तो त्वरित श्रीचरण दबाते हैं लाडली ज्यू के।।

राधारानी हैं हमारी तो बड़ी कोमल,माखन-मिश्री जैसी। 
तभी कृष्ण,षटरस लुभाते कहाँ,आगे हैं लाडली ज्यू के।।

राधा जी हैं धारा,वस्तुतः निर्मल भक्ति की साक्षात प्रतिमूर्ति। 
"उस्ताद" तभी कान्हा,रीझ भक्तों पर जाते,हैं लाड़ली ज्यू के।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

Friday, 22 September 2023

592:ग़ज़ल: ईनाम कर दूं

चलो एक ग़ज़ल और तेरे नाम कर दूं।
अब ये इश्क मैं अपना सरेआम कर दूं।।

कड़ी धूप है जमीन रेत भी खूब तप रही।
तू चले साथ तो दिन को भी शाम कर दूं।।

ये पस-ए-मंजर* हुआ खूबसूरत तेरे वजूद से।*पृष्ठभूमि
गजब की तेरी इस जीनत* को सलाम कर दूं।।*शोभा

तेरे दर पर आया हूँ पूरे होश-ओ-हवास से यारब।
जो एक इशारा करे तो खुद को गुमनाम कर दूं।।

तू जो मेरा होकर मुझे हर गम से निजात दे रहा।
बता "उस्ताद" इस पर अता क्या ईनाम कर दूं।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Thursday, 21 September 2023

591: ग़ज़ल:गोल दुनिया

दर्द हद से बढ़ा तो तबीयत खराब हो गई।
शुक्र है पर इस बहाने दवा शराब हो गई।।

जो इश्क परवान चढ़ा तो जरा कयामत देखिए।
लचकती टहनी पर वो लाल सुर्ख गुलाब हो गई।।

इश्क में फेंका जो कंकर यार ने छेड़ने की खातिर।
हंसी लबों पे उसके खिलखिलाती तालाब हो गई।।

मिलेंगे मुहब्बत में कभी तो हम चाहे हो रहे जुदा आज।
बात ये दर्ज गोल दुनिया बतौर हिसाब-किताब हो गई।। 

डूबे जो बस उसके ही एक रंग में तो "उस्ताद" ये हुआ। 
हकीकत जो लगती थी जिंदगी वो महज ख्वाब हो गई।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Wednesday, 20 September 2023

590: ग़ज़ल: जड़ों को जमीं से

सारे दुनिया के लिए,नेकी मुहब्बत का भाव रखता है।
उसके चेहरे से,यूँ ही नहीं माशाल्लाह,नूर टपकता है।।

लोग कोशिश में लगे हैं,उसका उसका कद नापने की।
पर भला उसका ओर-छोर,किसी को कहाँ दिखता है।। 

जुगनुओं की फौज,अब सूरज पर धावा बोलेगी।
बस यही सोचकर,सारा जहां पुरजोर हंसता है।।

जद्दोजहद कर लो,नहीं बोलना है तो नहीं बोलेगा। 
हां जब खोलेगा लब कभी तो,बस वही बोलता है।।

रिसालों-किताबों को,जितना जज़्ब कर रहे नए बच्चे।
तौबा-तौबा कसम से,ये दिमाग और शातिर चलता है।।

शागिर्द चाहे कितनी भी ऊंचाइयों को छू ले मगर।
जड़ों को पुख्ता,जमीं पर तो "उस्ताद" ही करता है।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

Tuesday, 19 September 2023

589::ग़ज़ल :लिखवाता तो ईश्वर था।

घर से दूर गया तो भीतर छुपा बड़ा एक डर था।
जहे नसीब देखिए मेरा वहाँ भी अपना घर था।।

कदम ठिठकते हैं नए सफर पर अक्सर हमारे।
चला तो जगह-जगह मिला मील का पत्थर था।।
 
बेकरारी थी जो जिंदगी में कुछ नए रंग भरने की।
मेरे ख्वाबों को हकीकत में बदलता वो सफर था।।

कुछ भी तो नहीं किया शोहरत पाने की खातिर।
ये सब महज इबादत और दुआओं का असर था।।

आसां होता नहीं है तकदीर को बदलना कभी भी।
जो बदला अगर तो बस एक जुनून और जिगर था।।

बगैर पढ़े-समझे ककहरा जो कुछ हूँ लिख सका।
कलम बनाकर "उस्ताद" लिखवाता तो ईश्वर था।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

Monday, 18 September 2023

588:ग़ज़ल: निभाओगे

वायदे  करके भी जो नहीं आओगे।
भला कैसे साथ तुम निभाओगे।।

घड़ी की सुईयां भी थक गईं इंतजार से।
कहो क्या वक्त को भी दोषी ठहराओगे।।

गुलशन,समंदर,फलक और ये तारे सभी।
कुदरत परेशां है क्या तुम सुधर पाओगे।।

हर कदम झूठ,फरेब और बेईमानी।
खुदा का भी खौफ अब न खाओगे?

धड़कनें तेज कदमताल कर रही हैं "उस्ताद"।
हम पर ना सही इन पर तो रहम बरसाओगे।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Sunday, 17 September 2023

587: ग़ज़ल: दिल को बहलाते हैं

भला कैसे कहें हम तुझे चाहते हैं। 
यहाँ जिसे देखो सब तेरे दीवाने हैं।।

पतंग जैसे उड़ाते दिख रहे नीले आसमान में।
तुझे लेकर हर कोई ख्याली पुलाव पकाते हैं।।

आंखों की कोर में नूरानी चमक आती है।
जब तुझे तेरा नाम लेकर यारब बुलाते हैं।।

सावन भादो बीत गए कोरे तो क्या ?
तेरे किस्से हमें आज भी रुलाते हैं।।

हर शख्स में देखकर बस तेरी तस्वीर।
दिल को यूँ हम उस्ताद बहलाते हैं।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

Saturday, 16 September 2023

586:ग़ज़ल: मीठी रसीली जिन्दगी

मीठी,रसीली,जायकेदार कब तलक चलेगी जिंदगी।
कभी तीखी,चटपटी,छौंकी,भुनी तो रहेगी जिंदगी।।

आँखों में लगा ग्लिसरीन देखिए गम जताने आ गए हैं। अजब-गजब ये हमें किस मोड़ पर ले जा रही जिंदगी।। 

कुछ ज्यादा ही पढ़ लिखकर हम सुख़नफ़हम हो गए।
बगैर खाली ज़ेहन मगर कहाँ कुछ सिखाती जिंदगी।।

यूँ तो उसने खूब सराहा और दाद दी मेरी हर ग़ज़ल पर।
समझ उसे आई गहराई से भीतर,जब वो घटी जिन्दगी।।

अब भला कहो क्या चर्चा करे नाचीज "उस्ताद" उसकी। 
खुद ही बनाता,खुद ही बिगाड़ता,है जो सबकी जिंदगी।।  

नलिनतारकेश @उस्ताद

Thursday, 14 September 2023

585: ग़ज़ल: मेरे आशियाने में

खिले तो बहुत फूल,छोटे से इस आशियाँ में मेरे।

जब आओगे मगर तुम बहार तो हम तभी मानेंगे।।


ये शहर सच कहूँ कतई रास आ नहीं रहा अब मुझे।

सोचता हूँ जाकर फिर से बस जाऊं पहाड़ में अपने।।


माना बड़ी तेजी से गाँवों को निगलते ही जा रहे शहर।

अभी भी लेकिन कुदरत भरती यहाँ ताजा हवा फेफड़े।।


वो चाहता है जितना तुझे उतना और कौन चाहेगा।

रहता जो दिल में बेकार ढूंढ रहा उसे तू बुतखाने में।।


मोबाइल तो छूटेगा नहीं कसम से आपके हाथ से हुजूर।

चलिए फिर एक सेल्फी ही मेहमाननवाज़ी में ले लीजिये।।


कम से कम "उस्ताद" इतनी तो तहजीब बनाए रखिए।

बगैर मुंह बनाए कीजिए अपनों के संग में दो बात हंसते।।


नलिनतारकेश@उस्ताद

Wednesday, 13 September 2023

584: ग़ज़ल: हम नहीं निभा पायेंगे

पुरसाहाल लेंगे नहीं कभी वो,भूल के भी बरसो में।
हां मिलेंगे महफिल में जैसे,बगैर मिले मर ही जाते।।

नए जमाने के शउर तो,तौबा-तौबा गले उतरते नहीं।
काम जब पड़ेगा तो,श्रीमान गले आपके पड़ जाएंगे।।

तुरपन करके,जैसे-तैसे चलाते थे काम,पहन फटी नेकर। अब तो मियां बाजार में बिक रहे,क्या खूब ब्रांडेड चिथड़े।

वक्त का ऊंट बेहयायी से बदलेगा करवट,किसे गुमाँ था।
नाते-रिश्ते कौन पूछे,मरे तो हेल्पलाइन से अर्थी उठाएंगे।।

तन्हा रहना ही हमें रास आता,सच कहते खुदा कसम।
ये दुनियावी चोंचले तो "उस्ताद" हम नहीं निभा पायेंगे।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

 

Tuesday, 12 September 2023

583:ग़ज़ल: जाने क्यों इतने चिढ़े हैं लोग

जाने क्यों इतनी चिढ़े हुए,परेशान हैं ये लोग। 
शायद अपनी ज़मीं दरकने से रूठ रहे लोग।।

लाख कोशिश कर तो रहे धूल चटाने की उसे। 
मगर अजब हर बार खुद शिकस्त खाते लोग।।

वो निखरता जा रहा हर बार वार से हीरे के मानिंद।
दुनिया सलाम कर रही पर खफा हैं कुछ चुने लोग।।

कुछ खामियां निकाल वो लेंगे जरूर जो पंचायत पे आए। बुलंदियों का ग्राफ मगर सामने-सामने नकारेंगे कैसे लोग।।

धीरे ही सही रंग तो ला रही है मेहनत उसकी "उस्ताद"। 
वरना तुम ही कहो बेवजह कहाँ किसी को हैं पूजते लोग।।

नलिनतारकेश@उस्ताद 

Monday, 11 September 2023

582: ग़ज़ल :साथ सफर का

कुछ खामियां तुझमें हैं और कुछ मुझमें ज्यादा।
रास्ता तो हमें ढूंढना होगा मगर साथ सफर का।।

भूला दिया हो चाहे तूने मुझको मेरे हमसफर।
प्यार मैंने किया था तो कहाँ तुझे भुलाना था।।

आसमान ने बाहों में,जो भर लिया घनी बदली को।
रात भर जाम पर जाम का,बनता तो था छलकना।।

सुरमई हुई शाम,महक सौंधी-सौंधी सी जो उठी।
चांद भी लजाकर जाने कहाँ,चुपचाप चला गया।।

ये कुदरत भी पल में तोला,पल में माशा बदलती रंग है।
दिन तक "उस्ताद" उमस थी रात पर पारा ढुलक गया।।

नलिनतारकेश 

581: ग़ज़ल: उस्ताद मोती उगलता है

शेर आज एक भी नहीं लिख पाऊंगा लगता है।
ये बरसात का बादल जो मुझे लेकर बरसता है।।

बिजली कड़क रही थी रात कितनी तौबा-तौबा। 
उससे दूर होकर यह दिल अभी भी धड़कता है।।

घुटनों-घुटनों पानी में भी चलकर जिसके दर पहुंचा।
रस्मे-उल्फ़त को अब वही सरेआम रुसवा करता है।।

चिराग को बुझाने आँधियों ने मिलकर साजिश रची। 
मेहरबान पर जिस पर हो खुदा वो कहाँ बुझता है।।

झुर्रियाँ चेहरे पर बढ़ती जा रहीं हैं सीप के मानिंद।
देखना है क्या अब "उस्ताद" भी मोती उगलता है।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

Sunday, 10 September 2023

580: ग़ज़ल:दरख़्त अब न काटना

उदास ग़ज़ल की झील पर पांव लटका कर जो बैठा। 
मेरी तन्हाई का गम सारा पलभर में छूमंतर हो गया।।

जाने क्यों लोग डरते हैं जरा-जरा सी दर्द,तकलीफ से।
जरूर कुछ देर होगी मगर उसका मजा अलहदा होगा।।

ये चांद के करीब जाकर क्यों उसे तू बदसूरत कह रहा।
बेगैरत तूने कभी इश्क सच्चा नहीं महज ढोंग ही रचा।।

उजालों का मुसाफिर जो खुद को कहे तू बड़े गुरूर से। 
जरा कभी अपने भीतर चिराग एक जला के देख लेता।।

हवाओं की जुल्फों से जो अहसासे खुशबू भीतर भर रहा।
कसम"उस्ताद"तुझे उसी की,दरख्त अब और न काटना।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Saturday, 9 September 2023

579:ग़ज़ल:दिल के जज्बात

दिल के जज्बात न कहो तुम किसी से चलो हमने माना।
उठते सैलाब को साफ़गोई से खुद को तो सुनाओ यारा।।

परेशानी का सबब तुम्हारी हमें मालूम है सब जाना।
बेवजह देने तसल्ली भला फिर क्यों सुनाते हो गाना।।

मंझधार में जानबूझकर ले गए थे क्यों कश्ती अपनी।
साहिल पर कभी तुम्हें आया नहीं जब चप्पू चलाना।।

आँधियों को तो तलाश रहती है अक्सर ऐसे मौकों की। फकत कहने पर दूसरों के क्यों घर अपना जला डाला।।

यूँ तो इस शहर में हर कोई भीतर से बहुत उदास,तन्हा है।
बस इसी इम्तिहाँ से तुम्हें सीखना है उस्ताद उबर पाना।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

Friday, 8 September 2023

578: ग़ज़ल: उस्ताद भीग जाते शहर में

हुई बरसात जो आज बेवजह तेरे शहर में।
सराबोर हो गया हूँ मैं यहाँ अपने शहर में।।

बादलों को भी भाता,आंख-मिचौली का खेल है।
हैरान हूँ जब दिखते कहीं,तब हैं बरसते शहर में।।

मोर,दादुर,पपीहा जो झूमें मिला के ताल सारे।
अब कहो कहाँ कोई हैं दिखते ये मेरे शहर में।।

हर बौछार की हरेक बूंद में कशिश है गजब की।
जो देखो भीग के अगर तो डूब जाओगे शहर में।।

एक कतरा भी बरसे जो कहीं किसी एक कोने।
"उस्ताद" एक हम ही हैं जो भीग जाते शहर में।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Thursday, 7 September 2023

राधा-राधा

कृष्ण को पाने जो कोई बन जाए राधा।
दुख कष्ट फिर मिट जाए उसका सारा।।

राधा ही है नेपथ्य कृष्ण की शक्ति दाता।
पुण्य प्रताप से जिसके बहे कृपा धारा।।

प्यार ऐसा बरसाती बरसाने की राधा।
भगवान बन जाए भक्त उसका आला।।

सागर मिलने नदी से व्यग्र जैसे होता।
नदी भी करती समर्पण अपना सारा।।

यूँ भी कहिए तो कहाँ भेद कृष्ण-राधा।
जो भी समझा वहीं असल राज जाना।।
 
जीवन में उसको दबोचे कैसे फिर माया।
नाम ले जो भी ता-उम्र कहता राधा-राधा।।

नलिनतारकेश

जन्माष्टमी की बधाई

ले लूं बलैया ओ नटखट मोरे कान्हा।
बिना बताएं चुराया दिल तूने कान्हा।।

मैं क्या जानता तुझे,कहाँ ज्ञान अपार।
मगर तेरी चितवन का,हुआ ये कमाल।।

हो गया हूँ मैं तेरी छाया जाने कैसे कान्हा।।

अधर की रसीली मुस्कान का चला ऐसा वार। 
सहज ही हो गया तेरी बांकी अदा का शिकार।।

गीत गाता हूँ तेरे जो तृप्त करते हैं मुझे कान्हा।।

क्या कहूँ कैसे कहूँ बिन तेरे नहीं होता गुजारा यार।
लगा के गले अब मुझे भवसागर से करा दे तू पार।।

 तेरी शरण की गुजारिश बस है अब मुझे कान्हा।।

नलिनतारकेश

Tuesday, 5 September 2023

577:ग़ज़ल: कन्हैया तेरी जयजयकार

तेरे मयखाने से बस एक घूंट की है मुझे दरकार कन्हैया।
रहम कर जरा मुझ पर बस यही है तुझसे गुहार कन्हैया।।

छके-छके से लोग देखता हूँ दर पे लड़खड़ाते हुए जब। 
सोचता कितनी मस्ती होगी प्यालों में दिलदार कन्हैया।।

एक बार,बस एक बार दीदार हों,लड़ें निगाहें तेरी-मेरी।
हो जाएगी ये टूटी कश्ती भी भवसागर से पार कन्हैया।। 

ज़र्रे-ज़र्रे पर तेरी बांसुरी ही तो गमक के साथ है महके। सुना दे कभी तो ख्वाब या हकीकत,हूँ बेकरार कन्हैया।।

राधा,मीरा,रसखान,सूर जाने कितनों को बनाया है अपना। 
"उस्ताद"थामे कलेजा खड़ा,बांध दे गन्डा सरकार कन्हैया।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Monday, 4 September 2023

576:ग़ज़ल:चुम्बन को आती

दर्द तो खुदा की हम पर बड़ी नेमत है।
जो सिखाती है हमें उसकी इबादत है।।

कदम दर कदम बढ़ाने से मंजिल बढ़ रही।
कतई डरना नहीं यही असली जियारत* है।।*तीर्थयात्रा

हम यहाँ हैरां-परेशां हैं,और आप बस खामोश हैं। 
जनाब खोल सिले लब कहिए तो सब खैरियत है।।

यूँ तो बस चुपचाप सहती है जुल्म पर जुल्म हमारे।
हां हद पार हो तो सब हेकड़ी निकालती कुदरत है।।

तहम्मुल* का दायरा बढ़ाने को फकत "उस्ताद"।*सहनशीलता 
रुखसार पर आपके चुंबन को आती मुसीबत है।।


नलिनतारकेश@उस्ताद