Thursday, 12 October 2023

606:ग़ज़ल: छलावा देकर

बहुत कहा मैंने अब तुम भी तो कुछ कहो।
जो कुछ है दिल में बेहिचक उसे बहने दो।।

हलक में फंसकर जिगर को जो चीर रहा है।
होता है गुबार हल्का साफ़गोई से जान लो।।

एक-एक कदम रखकर ही आगे फासले मिटते हैं। 
शुरू में कांपते जरूर हैं पर फिक्र तुम ये  छोड़ दो।।
 
तकदीर तो संवरती है बस तदबीर को गले लगाने से।
सौ फीसदी बात है सच्ची मान जाओ इस तकरीर को।।

छलावा देकर बुला तो लेता है हर बार अपनी अंजुमन में।
गली में "उस्ताद" अपनी भटकायेगा कब तलक बता तो।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

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