Monday, 9 October 2023

603: ग़ज़ल: सब नाचते प्यालों से

जो चाहते नहीं कभी हम औरों से।
अक्सर करते वही हम अपनों से।। 

जो कुछ मिलता नहीं हकीकत में।
बहलाए है दिल उसको ख्वाबों से।।

फासला जो बढ़ गया है हमारे दरमियाँ।
आओ चलो सुलझा लें बैठकर बातों से।।

होगी कभी सर्दी तो कभी धूप मौसम में।
सफर तो करना होगा गुजर कर राहों से।।

किससे रखें उम्मीद और किससे नाउम्मीदी।
वक्त के हाथ सब नाचते "उस्ताद" प्यादों से।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

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