Saturday, 7 October 2023

602: ग़ज़ल: बेसुधी का ऐसा आलम

बेसुधी का ऐसा आलम कि क्या कहें।
तेरी चाहत का है ये नतीजा क्या करें।।

हवाओं से आ रही है तेरे दीदार की खुशबू।
मसला है ये आंखिर सांसों में कितना भरें।।

होंठ बुदबुदाते हैं तो कभी धड़कन में बजता है।
नाम का जादू तेरे भला किस-किससे हम कहें।।

आंखों में तैरती है अब हसीन सूरत तेरी।
कब तलक बंद पलकों में राज ये छुपाएं।।

"उस्ताद" सच कहें तो अब तेरी जरूरत नहीं।
हमसे ज्यादा तो अब हम आपको बेचैन पाएं।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

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