Friday, 6 October 2023

601: ग़ज़ल: दिल बहलाने को

किताबें रिसाले पढ़ीं तो बहुत मगर याद कहां।
एक लफ्ज़ दिल को मगर याद बस प्यार रहा।।

रात-दिन जिसके ख्यालों में गुजारी हमने यारब।
उसने भी मगर कहाँ जिंदगी में जरा साथ दिया।।

उम्मीद ए लौ टिमटिमाती तो है कहीं दूर फलक में। 
चलो-चल कर देखें क्या है तकदीर में अपनी बदा।।

दुनियावी असबाब में इस कदर मशगूल रहे हम।
तराना ए रूह जो था सुकूं का वो अनसुना किया।।

जिंदगी की जुल्फों के सुलझेंगे न तुमसे पेंचोखम।
दिल मगर बहलाने को "उस्ताद" है कुछ नहीं बुरा।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

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