Tuesday, 10 October 2023

604: ग़ज़ल: खुदा बचाए

लिखता रहा हूँ गजल बस इसलिए।
घाव नासूर न बन जाए रिसते हुए।।

देख जमाने भर के रंजोगम आसपास ।
दिल ए चैन कहाँ भले लाख संभालिए।।

ऐन मौके पर भूलते हो केवल हमें।
अब कहो कैसे तुझे अपना बताएं।।

सच-सच कहें तो आफत चुप रहे तो भी।
भला ऐसे हालत साथ तेरा कैसे  निभाएं।।

जुबान से कहो कुछ और दिल में कुछ रखो।
"उस्ताद" ख़ामख़याली* से तेरी खुदा बचाए।।*फ़र्ज़ी सोच

नलिनतारकेश @उस्ताद

 

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