Thursday, 5 October 2023

600:ग़ज़ल: इतनी कही,इतनी लिखी

ग़ज़ल संख्या 600
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इतनी कहीं,इतनी लिखीं कि खुद ही ग़ज़ल हो गया। जिंदगी की पढ़ी शिद्दत से तुज़ुक* तो निर्मल हो गया।।*आत्मकथा

प्रीत की डोर बंधी पेंगे इतनी इस कदर उठीं दिल में।
अपने दिलदार की आंख का वो तो काजल हो गया।।

जमाने ने बेतकल्लुफ दिले-किताब खोल दिखा दी। 
सहज हो उनके लिए जब वो महज रहल* हो गया।।
*किताब रखने की चौकी

सावन का मौसम अंगड़ाई ले दहलीज से जो गुजरा। बेकरार मन उसका बेसाख्ता तब्दील बादल हो गया।।

इनायतें उसकी मुझ पर हर सांस इतनी अनोखी रहीं।
सजदे को झुका "उस्ताद" तो नमाजे फजल हो गया।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

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