Monday, 18 September 2023

588:ग़ज़ल: निभाओगे

वायदे  करके भी जो नहीं आओगे।
भला कैसे साथ तुम निभाओगे।।

घड़ी की सुईयां भी थक गईं इंतजार से।
कहो क्या वक्त को भी दोषी ठहराओगे।।

गुलशन,समंदर,फलक और ये तारे सभी।
कुदरत परेशां है क्या तुम सुधर पाओगे।।

हर कदम झूठ,फरेब और बेईमानी।
खुदा का भी खौफ अब न खाओगे?

धड़कनें तेज कदमताल कर रही हैं "उस्ताद"।
हम पर ना सही इन पर तो रहम बरसाओगे।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

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