Monday, 4 September 2023

576:ग़ज़ल:चुम्बन को आती

दर्द तो खुदा की हम पर बड़ी नेमत है।
जो सिखाती है हमें उसकी इबादत है।।

कदम दर कदम बढ़ाने से मंजिल बढ़ रही।
कतई डरना नहीं यही असली जियारत* है।।*तीर्थयात्रा

हम यहाँ हैरां-परेशां हैं,और आप बस खामोश हैं। 
जनाब खोल सिले लब कहिए तो सब खैरियत है।।

यूँ तो बस चुपचाप सहती है जुल्म पर जुल्म हमारे।
हां हद पार हो तो सब हेकड़ी निकालती कुदरत है।।

तहम्मुल* का दायरा बढ़ाने को फकत "उस्ताद"।*सहनशीलता 
रुखसार पर आपके चुंबन को आती मुसीबत है।।


नलिनतारकेश@उस्ताद 

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