Friday, 22 September 2023

592:ग़ज़ल: ईनाम कर दूं

चलो एक ग़ज़ल और तेरे नाम कर दूं।
अब ये इश्क मैं अपना सरेआम कर दूं।।

कड़ी धूप है जमीन रेत भी खूब तप रही।
तू चले साथ तो दिन को भी शाम कर दूं।।

ये पस-ए-मंजर* हुआ खूबसूरत तेरे वजूद से।*पृष्ठभूमि
गजब की तेरी इस जीनत* को सलाम कर दूं।।*शोभा

तेरे दर पर आया हूँ पूरे होश-ओ-हवास से यारब।
जो एक इशारा करे तो खुद को गुमनाम कर दूं।।

तू जो मेरा होकर मुझे हर गम से निजात दे रहा।
बता "उस्ताद" इस पर अता क्या ईनाम कर दूं।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

No comments:

Post a Comment