Wednesday, 20 September 2023

590: ग़ज़ल: जड़ों को जमीं से

सारे दुनिया के लिए,नेकी मुहब्बत का भाव रखता है।
उसके चेहरे से,यूँ ही नहीं माशाल्लाह,नूर टपकता है।।

लोग कोशिश में लगे हैं,उसका उसका कद नापने की।
पर भला उसका ओर-छोर,किसी को कहाँ दिखता है।। 

जुगनुओं की फौज,अब सूरज पर धावा बोलेगी।
बस यही सोचकर,सारा जहां पुरजोर हंसता है।।

जद्दोजहद कर लो,नहीं बोलना है तो नहीं बोलेगा। 
हां जब खोलेगा लब कभी तो,बस वही बोलता है।।

रिसालों-किताबों को,जितना जज़्ब कर रहे नए बच्चे।
तौबा-तौबा कसम से,ये दिमाग और शातिर चलता है।।

शागिर्द चाहे कितनी भी ऊंचाइयों को छू ले मगर।
जड़ों को पुख्ता,जमीं पर तो "उस्ताद" ही करता है।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

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