Wednesday 13 September 2023

584: ग़ज़ल: हम नहीं निभा पायेंगे

पुरसाहाल लेंगे नहीं कभी वो,भूल के भी बरसो में।
हां मिलेंगे महफिल में जैसे,बगैर मिले मर ही जाते।।

नए जमाने के शउर तो,तौबा-तौबा गले उतरते नहीं।
काम जब पड़ेगा तो,श्रीमान गले आपके पड़ जाएंगे।।

तुरपन करके,जैसे-तैसे चलाते थे काम,पहन फटी नेकर। अब तो मियां बाजार में बिक रहे,क्या खूब ब्रांडेड चिथड़े।

वक्त का ऊंट बेहयायी से बदलेगा करवट,किसे गुमाँ था।
नाते-रिश्ते कौन पूछे,मरे तो हेल्पलाइन से अर्थी उठाएंगे।।

तन्हा रहना ही हमें रास आता,सच कहते खुदा कसम।
ये दुनियावी चोंचले तो "उस्ताद" हम नहीं निभा पायेंगे।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

 

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