Friday, 1 September 2023

572: ग़ज़ल: चिंगारी अभी बाकी है

निगाहों में कशिश की चिंगारी अभी बाकी है।
सो दिल में धड़कती आशिकी अभी बाकी है।।

उम्र हो रही है तो वो बस जमाने के लिए है। 
प्यास पर भौंरे सी यूँ रसीली अभी बाकी है।।

किताबें पढ़ के तो देख लीं हैं बहुत हमने यारब।
हसरत मगर दिलों को पढ़ने की अभी बाकी है।।

शराब,साकी,जाम,मयखाने में सभी तो हैं मौजूद।
निगाह उसके दीदार को अखरती अभी बाकी है।।

कुछ कहेंगे "उस्ताद" इसको मृगतृष्णा तुम्हारी।
मगर खोज को कुलांचे तो नयी अभी बाकी हैं।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

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