Saturday, 4 November 2023

610: ग़ज़ल in Malaysia

रोशनी हर गली-कूचे में बिखरी हुई है ऐसे।
आसमां चांद-तारों संग उतरा जमीं हो जैसे।।

दीये की लौ जगमगा रही है हर चेहरे पर।
खुशगवार महौल की जैसे बरसात बरसे।।

रहे मेहरबान खुदा तो कहो क्या गम है।
हर तरफ गुलशन महकते हुए हैं दिखते।।

उसकी रज़ा हर हाल जब बन जाए तेरी।
नाउम्मीदी को भला कहाँ कोई भी तरसे।।

जिस भी रास्ते अब गुजरते हैं "उस्ताद" हम।
पलक-पांवडे बिछाए लोग सजदे कर रहे।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

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