Sunday, 5 November 2023

ग़ज़ल:611:in Malaysia 3

कभी भरा आकाश को बांहों में तो कभी फर्श पर लेटे।
जिन्दगी ने भी क्या-कुछ रंग झोली में फकीरों की भरे।। 

गुमान खुद पर करें तो कैसे करें कहो अब तुम ही भला।
हम एक सांस जब बगैर खुदा ए मेहरबानी भर न सके।।

ये तेरा मुल्क है वो मेरा जेहन में ऐसा कुछ आता नहीं।
हम सच कहें तो हर जगह खुश रहे खुदा के फजल से।।

कतरा-कतरा इबादत ही दिखती है कायनात में उसकी।
जाने कैसे-कैसे ख़्वाबों को हकीकत में वो तब्दील करे।।

"उस्ताद" हम तो उसकी कलाकारी देख जां-निसार हैं।
नायाब बढ़कर एक से एक रंग वो लाता है भला कैसे।।

नलिनतारकेश@उस्ताद 

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