Friday, 10 November 2023

612: ग़ज़ल :जिन्दगी मेहरबान तो शुक्रिया रहे।

जिन्दगी मेहरबान जब हम पर तो शुक्रिया रहे।
लम्हा-लम्हा उसकी ही बदौलत लुत्फ उठा रहे।।

रंगीन दिन तो रात एक कदम और भी आगे है।
हम देख यहाँ की रौनक हैरत में पड़ते जा रहे।।

बरसात कभी भी खुलकर हो जा रही है यहाँ।
तेज धूप ऑखे दिखाए उसे परवाह कहाँ रहे।।

मेट्रो,टैक्सी बैठ हर गली चौराहे नाप रहे हम।
तेरी चौखट की चाहत में हम कदम बढ़ा रहे।।

समन्दर तो खारापन पीता रहा है सदा के लिए।
हम ही यार हर गाम हलकान हो तौबा मचा रहे।।

रेत पर समन्दर किनारे लिखे नाम से क्या फायदा।
दिन-रात बेखौफ मगर हम "उस्ताद" लिखवा रहे।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

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