Friday, 31 December 2021

गजल- 412: नववर्ष शुभारंभ 2022

नवल वर्ष के आगमन पर आप सबका स्वागत अभिनन्दन 
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HAPPY NEW YEAR 2022 TO ALL 

रंग बिखेरे ख्वाब सारे हकीकत की जमीन पर।
मयखानों की मस्ती यूँ ही छाई रहे तेरी हंसी पर।।

चले ये सिलसिला आज,कल नहीं सालों-साल यूँ ही।
जोशे जुनून की खुशबू ले सदके तेरी दीवानगी पर।।

जिधर कदम चल पड़ें हवा वसंती हो जाए उस तरफ।
मंजिल दर मंजिल छाएं तेरे बाज़ौकी* सुरखाबी** पर।।
* कलापूर्ण **विलक्षण 

जादू जगाएं हैं जो तूने घनी जुल्फों के साए तले।
ता-उम्र सजे खुसूसी* महफिलों का दौर वहीं पर।।*खास

नूरानी आँखों की कशिश मतवाला बना दे सबको।
पिए "उस्ताद" हर कोई यहाँ तेरी-मेरी सलामती पर।।

@नलिनतारकेश

Tuesday, 28 December 2021

411:गजल- इनायते करम अपना तो फरमाइए

सर्दीली हवाओं का भी तो जनाब कभी लुत्फ उठाइए।
कश्मीर ना सही अपनी छत पर ही जरा टहल आइए।।

माशाअल्लाह कागज के पुलिन्दे नहीं जो गल जायेंगे आप। 
सरहद की धूप,सर्दी खड़े जज्बे को दिल से सलाम ठोकिए।।

गरमा-गरम चुस्कियां चाय की भी जरा पिया कीजिए।
जरूरी नहीं कि हर बार हाथ में आप जाम ही लीजिए।।

पेशानी की सलवटो के लिए बिस्तर ही ज्यादा मुफीद है।
कुछ घड़ी सुकूने जिंदगी को ये हिसाब-किताब छोड़िए।।

जुनून जो रहेगा दिल में हर जंग जीत लेंगे आप।
यूँ ना हर बात-बेबात अपनी सूरत रोनी बनाईए।।

जलवों का जिक्र करूं कैसे "उस्ताद" बता तो सही।
इनायते करम जरा अपना इस नाचीज तो फरमाइए।।

@नलिनतारकेश

Monday, 27 December 2021

410: गजल --हमें तो नींद आती

गुनगुनी धूप जाड़ों की पीठ को जब भी है सहलाती।
यादें फिर तुम्हारे साथ की दिलों में अपने गुनगुनाती।।

गुलों में सुबह-सुबह ओस की नन्ही बूदें जब गुनगुनाती।
हौले-हौले कहें बातें कुछ राज की लबों पर मुस्कुराती।।

नामचीन होकर दुनिया को रोशन कर रहा जो एक दिया। 
फ़ना कर खुद को जब तलक खामोश जलती रही बाती।।

धड़कनें गीत गाती है डूब के जब कभी तुम्हारे प्यार के। दर्द भरी रातें भी रूहे दिल को हैं महकाने करीब आती।।

सर्द रातें चुपचाप दबे पाँव लेती हैं आकर अंगड़ाईयां।
जुल्फों में गरम लिहाफ के "उस्ताद" हमें तो नींद आती।।

@नलिनतारकेश

Sunday, 26 December 2021

गजल 409 नशे में चूर हो गए

तुम हमारे हम तुम्हारे जबसे हो गए। 
जिंदगी के रास्ते आसां तबसे हो गए।। 

अजनबी थे हम कभी एक मोड़ पर यारब।
पड़ी पेंगें प्यार की तो एक दूजे के हो गए।।

परिंदे खुले आकाश में उड़ते हुए देखिए बांवले हैं। 
ख्वाब हमारे भी हकीकत में उनके जैसे हो गए।।

किसी ने कब था सोचा कि ऐसा भी हो जाएगा।
अब तो रेत में हर ओर गुलशन महकते हो गए।।

जश्ने बहार का दौर तो अभी शुरू हुआ है जनाब।
आप तो अभी से ही "उस्ताद" चूर नशे में हो गए।।

@नलिनतारकेश

Saturday, 18 December 2021

गजल:408 शिरकते महफिल

तू जानता है मेरे दिल में क्या कुछ धड़कता है।
मगर गजब है फिर भी मासूम बना फिरता है।।

बहलाने-फुसलाने की भी एक हद होती है यारब।
हर घड़ी मगर तू तो बहाना फासले का ढूंढता है।।

जाने कब से तेरी चौखट,सजदा किए बैठा हूँ मैं।
क्या करूं खत्म नहीं कभी तेरा इन्तज़ार होता है।।

ये सच है तेरे बगैर जिंदा नहीं मैं मुर्दा ही रहा हूँ।
हद है लेकिन तू तब भी मगर मौज पूरी लेता है।।

आ जो जाए दिल तेरा किसी की मासूमियत पर।
उसकी खातिर तू तो सारे अपने उसूल तोड़ता है।।

जाने कितने आए और चले गए "उस्ताद" यहाँ से।
शिरकते महफिल में अपनी कुछ खास ही चुनता है।।

@नलिन तारकेश

Friday, 17 December 2021

गजल-407 :असल उस्ताद कहते हैं

जाने कैसे कुछ लोग अजब सांचे में ढले होते हैं।
अपनी कौम की खातिर जो हर जुल्म सहते हैं।।

मुद्दतों बाद कभी-कभार अब लोग मिलते हैं।
फकत देखने एक दूजे को वो सब तरसते  हैं।।

वो क्या दिन देखे थे गलबहियां डाले कभी हमने।
आज तो भीड़ में भी लोग बस तन्हा ही रहते हैं।।

जाने कैसा ये दौर आया जरा कहो तो यारों। 
मिला पीठ से पीठ भी गुमशुदा लोग रहते हैं।।

गम,तकलीफें सारी आस्ताने में जिसके दम तोड़ दें। जमाने वाले तो उसी को असल "उस्ताद" कहते हैं।।

@नलिनतारकेश

Tuesday, 14 December 2021

गजल- 406 :भोली नादानियां


भोली नादानियां हम भला अपनी किससे कहें।
समझ आयी नहीं ये दुनिया कभी किससे कहें।।

फिरते रहे जो तसव्वुफ़* हम सजाए हुए ख्वाबों में।*अध्यात्मवाद
वो रंगों में दिखी ही नहीं फाकामस्ती किससे कहें।।

हर शख्स यहाँ अजब गुमशुदा सा खुद में मिला।
गुल उगते ही नहीं यारों बंजर जमीं किससे कहें।।

खामोश हैं कोहरे की चादर लिपट रिश्ते सारे।
महकती नहीं इत्र सी हँसी कहीं किससे कहें।।

परेशां है "उस्ताद" मुस्तकबिल के लिए इनके।
शागिर्द नहीं कूवते फना दिखती किससे कहें।।

@नलिनतारकेश 

Monday, 13 December 2021

यायावर सा मन

यायावर सा मन भटकता जो रहा सदा मेरा।
जाकर मिला आज उसको आश्रय अब तेरा।।

वरना तो था जरा से दर्द पर क्रंदन ही नित्य करना।
या कि मिली पल भर की खुशी में  खिलखिलाना।।

मगर ऐसे तो रिस-रिस कर पोर-पोर ही चटक गया।
उलझ मायाजाल में तुझे प्यारे सचमुच ही भूल गया।।

तू ही तो है ब्रम्हाण्ड नायक मैं रहा सर्वदा अंशी तेरा।
जाने क्यों फिर इस बात को सिरे से ही नकार दिया।।

जो हुआ सो हुआ क्यों व्यर्थ अब वक्त को कोसना।
तेरी कृपा अनुदान से जब स्वयं को मैं पहचान रहा।।

अब तो बस शरणागति का उपहार जबसे मुझको मिला।
प्रयास है बस यही एक सांस भी व्यर्थ न रुके सिलसिला।।

@नलिनतारकेश

Sunday, 12 December 2021

गजल-405 कायल करके ही रहेंगे।

तुझे चाहा है हमने तो दर्द भी सहेंगे।
जिक्र किसी से न मगर इसका करेंगे।।

अश्क सरेआम तेरे गम में बहाए क्यों।
अंधेरी रात तन्हा हम चुपचाप रोएंगे।।

फासले हैं तो बस एक तेरी जिद के चलते।
चौखट से मगर कभी हम उठ के न जाएंगे।।

आशिकों की मुसलसल* चाहत रहा है तू।*लगातार 
बगैर अपना बनाए तुझे जाने कहाँ देंगे।।

देखा ही कहाँ है "उस्ताद" तूने अंदाज़ अपना।
देर-सबेर कायल हम तूझे अपना करके ही रहेंगे।।

@नलिनतारकेश

Saturday, 11 December 2021

महिमा राम नाम की

महिमा राम नाम की
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जिन्दगी कृपा संग संवरने लगी। 
राम नाम महिमा पता जो लगी।।
 
श्रृंगार की जरूरत अब नहीं रही।
जबसे लौ राम जी की लगने लगी।।

हर घड़ी हर सांस बस रटन ये लगी।
राम-राम जपते ही उम्र कटने लगी।।

जिधर देखूं बस वो ही मूरत न्यारी दिखी।
नलिन-नील सांवली छटा ही दिखने लगी।।

 दर्द,पीड़ा की बयार अब थम सारी गई।
 हर दिशा बस हवा अनुकूल बहने लगी।।

स्वपन नहीं हकीकत की ये बात है सही।
मंझधार मेरी ये नाव भी पार लगने लगी।।

@नलिनतारकेश

Wednesday, 8 December 2021

विनम्र श्रद्धांजलि -विपिन रावत एवं अन्य सभी को।

तमिलनाडु में सेना के हेलिकॉप्टर के दुर्घटनाग्रस्त होने के कारण भारत के प्रथम CDS जनरल बिपिन रावत जी व उनकी धर्मपत्नी एवं सेना के जवानों के निधन का दुखद समाचार प्राप्त हुआ। उनका असामयिक निधन देश के लिए अपूरणीय क्षति है।

ईश्वर दिवंगत आत्माओं को अपने श्रीचरणों में स्थान दे।
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                          ॐ शांति 

निःशब्द है राष्ट्र का आज हृदय प्रत्येक।
भावना का सिन्धु ज्वार उमड़ रहा है।।
8 दिसंबर 21 का लोमहर्षक चित्कार। 
दावानल में सब को भस्म कर रहा है।। 
अरे दुर्भाग्य बता तो सही जरा हमारे।
ऐसा भला क्यों क्रूर मजाक करता है।।
अतुल शौर्य,अटूट निष्ठा राष्ट्रभक्ति की।
इतनी कठोर तू काहे परीक्षा लेता है।।
हे ईश्वर तुझसे भी है प्रश्न,अब सत्य बता दे।
दुर्दांत घटना की ऐसी क्यों स्वीकृति देता है???

@नलिनतारकेश

Tuesday, 7 December 2021

गजल-404 : रखो गुलों से ताल्लुक

संग कांटों के खुद ही लहूलुहान होगे।
रखो गुलों से ताल्लुक महक जाओगे।।
वह चाहता जो तुम्हें आता जरूर मिलने। 
यूँ चाहत में सिसकियां कब तलक भरोगे।।
गुलशन,पहाड़,झरने बहुत कुछ है खूबसूरत यहाँ।
देखोगे तुम तभी मगर यार जब नजरिया बदलोगे।।
मिला है जो उसी में तसल्ली रखना सीखो। 
यूँ तो वर्ना तुम हर कदम ही भटकते रहोगे।।
समझे "उस्ताद" अगर जो बेज़ुबां का दर्द। 
निगाहें चार तुम परवरदिगार से कर पाओगे।।

@नलिनतारकेश

Monday, 6 December 2021

गजल: 403- पूरा डेंचर बदलते



किया है इकरारे इश्क जब से ख्वाबों में उसने।
होकर आवारा फकीर सा उसे ढूंढता हूँ तबसे।।

वो रूठता भी है तो बड़ी पाकीज़गी से मुझसे।
यारों का होता ही है लहजा मुख्तलिफ* सबसे।।*अलग सा

सदा से मुतमईन* रहा हूँ उसकी बांकी अदा पर।*निश्चिंत 
निकलेगा मेरा भी दूधिया चांद बादलों को चीरते।।

हर घड़ी,हर शै करता हूँ दीदार बस उसका।  
रंग गहरा चढ़ा है मुझे आशिकी का जबसे।।
 
हैरान हों वो जिनके इश्क में अभी दूधिया दांत टूटे।  
"उस्ताद" हम तो सुकूं से हैं पूरा डेंचर बदलते।।

@नलिनतारकेश 

गजल:402 - मंझे उस्ताद भी--

ना सही जाम,चाय की चुस्कियां ही लीजिए।
कभी साथ बैठ हमारे गुफ़्तगू भी कीजिए।।

वक्त की बेड़ियों में यूँ तो आवाज नहीं होती। 
थोड़ा ही सही मगर दर्द अपना बयां करिए।।

महफिलें तो चलती हैं हवाओं के बहने से।
झरोखों को अपने जरा खुला तो छोड़िए।।

माना है दुनिया में रंज,तकलीफ ही चारों तरफ।
चेहरा आफताबे* रुख भी तो करके जरा देखिए।।*सूर्य 

मंझे "उस्ताद" भी यूँ तो भँवर में डूब जाते हैं।
किनारों में खड़े क्यों भला फिर सिसकियाँ भरिए।।

@नलिनतारकेश

Saturday, 4 December 2021

ग़ज़ल-401- कुर्बान करी है।

जबसे तुझ संग इश्क की बान* लगी है।*आदत
खुद को अपनी एक पहचान मिली है।।

रेशा-रेशा मन ये बिखर गया था।
ऊँची अब जाकर उड़ान भरी है।।

बहके सुर सब सधे दर पर आज तेरे।
इनायते करम खालिस तान लगी है।। 

दिल की गली अब कोई जंचता ही नहीं। 
बगैर तेरे ये तो कब से सुनसान पड़ी है।।

रहा "उस्ताद" कहाँ कुछ भी मेरा अपना।
चाहत थीं जो सारी तुझपे कुर्बान करी है।।

@नलिन तारकेश

Friday, 3 December 2021

गजल: 400-वजूद अब तेरा पैवस्त हो गया है

गजल संख्या : 400
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ऐसा क्या हमसे गुनाह हुआ है।
तूने जो हमसे किनारा किया है।।
चाहने की कसमें तो बहुत खाईं थी तूने।
बता फिर भला क्यों ऐसा सिला दिया है।। 
सदाएं* सुनने को तेरी तरसते हैं अब तो। *आवाज 
वक्त ने जाने ये कब का बदला लिया है।।
अज़िय्यत* तुझे क्या पता जो हमें हो रही।*यातना
तूने मुस्कुरा के तो बस ना ही कहा है।।
तेरी रजा जो भी हो फैसला आखिर तेरा।
वजूद अब तेरा "उस्ताद" पैवस्त* हो गया है।।
*अंदर धंसकर अच्छे से बैठना।

@नलिन तारकेश

Tuesday, 26 October 2021

399- गजल: सिक्कों से न तौलिए

रोना रोकर वक्त की कमी का नजरअंदाज न कीजिए। रिश्तो की दूरियों को यूँ बेवजह आप झटक न तोड़िए।।

दौलत शोहरत कमा रहे तो ये बात बेमिसाल है।
सोने,चांदी की चमक से मगर यूँ अन्धे न होइए।।

दिल धड़कता है बस असल प्यार के अहसास से। दिलो-दिमाग में इसकी कमी जरा न होने दीजिए।। 

बदला है मिजाज़े वक्त मगर सँवारना तो हमें ही होगा। 
जरा-जरा सी हर बात पर हुजूर यूँ हौसला न छोड़िए।।

आँखों में सच्चे प्यार की कशिश अलग ही चमकती है। "उस्ताद"हर बात को महज सिक्कों से न  तौलिए।। 

नलिनतारकेश

Monday, 25 October 2021

398:गजल- खुदा ही ढाढस बंधाता है मुझे।

दर्दे सैलाब उफन जब-जब भी डुबोता है मुझे।
लिखके ग़ज़ल कलम तब-तब बचाता है मुझे।।

उजालों के बदलते रंग बहुत देख लिए जनाब।
अब तो बस ठहरा हुआ अंधेरा सुहाता है मुझे।।

हर कोई अपने आप में इस तरह गुम है। 
मिलाते हाथ भी लगता चिढ़ाता है मुझे।।

सुर-ताल,नफासत-सदाकत सब भूल जाइए।
तहज़ीब का यूं बेवजह रोना सताता है मुझे।।

"उस्ताद" यहाँ नहीं कोई किसी का सच मानिए।
हर हाल बस एक खुदा ही ढाढस बंधाता है मुझे।।

नलिनतारकेश।।

Saturday, 23 October 2021

397 : गजल --- वक्त का सिला

वो शहर में आकर भी न मुझसे मिला। 
वक्त का देखने को मिला ऐसा सिला।।

तन्हाई ओढता-बिछाता ही अब चल रहा।
आईने से मुँह मोड़ कहाँ जीना हो सका।।

रूह तो जाने कब की फना हो गई यारब।
देखना है जिस्म बिना इसके कब तक चला।।

वो करीब होकर भी मुझसे हैं दूर क्यों।
इस बात का ता-उम्र पता न लग सका।।

"उस्ताद" खोए हैं शेखचिल्ली से ख्वाब संजोए।
यूँ उसने तो बड़ी साफगोई से इनकार कर दिया।।

नलिनतारकेश 

Wednesday, 22 September 2021

396: गजल- मोबाइल मीनिया

मोबाइल मीनिया 

ये कौन सा खिलौना लग गया है हाथ हमारे।
इशारों पर अब जिसके हम खुद ही हैं नाचते।।

आए-जाए कोई या बैठे बगल सब अपनी बला से।
हम तो बस लुत्फ उठा रहे घर में बैठ जमाने भरके।।

सूझता अब कुछ नहीं रात है कि दिन पसरा हुआ। 
लगता यहीं सारी दुनिया आ गई हमारे शिकंजे में।।

अपनी अलग एक दुनिया बसा ली सबने अब तो।
हो मगन उसी में सक़ते के आलम* डूबे दिख रहे।।
*समाधि की अवस्था

 गूगल बाबा ने "उस्ताद" के इल्म को ठंडा कर दिया।
अब तो आता ही नहीं कोई उनके हाथ-पांव दबाने।।

@नलिनतारकेश

Tuesday, 21 September 2021

395: गजल- दुनिया कहाँ समझ पाया हूँ

ये दुनिया कहाँ अब तलक समझ मैं पाया हूँ।
अटक तभी तो ना,हां की मंझधार जाता हूँ।।

भूलभुल्लिया से हैं रास्ते यहाँ सब तरफ देखिए।
बाहर निकलते भी दामन कहीं फंसा लेता हूँ।।

हर तरफ चकाचौंध रंग-बिरंगी अजब-गजब है यारब।
ख्वाबों के बिखरे कांच जब-जब टकटकी लगाता हूँ।।

मशक्कत कितनी करी,हर बार बहानों की फौज से। 
मगर है जन्नत यहीं,कहाँ इसके सुबूत जुटा पाया हूँ।।

सिवा तन्हाई के कौन सी शय देती है सुकून कहो तो।
पूछता हूँ "उस्ताद" से मगर हर बार खामोश पाता हूँ।।

@नलिनतारकेश

Monday, 20 September 2021

394: गजल- फैसले कौन खरे उतरे?

लीजिए दो दिन हुए भी नहीं जलजले से निकले।
जनाब बौछार की फिर से फरमाइश करने लगे।।

गर्मी,सर्दी,बरसात ये तो आयेंगी जिंदगी में आपकी।
डरते भला क्यों हैं फिर आप इम्तहानों से इन हल्के।।

दर्द के जाम हलक से उतरने पर भर देते हैं खुशी।
सीखिए जिन्दगी में सबर और समझौते भी करने।।

कारखानों की तरह नहीं हांकिए हसीन जिंदगी को।
कठपुतली बनाके क्यों मासूमियत हैं इसकी छीनते।।

"उस्ताद" छोड़ दिया कीजिए कुछ तो परवरदिगार पर भी।
वैसे कहिए फैसले आपके अब तलक कौन से खरे उतरे।।

@नलिनतारकेश

Friday, 17 September 2021

393: गजल- किस्मत गले लगायेगी

यार के दीदार को जब लगन सच्ची लग जायेगी।
कहो कौन सी भला चट्टान जो तुझे रोक पायेगी।।

प्यार तो है मासूम शय* गुलों से भी ज्यादा मुलायम।*वस्तु
जो आए अपने पर तो देखना यही सब को डरायेगी।।

हैं राहें रपटीली बड़ी जो मंजिल को उसकी तरफ जातीं। रखना हर कदम को फूंक-फूंक वरना तुझे यही गिरायेंगीं।

पत्थरों को भी जैसे लहरें छूकर बना देती हैं शालिग्राम*। जज्बात निकले दिल से गहरे तो किस्मत गले लगायेगी।।
*भगवान 

चाह के तो देखिए पूरी शिद्दत से एक बार उसे"उस्ताद"। कायनात भी भला कहाँ आपकी हसरत ये रोक पायेगी।।

@नलिनतारकेश

Thursday, 16 September 2021

392: गजल- उस्ताद जी सोमरस गटक रहे

पुरजोर जोश में कल रात से बादल बरस रहे।
खिले तन-मन सभी जो हाल तक झुलस रहे।।

कहो पता था किसे गजब ऐसा भी हाल हो जायेगा।
देख सैलाब पानी का सब रुकने को इसके तरस रहे।।

देता है छप्पर फाड़ के खुदा जब अपनी पर आए तो।
मुँह छुपाए खड़े हैं सभी कल तक जो थे तंज कस रहे।।

तरबतर हो गए घर की दहलीज लाँघी जो उन्होंने।
मुसाफिर तो हर दिन के जैसे बस यहाँ परबस रहे।।

उठाना अंदाज़े लुत्फ हर आदमी का तो जुदा रहा है। 
देख मौसम सुहाना "उस्ताद" जी गटक सोमरस रहे।।

@नलिनतारकेश

Wednesday, 15 September 2021

391: गजल- मौसम हुआ गुलाबी

मौसम हुआ गुलाबी तो ग़ज़ल ये लिखने लगा।
जो याद आई तुम्हारी तो सजदा मैं करने लगा।।

बादलों से बूंदे नाचती आकर मुझे जो छू रहीं।
हूं तुम्हारे बहुत पास अहसास सच होने लगा।।

परिंदों की चहचहाहट आँगन में कूकती है सुरमई।
लो तुम्हारी आवाज भी अब हर ओर मैं सुनने लगा।।

पत्ते हरे दरख़्त के अंगड़ाई ले जवां हो गए सारे।
खयाल में डूबा इस कदर कि तुम्हें ही देखने लगा।।

अब तो हवा भी मनचली हो साथ बहा ले जा रही मुझे। "उस्ताद" खुशबू से उसे पता तेरा शायद मिलने लगा।।

@नलिनतारकेश

Tuesday, 14 September 2021

राधाष्टमी की भक्तों को बहुत बहुत बधाई

राधाष्टमी की हार्दिक बधाई सभी भक्तों को
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कृष्ण को राधा ने जबसे आत्मरूप पूर्णतः स्वीकार कर लिया। 
भक्त का अपने ऐसे प्रभु ने बनना सेवक स्वीकार कर लिया।।

अब तो राधा के बस भ्रू-विलास का ही अनुसरण करते हैं प्रभु जी।
जगन्नाथ होकर भी भक्त के इशारों पर नाचना स्वीकार कर लिया।।

अब बिना राधा के कहो कौन सुनने को तैयार है बाँसुरी श्याम की।
कृष्ण को ही जब से राधा ने अपना प्राणाधार स्वीकार कर लिया।।

हंसी,ठिठोली या रूठ कर जिद खुद को मनाने की करती हों राधारानी।
कृष्ण ने बेहिचक हर प्रस्ताव राधा का चुपचाप से स्वीकार कर लिया।।

मृदुल "नलिन" चित्त भक्तों को जबसे ब्रजेश्वरी का ज्ञात ये सामर्थ्य हुआ।
कृष्ण को छोड़ सबने तबसे ही राधा को अपना भगवान स्वीकार कर लिया।।

                      ।। जय जय श्री राधे ।।
@नलिन तारकेश

390: गजल- हिन्दी का परचम फहराया जाए

390: गजल- हिन्दी का परचम फहराया जाए 

जुबां में आओ अब तो यूँ शहद घोला जाए।
मादरे जुबां में ही प्यारी गुफ्तगू किया जाए।।

जेहन में ख्वाब बुनते हैं हम जिसके सहारे।
लबों से उन्हीं लफ्ज़ों को गुनगुनाया जाए।।

गुलामी की जंजीरें हमें अब तो तोड़नी होंगी।
जुबां को अपनी हर हाल तरजीह दिया जाए।।

यूँ तो अच्छा है कि जानिए जितनी भी जुबानें। 
मगर क्योंकर अपना ककहरा भुलाया जाए।।

उर्दु ये अपनी मौसी बनी है हिन्दी के ही चलते।
चलो ये राज असल अब सबको बताया जाए।।

जो जोड़ती है दिलों को गहरे जड़ों से "उस्ताद"।
अपनी बोली का उसी आओ परचम फहराया जाए।।

@नलिनतारकेश

Monday, 13 September 2021

389: गजल- दामन ना छोड़िए

दिल में मस्ती औ जुनून आँखों में अपनी घोलिए। 
इनसे मिलने की कवायद इस तरह शुरू कीजिए।।

खायेंगे ये तो भाव बहुत ही हसीं सबसे ज्यादा जो ठहरे। 
हर हाल अब आप इनके नखरे उठाना सीख लीजिए।।

यूँ ना आसानी से गिरफ्त में प्यार की आयेंगे सरकार ये। दिल खोल उड़ेल अपना सब कुछ दरियादिली दिखाइए।।

हैं चाहने वाले एक नहीं इनके हजार मारे-मारे फिर रहे। दूसरों से अलग हटके जरा रूमानियत अपनी जताइए।।

भरम में हजार डाल जुल्फें छिटक बच के निकल जाएंगे। किसी भी कीमत मगर छोड़ने की भूल दामन न सोचिए।।

ये तो हैं उस्तादों के भी बड़े "उस्ताद" जानिए कसम से।
जनाब यूँ मुगालते में भी कभी इनको हल्के में न लीजिए।

@नलिनतारकेश

Saturday, 11 September 2021

388: गजल- अपना एक गांव बसा लीजिए

अपने भीतर एक गांव अपना बसा लीजिए। 
खुशहाल जिंदगी का मंजर यूँ सजा लीजिए।।

दौर बड़ा अजब अफरा-तफरी का है आया।
कश्ती किसी भी तरह अपनी बचा लीजिए।।

साजिन्दे साथ दें या ना दें ये उनकी मर्जी।
तरन्नुम में आप तो बस पूरा मजा लीजिए।।

गुलशन में हैं खिले गुल यूँ तो किसम-किसम के।
जो लगे कोई अजीज उसे अपना बना लीजिए।।

यूँ ही नहीं "उस्ताद" हर किसी को नसीहत बांटिए।
जरा तो होशोहवास खुद का भी लेखा-जोखा लीजिए।।

@नलिनतारकेश

Friday, 10 September 2021

387: गजल-मां कहाँ अब लोरी सुनाती है

बिस्तर पर जाते ही नींद नहीं आती है। 
मां कहाँ आकर अब लोरी सुनाती है।।

बीत गया बचपन जो जमाने के पैमाने से।
अभी भी उसकी याद कुछ गुदगुदाती है।।

आईने में देखा तो उम्र कुछ ढलती दिख रही।
निगाह मगर आज भी उतनी ही शरारती है।।

यारी-दोस्ती,इश्क-मुश्क को याद अब क्योंकर करें।
बिन बुलाए मेहमान सी वो तो जेहन आ ही जाती है।।

आँखों में काला चश्मा चढ़ा भी लें तो क्या हासिल।
सर चढ़के मट्टी की महक राज सब गुनगुनाती है।।

तजुर्बा बढ़ा तो सवाल भी हर कदम जिरह करने लगे।
सो कहो "उस्ताद" कहाँ पहले सी नादानी निभती है।।

@नलिनतारकेश

Thursday, 9 September 2021

386:गजल -निगाहों से

जरूरी नहीं है जुबां से ही सब बोला जाए।
आओ निगाहों से कभी तो कुछ सुना जाए।।

लफ्ज़ निकलते हैं तो कुछ बेसुरे भी होते हैं।
सो चलो अब आंखों से ही सुरमई हुआ जाए।।

दिल समझता है ज्यादा गहराई से ईशारों का ककहरा। 

हुजूर दावा ये आजमाइश अब करके देख लिया जाए।।

नैन हों काले,भूरे जैसे भी,होने लगते हैं गुलाबी।
सामने जो अपने महबूब का दीदार किया जाए।।

कहो कौन सी अदा जो निगाहें नहीं फुसफुसाती हैं।
बस जरूरी है इन्हें सलीके औ सुकून से पढ़ा जाए।।

निगाहों के रस्ते ही मिलकर दिल से दिल धड़कते हैं। 

इससे ज्यादा कहो और क्या "उस्ताद"कहा जाए।।

Wednesday, 8 September 2021

385: गजल-- बन के बच्चा

जलवों का भला तेरे  जिक्र कहो कैसे किया जाए।
आफताब* ए रोशनी क्यों अब जुगनू दिखाया जाए।।
* सूर्य 

पास होकर दूर और दूर होकर भी पास है हमसे।
अबूजा है बड़ा तू किसी को कैसे समझाया जाए।।

कहते हैं आलिम सभी बसता है दिल में ही हमारे।
है फुर्सत किसे मगर जो धड़कनों को सुना जाए।।

रवायत को जमाने के हिसाब से खूबसूरत मोड़ दो।
जरूरी नहीं ये कि हर बात के लिए बस लड़ा जाए।।

बहुत हो गया गुरूर हमें सिर पर सफेद बालों का अपने।बनके बच्चा आओ जरा फिर से "उस्ताद" रहा जाए।।

@नलिनतारकेश

Tuesday, 7 September 2021

384:गजल- अना को दे शिकस्त

अना*को दे शिकस्त अब गुरूर आ रहा है।*स्वाभिमान 
 जमाने में चलन ये नया बहुत छा रहा है।।

जिसे देखिए वो कहे खुद को खुदा आजकल।
आईना भी गैरत* से खुद ही चटक जा रहा है।।*शर्म 

हर तरफ बस होड़ है दौलत,शोहरत कमाने की।
हथेली में अनजान वो अपनी अंगारे उगा रहा है।।

फूल,चांद,तारे,दरिया से कहो तो किसे प्यार है।
हर शख्स तो बस यहाँ जमीं बंजर बना रहा है।।

हुकूमत काबिज़ रहे ता उम्र बस खूं से रंगी चाहे।
खतरा सिर पर तालिबानी सोच का मंडरा रहा है।।

अमन का पैरोकार बताया था जिसने खुद को सदा।
इंसानियत को "उस्ताद" वही आज दफना रहा है।।

@नलिनतारकेश

Saturday, 4 September 2021

383 - गजल:गुफ़्तगू ए दिलदार

तबले की थाप संग जुगलबंदी झंकार ए सितार हो रही। अपने महबूब से निगाहें जबसे मुद्दतों बाद चार हो रही।।

दिल ए आसमां में इंद्रधनुषी रंग बिखर गए हैं हर तरफ। देखिए उनसे पहली ही मुलाकात कितनी शानदार हो रही

परिंदे चहचहाने लगे अरमानों के फिजा में घोलते शरबत।
यूँ अभी तो शुरुआत भी नहीं गुफ्तगू ए दिलदार हो रही।।

कदम चलते हैं कभी तेज-तेज,तो कभी सहम जाते हैं।क्या कहेंगे,कैसे कहेंगे बस यही सोच हर बार हो रही।।

लबों पर उनका नाम दिल में जुनून लिए फिरते हैं अब तो। बनाने उन्हें "उस्ताद" अपना लगन हद से पार हो रही।।

@नलिनतारकेश

 

Friday, 3 September 2021

382 :गजल - बैठो तो सही

किसको पता तैरता ये खत मेरा किधर जाएगा।
भटकेगा यूँ ही उम्र भर या हाथ चारागर* जाएगा।।*चिकित्सक 
उतना ही मुट्ठी भरो जितना संभाल सको तुम।
यूँ भी सब रेत है यहाँ कुछ देर बिखर जाएगा।।

पैसे तो कमा लिए मगर सुकून गवां बैठे लोग।
बटोरने वही अपने गाँव ये सारा शहर जाएगा।।

जो काबू कर सको दिल को अगर तुम अपने।
देखना जहां हांकोगे हमारा वहीं पैकर* जाएगा।।*जिस्म 

बैठे जो रह गए महज तकदीर के ही भरोसे हम।
मिला मौका बगैर तदबीर चुपचाप गुजर जाएगा।।

कुछ देर बैठो तो सही "उस्ताद" के आस्ताने में जरा।
कसम से देखना मिजाज फिर और भी निखर जाएगा।।

@नलिनतारकेश 

Thursday, 19 August 2021

ज्योतिष पर संक्षिप्त चर्चा- यद् पिण्डे तद् ब्रह्मांडे

ज्योतिष पर संक्षिप्त चर्चा : यद् पिण्डे तद् ब्रम्हांडे
##############ॐ###########

ज्योतिष जैसा सर्वविदित है एक विशिष्ट विज्ञान है जिसे अधिकांश लोग अब इसके वास्तविक रूप में पुनः से मान्यता देने लगे हैं अतः यह अपनी लोकप्रियता के शिखर पर विराजमान होने को प्रस्तुत दिख रहा है।ज्योतिष विद्या का मूल उद्देश्य यही रहा है कि हम ईश्वर कृपा से प्राप्त मानव-देह को उसके उच्चतम लक्ष्य तक न्यूनतम अवरोधों के साथ सहजता से आगे लेकर चल सकें। लेकिन अपने लगभग साढ़े तीन दशकों की इसके साथ की गई यात्रा में मुझे लगा है कि हम दैनिक जीवन की आपाधापी के निवारण हेतु ही इसकी शरण में आते हैं।अर्थात मेरा व्यवसाय क्या/कब होगा?विवाह कैसा होगा?धन-लाभ,मकान,वाहन आदि।बहुत ही विरले मुझे ऐसे मिले हैं जो आध्यात्मिक या सीधे शब्दों में कहें अपने "स्व की वास्तविक संतुष्टि" के लिए जिज्ञासु होते हैं।हम नियमित एक मशीन की तरह घन्टी,शंख बजाकर कुछ पवित्र स्त्रोत,चालीसाओं का पाठ करके ही इतिश्री कर लेते हैं और समझते हैं हमने ईश्वर को भी संतुष्ट कर दिया। जबकि दैनिक जीवन की उपलब्धियों हेतु हम
24×7 अत्यधिक प्रयासरत रहते हैं,जी-तोड़ मेहनत करते हैं।
इसके साथ ही आजकल एक अन्य ट्रेंड भी इस विधा में देखने में आ रहा है और वह है "नवग्रहों के सर्वांग उपचार का  आकर्षण"। इसमें लोगों की प्रायः धारणा रहती है कि वह प्रत्येक ग्रह को अपने अनुकूल कर सकते हैं और फिर हर प्रकार से सुख-सुविधा युक्त,भोग-विलास पूर्ण जीवन यापन कर सकेंगे। कुछ महीन ज्योतिषी ऐसे लोगों की इस अवधारणा को पुष्ट करते हुए अपना उल्लू सीधा करते हुए देखे जा सकते हैं।और इधर तो एक दो दशकों से यह बाजार बहुत विकसित हुआ है।अपने क्लाइंट के हर संभव,असंभव कार्य को कुछ छोटे-मोटे उपचार/टोटकों/ वास्तु आदि से नियंत्रित करने का दम भरते हुए सफलता की गारंटी देना और असफल होने पर भी कुछ अपनी चूक स्वीकार न कर नाटकीय रूप में किसी अन्य पर दोष मढ़ना या सफाई देना आजकल बहुत दिख रहा है।सांसारिक कामनाओं से पीड़ित जिज्ञासु येन-केन प्रकारेण सिद्धि चाहता है।उसे ग्रहों की आंतरिक स्थिति/पृष्ठभूमि को समझने का होश या समय ही कहाँ ? ऐसे में स्वाभाविक रूप से ज्योतिष विद्या के आधारभूत तत्व उनकी वैज्ञानिकता, उसका जातक के समग्र जीवन पर पड़ने वाले असर की सटीक व्याख्या को समझने की गंभीरता या सब्र दिखाई दे भी तो दिखे कैसे?
अपने इस संक्षिप्त लेख को जिसमें कई अंतर्निहित प्रश्न हैं एक उदाहरण के साथ समाप्त करना चाहूंगा क्योंकि अन्यथा तो यह एक डिटेल और दीर्घकालीन प्रक्रिया होगी, ज्योतिष के महासागर में।यदि समय और मन की सुईयां एक साथ फिर हुईं (जिसका प्रयास रहेगा)तो कुछ ऐसे प्रश्नों के पत्थरों को जोड़कर सेतु बनाने की प्रक्रिया चलेगी।जिससे एक संकरी ही सही पगडंडी कुछ दूर तक जाने का हौसला दे सके।अस्तु।
तो उदाहरण है कि यदि किसी व्यक्ति के सूर्य, चंद्र, मंगल, राहु आदि नवग्रहों में से कोई ग्रह अनिष्टकारी होने का संकेत देते हैं तो हम उस ग्रह से संबंधित दान, जाप, पूजन,हवन आदि करते हैं। एक रूप में यह प्रक्रिया ठीक भी है और प्रायः इसके अच्छे परिणाम देखने को भी मिलते हैं।लेकिन मुझे लगता है हमें और गहरे जाने/पैठने की जरूरत है। ग्रहों के साथ बेहतर तादात्म्य बैठा कर अपने समग्र व्यक्तित्व का पूरी स्पष्टता व निर्भीकता के साथ आकलन की आवश्यकता है। जिससे हम एक स्वस्थ,सफल एवं पूर्ण समर्पित जीवन अपने उच्च लक्ष्य की प्राप्ति हेतु निकाल सकें। हमारे शास्त्रों में बहुत स्पष्टता से एक छोटे से वाक्य में कहा है: "यद् पिण्डे तद् ब्रह्मांडे"।अर्थात हम ब्रह्मांड के अंग हैं और ब्रह्मांड हमारे ही भीतर समाहित है। तो नवग्रह इससे छूटे हुए कहाँ। तो यदि हमें अपने ग्रहों को ठीक करना हो तो उनकी ऊर्जा को संतुलित रूप में उपयोग करना होगा (अपनी शक्ति,सामर्थ्य अनुसार )। इसके लिए हमें ग्रहों के चरित्र को बारीकी से समझना होगा।फिर ग्रह ही अकेले क्यों?राशि,नक्षत्र,तिथि,पक्ष (शुक्ल/ कृष्ण)सभी को अलग-अलग और उनके मिश्रित प्रभाव के साथ भी पढ़ना होगा,तभी हम कुछ ज्योतिष के महासागर से माणिक,मुक्ता आदि बहुमूल्य रत्न निकाल पाएंगे। वरना तो किनारे खड़े हो एक-आद लहरों का ही स्पर्श पा सकेंगे।यह जल्दबाजी का सौदा नहीं है इस सबके लिए गहरे धैर्य और विश्वास की जरूरत है।जैसा सांई की प्रार्थना का मूल भाव भी है।श्रद्धा-सबुरी।वैसा ही कुछ-कुछ।
अब जैसे हम मान लें कि हमारी जन्मपत्रिका में सूर्य ग्रह (किन्हीं कारणों से) पीड़ित है तो बहुत स्थूल तौर पर समझें तो सूर्य ग्रह हमारी आत्मा,पिता,गौरव/अभिमान(पीड़ित अवस्था में अभिमान),नेत्र विशेषतः दायीं जैसी कुछ बातों का प्रतिनिधित्व करता है तो ऐसे में यदि हम दान,जाप आदि करते हैं तो ठीक है। लेकिन यदि हम अपने पिता के साथ संबंधों में किसी प्रकार का दुराग्रह रखते हैं या फिर  अपने अभिमान को पालते हैं तो सूर्यदेव आपके प्रति उतने अधिक कल्याणकारी नहीं हो सकते।फिर चाहे आप जितना ब्राह्मण से जप,तप, करवा लें या दान देते रहें।इसका सीधा सा तात्पर्य यह है कि हमें अपने ग्रहों को पुष्ट व शुभ फलदायक बनाने हेतु उनकी मूलभूत प्रकृति के अनुरूप अपनी जीवनशैली को भी सुधारना होगा तभी बात बनेगी अन्यथा नहीं।यही सर्वाधिक ध्यान देने योग्य बात है। कम्रशः

नोट : एक लम्बे अन्तराल पश्चात पुनः ज्योतिष विषय पर लिख  रहा हूँ यदि पाठकों को अच्छा लगेगा तो आगे भी लिखने हेतु ईश्वर की कृपा और आपका स्नेह चाहूंगा।धन्यवाद।
@नलिनतारकेश
astrokavitarkesh.blogspot.com

Wednesday, 18 August 2021

381: गजल- दिल बिछाते चलेंगे।

किया है प्यार हमने तो अंजाम भी भुगतेंगे।
खुशी-खुशी हम लाख तेरे नखरे भी सहेंगे।।

दूर से ही हवाओं में घुलकर आती है महक तेरी।
देगा जो आंचल थामने भला क्यों नहीं महकेंगे।।

जुल्फों का घना साया जिसके मुंतज़िर है हम।
मिले जो ख्वाब में भी खुशी से फूल जाएंगे।।

नूरानी आँखों में पड़े हैं डोरे इंद्रधनुषी तेरी।
इशारे पर तो बस एक इनके नाचते फिरेंगे।।

"उस्ताद" लेंगे हुजूर शागिर्दी आपकी।
कदम दर कदम हम दिल बिछाते चलेंगे।।

@नलिनतारकेश 

Tuesday, 17 August 2021

380: गजल- इश्क है तुझे मुझसे

तुझे देखकर मैं ग़ज़ल लिखूं।
तुझमें ही या गहरे डूब जाऊं।।

बता तो सही ए मेरे खुदा।
जिम्मा अब ये तुझपे छोड़ूं।।

आती है महक अलहदा।
जिस ओर भी तुझे देखूं।।

फासला न रहे कोई अब।
हर रोज यही दुआ  करूं।।

हर तरफ गुलजार तेरा जलवा।
हो इजाजत तो सबको बता दूं।।

होते रास्ते सबके जुदा-जुदा मगर।
मंजिल तो एक तुझको ही जानूं।।

जान गया हूं इश्क है तुझे मुझसे।
"उस्ताद" बस यही सुनना चाहूं।।

@नलिनतारकेश

 

Monday, 16 August 2021

कविता : स्वतन्त्रता की हीरक जयन्ती

 
स्वतंत्रता की हीरक जयंती का श्रीगणेश मंगलमय हो रहा।
तुमुल सप्तस्वर जयघोष,वंदन,मातृभूमि का अपनी हो रहा।।

अधरों पर है छाई मृदुल-मुस्कान पर आँखें भी हैं भीगी हमारी।
एक ओर अप्रतिम उल्लास तो वही शहीदों का स्मरण हो रहा।।
 
रामराज्य परिकल्पना के इंद्रधनुषी ताने-बाने बुने जा रहे।
नव-सृजन का अब सिलसिला निरंतर गतिमान हो रहा।।

तिमिर घटाटोप गहन जब राहु सा ग्रसने हमें जा रहा था।
कुछ पुरुषार्थ कुछ देवयोग नव-उषा का पदार्पण हो रहा।।

अतः आओ राष्ट्र निर्माण का नव-संकल्प हिलमिल आज लें। जब विधाता भी मार्ग प्रशस्त करने को हमारे आतुर हो रहा।।

जाति-धर्म,ऊॅच-नीच के भेदभाव मिटा उर से समस्त अपने।
दिखा दें कुशल नेतृत्व भारत हमारा जगद्गुरु प्रस्तुत हो रहा।।

@नलिनतारकेश 

Saturday, 14 August 2021

379: गजल- तवज्जो कोई देता नहीं

दर्द मेरे तन्हा छोड़ कर तू मुझको कहीं जाना नहीं।
तब तलक जब तक तू ही बन जाए मेरी दवा नहीं।।

यूँ तो होश मुझको अब कतई कुछ रहता नहीं सच में।
हो एहसासे बेहोशी भी मगर ये यार मैं हूँ चाहता नहीं।।

आकाश के सितारे पढ़ नजूमी* बताते तो हैं मुस्तकबिल।
बहार है या छाई पतझड़ फर्क मुझे अब तो पड़ता नहीं।। 
*ज्योतिषाचार्य 

हलक में अटक जाती हैं कभी-कभी अपनी ही नादानियां।
उगलते और ना ही निगलते हमसे तब कतई बनता नहीं।।
 
कूवत भी कुछ तो होनी चाहिए असर तब दिखता है जनाब।
वर्ना नाम रखने से महज "उस्ताद" तवज्जो कोई देता नहीं।।

@नलिनतारकेश

Friday, 13 August 2021

378:गजल-बलैय्याॅ हैं लेते

हर तरफ चर्चा देता है सुनाई जलवों का बस तेरे।
निगाह एक इस तरफ भी डाल दे जरा प्रीतम मेरे।।

चमकता है हर उस शख्स का मुस्तकबिल यहाँ पर।
लेता है हर दिन जो तेरा नाम तहेदिल शाम-सवेरे।।

बहती है दरिया,गुलशन के साए बंजर जमीन भी।
हाथ रख दे माथे अगर जो तू किसी के भी ऐरे-गैरे।।

तमन्ना ही रह जाती है अक्सर ऑखिरी सांस तक। 
काश कभी तू आकर उसके सर अपना हाथ फेरे।।

करिश्माई  है गजब तू और तेरी ये कायनाते जादूगरी। 
उस्तादों के उस्ताद तभी तो तेरी हैं बलैय्याॅ लेते।।

@नलिनतारकेश  

Thursday, 12 August 2021

377:गजल- याद तुम्हारी

ये बदली उदासी की छा रही जेहन में।
याद तुम्हारी हमें जो आ गयी जेहन में।।

देखना अब फिर बरसात होगी जेहन में।
हिचकोले खाएगी कश्ती हमारी जेहन में।।

फासलों से फर्क वैसे पड़ता नहीं है कुछ भी।
बात हमने समझायी खुद को यही जेहन में।।

आँखों से बरसे मोती तो,हार हम पिरोते रहे।
देखो न बन जाए शायद माला कहीं जेहन में।।

दरिया का पानी तो वो बह गया बहुत अरसा हुआ।
कब तक जन्मों पुरानी कहानी दोहरायेगी जेहन में।। 

"उस्ताद" खारा समंदर ये फैला है दूर तलक देखो।
लहरें आकर अक्सर भिगो हमें हैं जाती जेहन में।।

@नलिनतारकेश

Wednesday, 11 August 2021

376:गजल- इनायते नजर किया कीजिए

बेवजह की है कवायद पर किया कीजिए।
प्यार हो ना हो इजहार मगर किया कीजिए।।
 
चांद छूने में जमीं छूट जाती है अक्सर पाँव से। 
मगर हर हाल जतन में न कसर किया कीजिए।।

गमों का सैलाब हदें तोड़ आता दिखे तो भी। 
धार दे अपने हौंसले बेहतर किया कीजिए।।

यूँ ही तंग हो रहे हैं जिंदगी के रास्ते आजकल।
है कहाँ?किस हाल?खबर ये तो किया कीजिए।।

तल्खियां,तोहमतें बेवजह की चिपट जाती हैं गले से।
कुछ वक्त मगर ऐसे हालात भी गुजर किया कीजिए।।

काबिल तो नहीं आपके पाक दामन सजदे को नाचीज ये।
कुछ  तो "उस्ताद" मगर इनायते नजर किया कीजिए।।

@नलिनतारकेश 

Tuesday, 10 August 2021

कविता: प्रीतम प्रभु मेरे

व्यर्थ आ-जा रही,श्वास-प्रश्वास हर घड़ी बिन तेरे।
छुपा है कहाँ चितचोर,निष्ठुर जरा तू बता दे मेरे।।

घनघोर घटाटोप अंधकार छाया,जब अन्तःकरण मेरे।
समस्त ब्रह्मांड प्रकाशक,तू है क्यों खड़ा पृष्ठभाग मेरे।।

विरुदावली गाते हैं नित्य भक्त,अनंत काल से तेरे।
श्रवण कर उनको ही कुछ,याचक बना हूँ द्वार तेरे।।

आजा अब न कर विलंब क्षण भर भी,प्रीतम-प्रभु मेरे।
विकल,दीन-हीन हूँ मिटाता क्यों नहीं,आकर पाप मेरे।।

भ्रमर बन,श्री नलिन चरण मकरंद पान करूं,नित्य मैं तेरे।
कृपा की विशिष्ट सामर्थ्य से,पाँऊ दर्शन अब,सदा मैं तेरे।।

@नलिनतारकेश 




Monday, 9 August 2021

375- गजल- पीतेहैं उस्ताद

बदल रहे हैं वो मिजाज अपने आहिस्ता-आहिस्ता।
कतरा के चलते हैं अब हमसे आहिस्ता-आहिस्ता।।

खिले गुल से मिलते थे जो कभी हर मोड़ हमको।
लबे पंखुरी समेटते दिख रहे आहिस्ता-आहिस्ता।।

जमाने की नई हवा लगती दिख रही है अब तो सबको।
बुजुर्गों से भी बदजुबानी करने लगे आहिस्ता-आहिस्ता।।

सावन में बादलों के मिजाज अलहदा अपना रंग दिखाते।
कहीं मूसलाधार तो कहीं बरसते बड़ेआहिस्ता-आहिस्ता।।

जाम पर जाम चढ़ाने की जरूरत नहीं पड़ती कभी भी।
निगाहों से "उस्ताद" सांवली पीते आहिस्ता-आहिस्ता।। 

@नलिनतारकेश 

Sunday, 8 August 2021

कविता:स्वर्णिम नवयुग की पदचाप

स्वर्णिम नवयुग की निकट अब पदचाप सुनाई दे रही। 
रचनात्मकता भरे दृढ नव-सृजन की नींव भरी जा रही।।

यद्यपि तिमिराच्छादित है दिख रहा आज भी गगन सारा। संकल्पित हृदय किन्तु विश्वासकी एक किरण दिख रही।।
 
महामारी का लोमहर्षक परिणाम दावानल सा ग्रस रहा। विकट परिस्थितियों के विपरीत भी राष्ट्र कीर्ति बढ़ रही।।
 
स्वर्ग सा भूभाग कश्मीर हमारा 370बेड़ियों से मुक्त हुआ। 
वहीं स्त्रियां एकजुट हो हक हेतुअपने प्रतिबद्ध दिख रहीं।

सड़क,बिजली,शौच,आवासकी प्राथमिक आवश्यकताएं।
विकास-परिभाषा केअनुरूप मापदंडों पर खरी उतर रहीं।

राष्ट्र-सेवा में समर्पित रहे हैं तन-मन से जांबाज प्रहरी सदा हमारे।
खेल-खिलाड़ी,युवा स्पंदित इन सबके हौंसलों की पहचान हो रही।।

यूँ तो हैं कुछ स्वार्थी,लंपट,लालची,संपोले अभी आस्तीन में छिपे।
परवाह लेकिन है किसे जब जनता-जनार्दन एकमत हो रही।।

@नलिनतारकेश