Tuesday, 14 December 2021

गजल- 406 :भोली नादानियां


भोली नादानियां हम भला अपनी किससे कहें।
समझ आयी नहीं ये दुनिया कभी किससे कहें।।

फिरते रहे जो तसव्वुफ़* हम सजाए हुए ख्वाबों में।*अध्यात्मवाद
वो रंगों में दिखी ही नहीं फाकामस्ती किससे कहें।।

हर शख्स यहाँ अजब गुमशुदा सा खुद में मिला।
गुल उगते ही नहीं यारों बंजर जमीं किससे कहें।।

खामोश हैं कोहरे की चादर लिपट रिश्ते सारे।
महकती नहीं इत्र सी हँसी कहीं किससे कहें।।

परेशां है "उस्ताद" मुस्तकबिल के लिए इनके।
शागिर्द नहीं कूवते फना दिखती किससे कहें।।

@नलिनतारकेश 

1 comment:

  1. वाह...!जवाब नहीं....👌👍👍

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