Monday, 27 December 2021

410: गजल --हमें तो नींद आती

गुनगुनी धूप जाड़ों की पीठ को जब भी है सहलाती।
यादें फिर तुम्हारे साथ की दिलों में अपने गुनगुनाती।।

गुलों में सुबह-सुबह ओस की नन्ही बूदें जब गुनगुनाती।
हौले-हौले कहें बातें कुछ राज की लबों पर मुस्कुराती।।

नामचीन होकर दुनिया को रोशन कर रहा जो एक दिया। 
फ़ना कर खुद को जब तलक खामोश जलती रही बाती।।

धड़कनें गीत गाती है डूब के जब कभी तुम्हारे प्यार के। दर्द भरी रातें भी रूहे दिल को हैं महकाने करीब आती।।

सर्द रातें चुपचाप दबे पाँव लेती हैं आकर अंगड़ाईयां।
जुल्फों में गरम लिहाफ के "उस्ताद" हमें तो नींद आती।।

@नलिनतारकेश

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