Saturday, 4 December 2021

ग़ज़ल-401- कुर्बान करी है।

जबसे तुझ संग इश्क की बान* लगी है।*आदत
खुद को अपनी एक पहचान मिली है।।

रेशा-रेशा मन ये बिखर गया था।
ऊँची अब जाकर उड़ान भरी है।।

बहके सुर सब सधे दर पर आज तेरे।
इनायते करम खालिस तान लगी है।। 

दिल की गली अब कोई जंचता ही नहीं। 
बगैर तेरे ये तो कब से सुनसान पड़ी है।।

रहा "उस्ताद" कहाँ कुछ भी मेरा अपना।
चाहत थीं जो सारी तुझपे कुर्बान करी है।।

@नलिन तारकेश

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