Tuesday, 28 December 2021

411:गजल- इनायते करम अपना तो फरमाइए

सर्दीली हवाओं का भी तो जनाब कभी लुत्फ उठाइए।
कश्मीर ना सही अपनी छत पर ही जरा टहल आइए।।

माशाअल्लाह कागज के पुलिन्दे नहीं जो गल जायेंगे आप। 
सरहद की धूप,सर्दी खड़े जज्बे को दिल से सलाम ठोकिए।।

गरमा-गरम चुस्कियां चाय की भी जरा पिया कीजिए।
जरूरी नहीं कि हर बार हाथ में आप जाम ही लीजिए।।

पेशानी की सलवटो के लिए बिस्तर ही ज्यादा मुफीद है।
कुछ घड़ी सुकूने जिंदगी को ये हिसाब-किताब छोड़िए।।

जुनून जो रहेगा दिल में हर जंग जीत लेंगे आप।
यूँ ना हर बात-बेबात अपनी सूरत रोनी बनाईए।।

जलवों का जिक्र करूं कैसे "उस्ताद" बता तो सही।
इनायते करम जरा अपना इस नाचीज तो फरमाइए।।

@नलिनतारकेश

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