Monday, 6 December 2021

गजल: 403- पूरा डेंचर बदलते



किया है इकरारे इश्क जब से ख्वाबों में उसने।
होकर आवारा फकीर सा उसे ढूंढता हूँ तबसे।।

वो रूठता भी है तो बड़ी पाकीज़गी से मुझसे।
यारों का होता ही है लहजा मुख्तलिफ* सबसे।।*अलग सा

सदा से मुतमईन* रहा हूँ उसकी बांकी अदा पर।*निश्चिंत 
निकलेगा मेरा भी दूधिया चांद बादलों को चीरते।।

हर घड़ी,हर शै करता हूँ दीदार बस उसका।  
रंग गहरा चढ़ा है मुझे आशिकी का जबसे।।
 
हैरान हों वो जिनके इश्क में अभी दूधिया दांत टूटे।  
"उस्ताद" हम तो सुकूं से हैं पूरा डेंचर बदलते।।

@नलिनतारकेश 

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