Tuesday, 10 August 2021

कविता: प्रीतम प्रभु मेरे

व्यर्थ आ-जा रही,श्वास-प्रश्वास हर घड़ी बिन तेरे।
छुपा है कहाँ चितचोर,निष्ठुर जरा तू बता दे मेरे।।

घनघोर घटाटोप अंधकार छाया,जब अन्तःकरण मेरे।
समस्त ब्रह्मांड प्रकाशक,तू है क्यों खड़ा पृष्ठभाग मेरे।।

विरुदावली गाते हैं नित्य भक्त,अनंत काल से तेरे।
श्रवण कर उनको ही कुछ,याचक बना हूँ द्वार तेरे।।

आजा अब न कर विलंब क्षण भर भी,प्रीतम-प्रभु मेरे।
विकल,दीन-हीन हूँ मिटाता क्यों नहीं,आकर पाप मेरे।।

भ्रमर बन,श्री नलिन चरण मकरंद पान करूं,नित्य मैं तेरे।
कृपा की विशिष्ट सामर्थ्य से,पाँऊ दर्शन अब,सदा मैं तेरे।।

@नलिनतारकेश 




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