Saturday, 7 August 2021

कविता: हे नाथ!हे प्रभु!

हे नाथ!हे प्रभु!कृपा आप अपनी इतनी कीजिए।
श्रीचरण-नख-भक्ति मंदाकिनी मुझ पर उडेलिए।।

स्नान कर सर्वांग इस परम दिव्य सुधा रसधार से।
मुक्त हो जाऊंगा सदा को जन्म-जन्मों के पाप से।।

सुख,शांति अंतःकरण की शुद्ध तभी मिल पायेगी।
राम-राम बस राम करते उम्र सहज ही कट जाएगी।।

आपके ही फिर भाव में मगन हो झूमुंगा परमानंद में।लौकिक,अलौकिक होगी कहाँ चाह जरा भी चित्त में।।

य॔त्रबद्ध सी जब आपके इशारे पर चलेंगी हरेक इंद्री। कहिए फिर कहाँ रह पायेगी रत्ती भर भी छुद्र वृत्ति।।

नवरंग-भक्ति की सुगंध जब उर-सरोवर मेरा महकयेगी। "नलिन"निर्मल तन-मन की कांति तुझे भी तब लुभायेगी।।

@नलिनतारकेश 

No comments:

Post a Comment