Monday, 8 July 2019

नलिन खिलने लगा

प्रीत को जब से मैं कुछ-कुछ समझने लगा। हर दिल जीतने का फन सहज बूझने लगा।।
जब भी मन से पूरे किसी को दुआ देने लगा। तब ये जाना कि मैं खुद की दुआ लेने लगा।। डगर पर प्रेम की कठिन जबसे चलने लगा।
हर कदम फूल सा हल्का में फिसलने लगा।। अंजाना कहां कोई भी यहां मुझे लगने लगा।
हर तरफ प्रतिबिंब बस मेरा ही दिखने लगा। यूँ धीरे-धीरे सही हो विदेह सा मैं झूमने लगा इत्र सा महकता हवा में हर ओर तैरने लगा।। मिला साथ उसका तो फिर मैं चहकने लगा। बाँहों में भर के उसे और भी थिरकने लगा।।
रोम-रोम मेरे सहस्त्र-दल नलिन खिलने लगा
वरदहस्त जबसे उसका सतत मिलने लगा।।
@नलिन#तारकेश

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