Saturday, 6 July 2019

184-गजल

यूँ रोने को तो उम्र ये लंबी पड़ी है।
पर हंसने की आज जरूरत बड़ी है।।
रोना ही हो अगर तो शबे-कद्र* रोना।
*अल्लाह से क्षमा की रात
यूं ज़िंदगी की नियामत बस एक हंसी है।।
रोना जो चाहो तो दुनिया रूलाती रहेगी। खिलखिलाने पर मगर तेरे संग हँसती है।।
हँसते हुए होठों से तू सबसे मिलना।
तब देखना ये कैसी जादू की छड़ी है।।
जम के हँसो और सबको हँसाओ।
भला बांटने से हंसी कहां घटती है।।
चेहरे पर छाए खुद ब खुद नूरानी तेज।
होठों में जो मुस्कान तेरे बनी रहती है।।
दु:ख,दर्द,तकलीफ में करती है रौशन जहां।
सच कहे"उस्ताद"ये तो चिंतामणि* है।।
*चिंता को नष्ट करने वाली मणि।
@नलिन#उस्ताद

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