Tuesday, 30 July 2019

गजल-195

बना रहे कुछ कौतूहल इसलिए।
लिख रहा हूँ मैं गजल इसलिए।।
लिए हैं सभी हाथ हलाहल इसलिए।
चल रही कलम आजकल इसलिए।।
यूँ तो बस की कहाँ थी शायरी यारों।
दिल मेरा बस जाए बहल इसलिए।।
ये भी कहो जो लिख रहा हूँ असल में।
हर हफॆ लिखाए वो दरअसल इसलिए।। दुनिया को है बस यही जताने की खातिर।
कहाँ सब आलिम कहाँ ये पागल इसलिए।। खींचने को टाँग सभी तो हैं तैयार बैठे।
बस लिख रहा हूं दिले हलाहल इसलिए।।
"उस्ताद"समझता है दुनियावी चौंचले।
सुकूने दिल को लिखता है केवल इसलिए।।

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