सारे शहर यूँ तो बादल बरसते रहे।
यार फिर भी तो हम बस तरसते रहे।।
ता उम्र जिनके लिए दुआ माँगते रहे।
पीठ पीछे वो ही खाई खोदते रहे।।
यूं माँगने कभी भी खैरात* जाते नहीं।*दान
घर बैठे जो रामजी हम पर लुटाते रहे।।
पीते हैं हम तो यार पूरा मयखाना।
कहां दो जाम से भला बहकते रहे।।
कौन दे सका भला क्या किसी को यहाँ?
बेवजह फिर भी कुछ लोग अकड़ते रहे।।
दौलत-शोहरत होगी तेरे लिए बड़ी बात।
हम तो मुफलिसी*में भी सदा महकते रहे।।*गरीबी
अना*मेरी गुरूर तुझे लगे तो लगा करे।*आत्मसम्मान
किरदार*कहाँ हम अपना बदलते रहे।।*व्यक्तित्व
ताबूत में ठोक दी कलम से आंखिरी कील।
जो कलमकारों को हल्का समझते रहे।। अशर्फियों की लूट और कोयलों पर मुहर। सियासतदां भी क्या खूब बरगलाते रहे।।मजलूम को लूट जलाते जो घर का दीया। वो ही अक्सर खुद को शरीफ दिखाते रहे।। वार जो करो तो सीने पर खुलकर करो।
यूं कहाँ हम दोगलों से भला डरते रहे।।
देते नहीं जो इकराम* अपने"उस्ताद"को।*सम्मान
इसी जमीं वो दोजख*की आग जलते रहे।।*नरक
@नलिन#उस्ताद
I am an Astrologer,Amateur Singer,Poet n Writer. Interests are Spirituality, Meditation,Classical Music and Hindi Literature.
Wednesday, 24 July 2019
गजल-191
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