हुजूर ने दिए लाइलाज जख्म,हजार अवाम को।
चाटुकार मगर बरगलाते रहे खासो आम को।।
शर्म,हया सब बेच आए,जाने कहां कसम खुदा की।
बरगलाते हैं कसम खा,ये तो अब करीम* राम को।।*ईश्वर
संगदिल*समझेंगे कहां दर्द,तकलीफ किसी की।*पत्थर दिल
ये तो मानते हैं रब अपना लूट,खसोट,हराम को।।
कोयले पर मोहर है जहां गरीब,मजलूम के वास्ते।
लुटाते रहे अशर्फियां वहीं,ये अपने ऐशो आराम को।।
हवाओं का रुख भांप,चलते हैं हर सियासी चाल को।
कौम की परवाह किसे,करते हैं पसंद सत्ता
की तामझाम को।।
जमीर बेच जो हादसों पर करते हैं महज लीपापोती।
"उस्ताद"कुफ्र बरसेगा उन पर जिंदगी की शाम को।।
@नलिन#उस्ताद
I am an Astrologer,Amateur Singer,Poet n Writer. Interests are Spirituality, Meditation,Classical Music and Hindi Literature.
Wednesday, 3 July 2019
181-गजल
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