Sunday, 14 July 2019

काशी की महिमा

            
              काशी की महिमा
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सुनाता हूँ,आपको आज मैं वेद- पुराणों की जुबानी।
काशी की अनंत,अपार-महिमामयी,दिव्य ये कहानी।।
पुरानी सबसे नगरी,विश्व की ये तो,बड़े ठाठ से है खड़ी।
धरोहर हमारी,परम पुनीत प्रत्येक,इसकी रज कण बड़ी।।
ब्रह्म पुराण में है चर्चित,इसके तो,अन्य अनेक नाम भी।
बनारस,अविमुक्त,आनंदकानन और महा- शमशान भी।।
वरुणा,असी नदियों के,मध्य बसी है,अपनी ये काशी।
तभी तो कुछ लोग,कहते आए इसे,नेह से वाराणसी।।
ये नगरी असल में है,अध्यात्म की गूढ, राजधानी।
यूँ ही नहीं,शंकर को अतिप्रिय,ये जैसे भवानी।।
त्रिशूल पर अटकी है,बम-बम भोले की ये नगरी।
श्वान पर बैठे भैरव हैं,इसके कठोर,कोतवाल प्रहरी।।
अब शिव की नगरी,भला कैसे न बहे,गंगा- त्रिपथगामिनी।
भोले के अधरों से,सुना राम-मंत्र,बने है यही, मोक्षप्रदायिनी।।
काशी के घाट,काशी की गलियाँ,सबकी ही है शान,परम निराली।
भाती हैं सबको,साड़ियाँ बनारसी,छटा है जिनकी बड़ी रूपाली।।
बनारसी पान,शाम,संगीत की बात तो है और भी निराली।
ये विद्या की नगरी,घाट-घाट जहाँ होती खूब जुबानी जुगाली।।
दश-अश्व-मेध घाट पर,होती है मां गंगा की आरती।
जहां से प्रसिद्ध हुई राजा हरिश्चंद्र की सत्य भारती*।।*वाणी
तुलसी,कबीर,रविदास जैसे संतों की रही है ये खोली*।*घर/कुटिया
भोजपुरी,हिन्दी,संस्कृत की बहती है यहाँ त्रिवेणी बोली।।
जाने कितनी असंख्य,अनमोल हैं यहाँ की गाथाएं पुरानी।
कितनी कहें,कैसे कहें,थोड़े से पल में भला अपनी जुबानी।।
@नलिन#तारकेश

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