Monday, 29 July 2019

गजल-194

एक आँख आँसू तो एक में हंसी है।
जिंदगी तेरी रस्साकस्सी बड़ी है।।
छेड़खानी सरेआम देख संसद में।
आँख गैरत से सबकी झुकी है।।
सजा देने में जाने क्यों उनको।
इंसाफ की आँख पट्टी बंधी है।।
अब तो हर साँस आने-जाने में यारों।
बस एक उम्मीद की लौ ही बची है।।
वो न दिखा होता तो बात और थी।
अब तो खुमारी उसकी ही चढ़ी है।।
बरस रहे जो बादल उमड़-घुमड़ के।
लगता है जुल्फ आज तेरी खुली है।।
क्या कहूँ क्या न कहूँ जलवों की बात।
कलम तो मेरी अब चलती नहीं है।।
साँवली सूरत औ अधरों में बाँसुरी।
टकटकी"उस्ताद"तो मेरी लगी है।।
@नलिन#उस्ताद

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