Thursday, 11 July 2019

185-गजल-कहाँ उस्ताद गुमनाम है

आंखों में तूने मेरी लिखा प्यार का पैगाम है। बहुत खूबसूरत ये हकीकत भरा कलाम है।। चाहता तो था मैं तुझे दिल से मगर कह ना पाया कभी।
चल अच्छा हुआ आज तूने खुद से किया ये काम है।।
बरसात में उमड़ते-घुमड़ते बादलों के साथ में आज।
जुल्फों से टपकती बूंद का दिया खुशगवार ईनाम है।।
सांवली सलोनी तेरी हर अदा है अनमोल बड़ी।
बहुत शुक्रिया तेरा जो मेरे लिए ढलकाया जाम है।।
भटकना कहाँ अब जिंदगी की जद्दोजहद में।
राम मेरे अब तो बस जिंदगी भर का आराम है।।
जलवों के किस्से सुने तो थे बहुत तेरे रहमों करम के।
अब हुई इनायत तो कहाँ ये "उस्ताद" गुमनाम है।।
@नलिन#उस्ताद

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