Friday, 12 July 2019

186-गजल

आ यारब तेरी जुल्फों की लटें खोल दूँ।
सारे जहां को एक इनाम अनमोल दूँ।।
ग़ज़ल ही लिखूँ और गजल ही सुनूँ।
तारीफ में तेरी बस गजल बोल दूँ।।
सोचता हूं दर्द तकलीफ से दिलाने निजात। तेरी सतरंगी चुनरी का रंग सारा ही घोल दूँ।।
पोर-पोर झूमाता है जो ता-उमर यार तेरा।
मौज मस्ती भरा वो नायाब जाम ढोल दूँ।।तेरी बांकी चितवन पर"उस्ताद"आज तो। हीरे,मोती,जवाहरात आ मैं सभी तोल दूं।।
@नलिन#उस्ताद

No comments:

Post a Comment