बेफजूल के मसले जाने क्यों उछाल रहा।
हर जगह मीडिया दंगल को उबाल रहा।।
बर्बादी बढ़ गई पानी की इस हद तलक।
घर में हरेक अब इसका हो अकाल रहा।
कहीं गरीब को मयस्सर नहीं बमुश्किल दाल रोटी।
जलसों में ठसक से कोई कचरे में इसे डाल रहा।।
आंकड़ों की हकीकत पर उठें सवाल तो उठें।
यहां तो हुक्मरान अपने खुद बजा गाल रहा।।
जाहिली,नफरत सब कबूल है धर्म के नाम पर कुछ को।
पैंतरेबाजी से जिनकी कौम का हर आदमी बेहाल रहा।।
हर बाल जो नोच डालते थे कौम के गुमशुदा एक बाल पर।
मिला उन्हें जब उनका उस्ताद तो शांत सब बवाल रहा।।
@नलिन#उस्ताद
I am an Astrologer,Amateur Singer,Poet n Writer. Interests are Spirituality, Meditation,Classical Music and Hindi Literature.
Wednesday, 3 July 2019
180-गजल
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