Friday, 26 July 2019

गजल-192

तेरे शहर दिल और लगाऊँ क्या?
जख्म खोल अब दिखाऊं क्या?
मासूमियत से की तूने वफा की बात।
सोचता हूं वो सब भुलाऊँ क्या?
बेतरतीब पड़े जिंदगी के सफहे*।*पन्ने
करीने से अब इन्हें सजाऊँ क्या?
तू मेरा और मैं तेरा जानेजाँ।
भला जुबाँ बतलाऊं क्या?
आंखों में बसाया काजल की तरह।
रो-रो उसे भला छुड़ाऊँ क्या?
दौड़-भाग सभी तो लगे हैं यहां।
ग़ज़ल अपनी गुनगुनाऊँ क्या?
चिराग बुझ गए तेरे इंतजार में।
बता फिर उन्हें जलाऊँ क्या?
इनायत जो अता की"उस्ताद"तूने।
खुद को अब और भटकाऊँ क्या ?

@नलिन#उस्ताद

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