मुझे यकीं था वो बहुत सतायेगा मुझे।
ये दिल हर हाल पर उकसायेगा मुझे।।
हर तरफ रंगीन दुनिया के नजारे दिख रहे।
लगता है अभी और वो भटकायेगा मुझे।।
दूर कहीं पर आसमां धरती मिल रहे।
कदम तो ये दिखाना चाहेगा मुझे।।
चलते-चलते ये कहां आ गया हूं मैं।
अब ये कोई क्या बतलायेगा मुझे।।
जन्नत है उसके साथ जहाँ भी रहूँ।
सो अपनी खुशबू महकायेगा मुझे।।
दर्द-तकलीफ जो मुस्कुराता रहा हूं मैं।
लुत्फे जिंदगी तो और जिलायेगा मुझे।।
हूँ नहीं किसी से कम यूँ तो उसके करम से।
अब ये भी क्या"उस्ताद"समझाएगा मुझे।।
@नलिन#उस्ताद
I am an Astrologer,Amateur Singer,Poet n Writer. Interests are Spirituality, Meditation,Classical Music and Hindi Literature.
Wednesday, 31 July 2019
गजल-196
Tuesday, 30 July 2019
गजल-195
बना रहे कुछ कौतूहल इसलिए।
लिख रहा हूँ मैं गजल इसलिए।।
लिए हैं सभी हाथ हलाहल इसलिए।
चल रही कलम आजकल इसलिए।।
यूँ तो बस की कहाँ थी शायरी यारों।
दिल मेरा बस जाए बहल इसलिए।।
ये भी कहो जो लिख रहा हूँ असल में।
हर हफॆ लिखाए वो दरअसल इसलिए।। दुनिया को है बस यही जताने की खातिर।
कहाँ सब आलिम कहाँ ये पागल इसलिए।। खींचने को टाँग सभी तो हैं तैयार बैठे।
बस लिख रहा हूं दिले हलाहल इसलिए।।
"उस्ताद"समझता है दुनियावी चौंचले।
सुकूने दिल को लिखता है केवल इसलिए।।
Monday, 29 July 2019
गजल-194
एक आँख आँसू तो एक में हंसी है।
जिंदगी तेरी रस्साकस्सी बड़ी है।।
छेड़खानी सरेआम देख संसद में।
आँख गैरत से सबकी झुकी है।।
सजा देने में जाने क्यों उनको।
इंसाफ की आँख पट्टी बंधी है।।
अब तो हर साँस आने-जाने में यारों।
बस एक उम्मीद की लौ ही बची है।।
वो न दिखा होता तो बात और थी।
अब तो खुमारी उसकी ही चढ़ी है।।
बरस रहे जो बादल उमड़-घुमड़ के।
लगता है जुल्फ आज तेरी खुली है।।
क्या कहूँ क्या न कहूँ जलवों की बात।
कलम तो मेरी अब चलती नहीं है।।
साँवली सूरत औ अधरों में बाँसुरी।
टकटकी"उस्ताद"तो मेरी लगी है।।
@नलिन#उस्ताद
Sunday, 28 July 2019
गजल-193
याद में तेरी रोता रहता हूं।
मैं तुझे कहाँ भूल सकता हूं।।
हर जगह तेरी मौजूदगी को।
यूँ तो अक्सर ही देखता हूं।।
प्यार है तेरा सबसे अनमोल।
जान कर भी मैं रूठता हूं।।
मुझसे पहले सहूलियत को मेरी।
बेचैन तुझे तो मैं देखता हूं।।
दर्द का सैलाब तेरी इनायत।
खुश हो के अब मैं पी रहा हूँ।।
कलेजे उसके ठन्ड पड़ी,मुझे गिरा।
देख यही तसल्ली पा सका हूँ।।
"उस्ताद"कहां खुद का वजूद मेरा।
बन अब खुशबू तेरी मैं महकता हूं।।
@नलिन#उस्ताद
Friday, 26 July 2019
गजल-192
तेरे शहर दिल और लगाऊँ क्या?
जख्म खोल अब दिखाऊं क्या?
मासूमियत से की तूने वफा की बात।
सोचता हूं वो सब भुलाऊँ क्या?
बेतरतीब पड़े जिंदगी के सफहे*।*पन्ने
करीने से अब इन्हें सजाऊँ क्या?
तू मेरा और मैं तेरा जानेजाँ।
भला जुबाँ बतलाऊं क्या?
आंखों में बसाया काजल की तरह।
रो-रो उसे भला छुड़ाऊँ क्या?
दौड़-भाग सभी तो लगे हैं यहां।
ग़ज़ल अपनी गुनगुनाऊँ क्या?
चिराग बुझ गए तेरे इंतजार में।
बता फिर उन्हें जलाऊँ क्या?
इनायत जो अता की"उस्ताद"तूने।
खुद को अब और भटकाऊँ क्या ?
@नलिन#उस्ताद
Wednesday, 24 July 2019
गजल-191
सारे शहर यूँ तो बादल बरसते रहे।
यार फिर भी तो हम बस तरसते रहे।।
ता उम्र जिनके लिए दुआ माँगते रहे।
पीठ पीछे वो ही खाई खोदते रहे।।
यूं माँगने कभी भी खैरात* जाते नहीं।*दान
घर बैठे जो रामजी हम पर लुटाते रहे।।
पीते हैं हम तो यार पूरा मयखाना।
कहां दो जाम से भला बहकते रहे।।
कौन दे सका भला क्या किसी को यहाँ?
बेवजह फिर भी कुछ लोग अकड़ते रहे।।
दौलत-शोहरत होगी तेरे लिए बड़ी बात।
हम तो मुफलिसी*में भी सदा महकते रहे।।*गरीबी
अना*मेरी गुरूर तुझे लगे तो लगा करे।*आत्मसम्मान
किरदार*कहाँ हम अपना बदलते रहे।।*व्यक्तित्व
ताबूत में ठोक दी कलम से आंखिरी कील।
जो कलमकारों को हल्का समझते रहे।। अशर्फियों की लूट और कोयलों पर मुहर। सियासतदां भी क्या खूब बरगलाते रहे।।मजलूम को लूट जलाते जो घर का दीया। वो ही अक्सर खुद को शरीफ दिखाते रहे।। वार जो करो तो सीने पर खुलकर करो।
यूं कहाँ हम दोगलों से भला डरते रहे।।
देते नहीं जो इकराम* अपने"उस्ताद"को।*सम्मान
इसी जमीं वो दोजख*की आग जलते रहे।।*नरक
@नलिन#उस्ताद
Tuesday, 23 July 2019
गजल-190
उनसे जो आज मुलाकात हो गई।
प्यार की लो बरसात हो गई।।
सौंधी-सौंधी सी खुशबू फिजा में।
दीवानगी की हद सौगात हो गई।।
सावन की हरियाली हर ओर जब।
दिखी रूह से तो करामात हो गई।।
कड़क रही बिजली बादलों में।
कायनात सारी बारात हो गई।।
बहा दिले दरिया में खूब पानी।
सपनों की नई शुरुआत हो गई।।
खिला झील सी आँख"नलिन"उनकी।
कमाल की"उस्ताद"ये बात हो गई।।
@नलिन#उस्ताद
Monday, 22 July 2019
यूँ ही थोड़ी उलटबाँसी /गूढबानी
हमारे देश में फलों का राजा आम है।
यह तो हम सबको ही बखूबी पता है।
मगर देश की अवाम,यानी"आम"जन को।
असल वो ही"राजा"है,ये कहां जरा पता है।कुछ आम लोग,जिनको यह सब पता है।
वस्तुतः उन्हें भी कहाँ,मन से यह लगा है।यद्यपि सरकार,विपक्ष और उसके चाटूकार।
भरना चाहते हैं आपमें,गहरा आत्म-विश्वास।
मगर पारे सा ये विश्वास,तो फिसल जाता है। और डर,भय या किसी भी अन्य वजह से। स्वीकार ही नहीं पाता,कि वोअसल राजा है।
जबकि अन्य देशमें,क्योंकि होता नहीं आम।
तो वहाँ हर आम,स्वतः ही हो जाता है खास।
वहीं अपने यहां तो,हर जगह,हर एक कोई।
सर्व सुलभ पेटभरवा,पिलपिला सा आम है। रही बात हरे की,तो वो कोई तोड़ न सकता।क्योंकि उसमें कल की,मिठास बड़ी छुपी है।
सो वोभी स्वतःप्रायः,ढीठ सा झड़ता नहीं है।
यूँ तूफान से कुछ,हरी अमियाँ टूट जाती हैं।
जो ठोक-पीट,बतौर चटनी स्वाद बढ़ाती हैं। हाँ यहाँ भी एक वर्ग है,जो बड़ा हीविशिष्ट है। फिर चाहे भ्रम में आप,उसे आम ही मान लें।
क्योंकि आपको अपने,विश्व के सबसे बड़े। लोकतंत्र के"आम"होने पर,बड़ा गुमान है। लेकिन यहां तो,लोक ही का असल तंत्र है। एक से बढ़कर एक,रहस्यमयी चौदह लोक।
जो दिखते हैं एकमात्र,बस हमारे ही राष्ट्र से।
प्रत्येक लोक के रहस्य को,समझना-बूझना।एक बड़ा ही क्लिष्ट,जटिल मनोविज्ञान है।
तभी तो वो सभी जो,खास और विशिष्ट हैं।
प्राप्त करने,संपूर्ण लोक के अधिकार को।
रखते हैं पास,स्वयंसिद्ध-तन्त्र अधिकार को।
और ये तन्त्र और कुछ नहीं,बस कुंजियाँ हैं।जो खोलती हैं प्रत्येक,लोक के रहस्य को।
सो ये विशिष्ट लोग,हांसिल करने कुंजियाँ।
देते वरीयता-आपस में,एकमात्र चुनाव को।
और अपना देवत्व पुजाने,जिह्वा तृप्त करने। बलि देते स्वाथॆवश अमृत रसमयी आम को।
वहीं बरगलाने को कहते-रहते हर आम को।
तू ही हैअसल नृप जो संभाले लोकतन्त्र को।
@नलिन#तारकेश
Sunday, 21 July 2019
मन बड़ा बांवला
सोचता हूं नाचता फिरूं,मीरा सा तोड़ बंधन जगत के।
मौन हूँ रहता मगर,अधर माया दधि लटपटा के।।
कहो पर कब तक चलेगा,ये सिलसिला प्यार में।
भीतर कोई खींचता वहां,मगर तन है चिपका जहां में।
जो भी हो पर अब,आर-पार की लड़ाई लड़नी ही पड़ेगी।
कब तक दो नाव की,सवारी भला यूँ चलती रहेगी।।
चलो तन तो कभी,उमर के साथ हो शिथिल, शायद मान भी ले।
ये मन बड़ा पर कमबख्त,कहां कोई इसकी, उड़ान थाह ले।।
बाँधता हूँ,अनुशासन की डोर से तो,ये और उत्पात करे।
छोड़ दूं यदि स्वतंत्र,जाने फिर तो क्या न ये, बवाल करे।।
प्यार से इसलिए अब,इसे बड़ा बहलाता- फुसलाता हूं।
इसे हर हाल,किसी बात पर,वजह-बेवजह उलझाता हूं।।
खाली अगर पड़ा रहा तो,ये मुझे गोल-गोल, चक्करघिन्नी सा घुमायेगा।
जाने कैसे-कैसे,फिर तो ये और भी,दुष्कर्म मुझसे करवाएगा।।
सो इसके रोने-चिल्लाने पर, मैं लापरवाह बना रहता हूं।
इसकी रग-रग में समाए नाटक को,बेहतर जो समझता हूं।।
धीरे-धीरे ही सही,अब मुझे इस पर कसने का नकेल,गुर आ रहा।
इसे भी अब मेरे साथ,कदमताल करने में, मजा आ रहा।।
यूँ तो है लड़ाई लंबी मगर,अब रोचक हो रही।
मुझे भी अब कुछ अपने जीतने की,उम्मीद हो रही।।
@नलिन#तारकेश
Saturday, 20 July 2019
मन हरा,रूह केसरिया
मन हरा,रूह केसरिया हो गया प्यार में तेरे।
यह दरवेश भी शहंशाह हो गया प्यार में तेरे।
हर तरफ दसों दिशा फूल ही फूल खिल रहे अब।
जीवन में मधुमास आ गया प्यार में तेरे।।
कोयल घोलती है वसंत राग कानों में मिश्री सा मेरे।
नाचता मन मयूर,लिए हुए आनंद आ गया प्यार में तेरे।।
दर्द होता है प्यार में यह सच तो है मगर।
दर्द का मगर मजा आ गया प्यार में तेरे।।
प्यार का तिलिस्म तो यूँ खुलता ही नहीं निभाए बगैर।
पहचानना ककहरा इसका,आ गया प्यार में तेरे।।
खुल जा सिम-सिम सा आसां है दिल का दरवाजा खोलना।
बाहर-भीतर जो सरोबार हो गया प्यार में तेरे।।
@नलिन#तारकेश
Friday, 19 July 2019
प्यार--------प्यार-----प्यार
प्यार,प्यार,प्यार बस प्यार की प्यार से
दरकार है।
उसे कहाँ भला चित्त्त,मन,बुद्धि से सरोकार है।।
डूब जाओ इस कदर कि खुद का भी ना आभास हो।
प्यार का यही तो बड़ा सरल सीधा कारोबार है।।
तू न तू अब रहा और मैं भी न अब मैं रहा।
हर तरफ अब तो बस प्यार का त्योहार है।।
खुली चाहे रख लो आंखें हैं या कि उन्हें बंद करो।
संसार दिखे या ना दिखे,बहे बस प्यार की रसधार है।।
कौन है शख्स ऐसा जरा बताओ तो हमें भी।
पाने को जो प्यार भला रहता नहीं बेकरार है।।
दूर कितना भी रहो,फर्क पड़ता नहीं है इससे जरा।
पूरा भीग जाता है तन-मन प्यार तो बस प्यार है।।
मनमीत दिखे तो देता है संदेश फौरन ये हमें। बड़ी सूक्ष्म चेतना भरा ये प्यार का रडार है।। खुमारी जो प्यार की चढ जाए दिल में किसी के।
हार कर भी सर्वस्व अपना पाता सबका ही प्यार है।।
@नलिन#उस्ताद
Thursday, 18 July 2019
189-गजल
जो फूल खिलें नागफनी में तो वो सुंदर दिखते हैं।
उनके अक्स आंखों में अपनी खूब भले लगते हैं।।
जैसे वो करता है रोज अपना रुख सूरज की ओर।
सूर्यमुखी सा हम भी सजदा वाहिद* को करते हैं।।*ईश्वर
बनाए या दे बिगाड़ सब कुछ है उसकी ही मर्जी।
अब हर काम तो बस हम अपना रब पर छोड़ते हैं ।।
इकराम* हुजूर के नाम का है गजब फैला हुआ।*ख्याति
अंताक्षरी तभी तो उसके नाम कि हम रोज खेलते हैं।।
प्यार में ये नया मुकाम आ गया "उस्ताद"
अब तो।
घुमाते हैं जहां भी नजर बस उनको ही देखते हैं।।
@नलिन#उस्ताद
Wednesday, 17 July 2019
प्यार में
जो बढ़ाते हैं कदम सोच-समझकर प्यार में। वो डूबे ही नहीं दरअसल गहरे प्यार में।।
बढ़ाने में पेंग होश रहता है कहां भला प्यार में।
दिमाग रखकर गिरवी पड़ता है चलना प्यार में।।
धार पर तलवार की चलने का जिगर चाहिए प्यार में।
यूँ कहना तो है बड़ा सरल की डूबा हूं मैं प्यार में।।
जैसे-जैसे डूबता है आपका वजूद किसी के प्यार में।
केंचुली सा उतर जाता है अपना अहम प्यार में।।
बदले में कोई देगा भला क्या किसी को कुछ प्यार में।
बाजार लगा सकता है कहाँ कीमत प्यार की प्यार में।।
कहना कुछ भी दिखाना है चिराग सूरज को प्यार में।
हो जाना चुपचाप फना*असल है कमाल प्यार में।*लीन हो जाना
@नलिन#उस्ताद
नेह की लगन
नेह की जब तुझसे लगन लग गई।
देह मेरी ये झूम के बाँवरी हो गई।।
प्रेम की बात संसार में अनूठी ही है।
आज ये बात मुझे भी ज्ञात हो गई।।
यूँ दिल की तबीयत तब से खिलने लगी।
अपने ही दिल में जब तुझसे भेंट हो गई।।
अभी तो राह में प्रीत की चलना है बहुत। मन-मंदिर में घंटी पर बजनी शुरू हो गई।।
खोला है जबसे दिल उसने मेरे लिए।
मन की मुराद मेरी हरेक पूरी हो गई।।
यूँ इश्क की आग दोनों तरफ बढ़ने लगी।
धीरे ही सही रूह भी मेरी गेरुआ हो गई।।
न कहना रहा कुछ न सुनना ही रहा अब।
यूँ इशारों-इशारों में लो बात सारी हो गई।।
@नलिन@तारकेश
Monday, 15 July 2019
188-गजल
मेरे सावन की आज पहली बरसात हो गई।
झरोखे खुले दर के और मुलाकात हो गई।।
उसकी रजा जो किस्मत मुझ पर खैरात हो गई।
कुदरत की अजीबोगरीब ये करामात हो गई।।
जागता हूँ जैसे सहर*हो आफताब**लिए। *सुबह **सूरज
अब दुनिया कहे तो कहे कि रात हो गई।। खुशबू सा तैरता हूं हवा में जिस्म से परे मैं।
कुदरत की अजीबोगरीब यह करामात हो गई।।
हर तरफ खिलने लगे हैं कांटों में भी फूल। सफर की नई यूँ मेरे बड़ी शुरुआत हो गई।।
बड़े इतराते फिरते हैं"उस्ताद"आज तो मेरे।
माशूके-हकीकी*से जो उनकी बात हो गई।।*ईश्वर
@नलिन#उस्ताद
Sunday, 14 July 2019
काशी की महिमा
काशी की महिमा
☆¤ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ¤☆
सुनाता हूँ,आपको आज मैं वेद- पुराणों की जुबानी।
काशी की अनंत,अपार-महिमामयी,दिव्य ये कहानी।।
पुरानी सबसे नगरी,विश्व की ये तो,बड़े ठाठ से है खड़ी।
धरोहर हमारी,परम पुनीत प्रत्येक,इसकी रज कण बड़ी।।
ब्रह्म पुराण में है चर्चित,इसके तो,अन्य अनेक नाम भी।
बनारस,अविमुक्त,आनंदकानन और महा- शमशान भी।।
वरुणा,असी नदियों के,मध्य बसी है,अपनी ये काशी।
तभी तो कुछ लोग,कहते आए इसे,नेह से वाराणसी।।
ये नगरी असल में है,अध्यात्म की गूढ, राजधानी।
यूँ ही नहीं,शंकर को अतिप्रिय,ये जैसे भवानी।।
त्रिशूल पर अटकी है,बम-बम भोले की ये नगरी।
श्वान पर बैठे भैरव हैं,इसके कठोर,कोतवाल प्रहरी।।
अब शिव की नगरी,भला कैसे न बहे,गंगा- त्रिपथगामिनी।
भोले के अधरों से,सुना राम-मंत्र,बने है यही, मोक्षप्रदायिनी।।
काशी के घाट,काशी की गलियाँ,सबकी ही है शान,परम निराली।
भाती हैं सबको,साड़ियाँ बनारसी,छटा है जिनकी बड़ी रूपाली।।
बनारसी पान,शाम,संगीत की बात तो है और भी निराली।
ये विद्या की नगरी,घाट-घाट जहाँ होती खूब जुबानी जुगाली।।
दश-अश्व-मेध घाट पर,होती है मां गंगा की आरती।
जहां से प्रसिद्ध हुई राजा हरिश्चंद्र की सत्य भारती*।।*वाणी
तुलसी,कबीर,रविदास जैसे संतों की रही है ये खोली*।*घर/कुटिया
भोजपुरी,हिन्दी,संस्कृत की बहती है यहाँ त्रिवेणी बोली।।
जाने कितनी असंख्य,अनमोल हैं यहाँ की गाथाएं पुरानी।
कितनी कहें,कैसे कहें,थोड़े से पल में भला अपनी जुबानी।।
@नलिन#तारकेश
Saturday, 13 July 2019
187-गजल
तूने जो सराहा तो नाम हो गया।
हर दिल अजीज कलाम हो गया।।
बेशकीमती हर अदा है तेरी।
यूं ही नहीं मैं नीलाम हो गया।।
मस्ती में झूमना हर घड़ी पागलों के जैसे।
निगाहों में कुछ की ये इल्जाम हो गया।।
आंखों से पिलाई तो तूने थोड़ी ही मगर।
मेरे लिए तो वो ही रूहानी जाम हो गया।। चिलमन हटाकर देखा है जबसे।
बहकना नशे में हर गाम*हो गया।।*कदम
लोगों का क्या वो तो छेड़ेंगे हरदम।
उनको तो यही एक काम हो गया।।
रपटीली हैं राहें बड़ी तेरी डगर की।
चलना कहाँ इन पर आम हो गया।।
इनायतों की चर्चा कब तलक हो।
उस्ताद तो तेरा गुलाम हो गया।।
@नलिन#उस्ताद
Friday, 12 July 2019
186-गजल
आ यारब तेरी जुल्फों की लटें खोल दूँ।
सारे जहां को एक इनाम अनमोल दूँ।।
ग़ज़ल ही लिखूँ और गजल ही सुनूँ।
तारीफ में तेरी बस गजल बोल दूँ।।
सोचता हूं दर्द तकलीफ से दिलाने निजात। तेरी सतरंगी चुनरी का रंग सारा ही घोल दूँ।।
पोर-पोर झूमाता है जो ता-उमर यार तेरा।
मौज मस्ती भरा वो नायाब जाम ढोल दूँ।।तेरी बांकी चितवन पर"उस्ताद"आज तो। हीरे,मोती,जवाहरात आ मैं सभी तोल दूं।।
@नलिन#उस्ताद
Thursday, 11 July 2019
185-गजल-कहाँ उस्ताद गुमनाम है
आंखों में तूने मेरी लिखा प्यार का पैगाम है। बहुत खूबसूरत ये हकीकत भरा कलाम है।। चाहता तो था मैं तुझे दिल से मगर कह ना पाया कभी।
चल अच्छा हुआ आज तूने खुद से किया ये काम है।।
बरसात में उमड़ते-घुमड़ते बादलों के साथ में आज।
जुल्फों से टपकती बूंद का दिया खुशगवार ईनाम है।।
सांवली सलोनी तेरी हर अदा है अनमोल बड़ी।
बहुत शुक्रिया तेरा जो मेरे लिए ढलकाया जाम है।।
भटकना कहाँ अब जिंदगी की जद्दोजहद में।
राम मेरे अब तो बस जिंदगी भर का आराम है।।
जलवों के किस्से सुने तो थे बहुत तेरे रहमों करम के।
अब हुई इनायत तो कहाँ ये "उस्ताद" गुमनाम है।।
@नलिन#उस्ताद
Wednesday, 10 July 2019
लगा है जबसे काजल
लगा है जबसे काजल,आंख में राधा का मेरी।
तभी से प्रीत उर में,कृष्ण की बसने लगी है।।
मिला है जब से,एकतारा हाथ में मीरा का मेरे।
नाम की धुन,बस सांसों में उसकी ही,बजने लगी है।।
चखा है जबसे बेर,जिह्वा ने शबरी का मेरी। छप्पन भोगों की लालसा,फीकी लगने लगी है।।
पढी है जब से,शिला की कहानी अहिल्या कि मैंने।
राम चरणों में निष्ठा,निरंतर अब उपजने लगी है।।
टपके हैं जब से आंसू,वक्षस्थल पर कुंती के मेरे।
दुःखों में भी दारूण,अनुभूतियां सुख की होने लगी है।।
@नलिन#तारकेश
Tuesday, 9 July 2019
लाज रखना बांके बिहारी
प्रीत की तेरी-मेरी जब से,शुरुआत नई लहकने लगी है।
बात ये अपने बीच की,सुगबुगाहट लोगों की बनने लगी है।।
दिलों पर मेहंदी अभी तो ये,ठीक से लगी भी नहीं है।
आंखों में मगर ये सयानों के,दूर से चमकने लगी है।।
हर गली,हर गांव में आजकल,बस यही तो है एक खुसफुसाहट।
हमें साथ देख तभी हर किसी की भौंह,धनु सी तनने लगी है।।
प्रीत के सरोवर की,जाने क्यों होती है डगर पथरीली।
शायद बढ़ने से तपन,और-और हीरे सी निखरने लगी है।।
आसान कहां है भरना गगरी,सुधा-रस से अपनी।
पर है असंभव नहीं,अगर ये जो लगन पक्की लगी है।।
साँवरे तेरे प्यार में,मेरी ये जो पुष्पांजलि पड़ रही।
लाज रखना बांके बिहारी,अब तुझे सौगंध मेरी लगी है।।
@नलिन#तारकेश
Monday, 8 July 2019
नलिन खिलने लगा
प्रीत को जब से मैं कुछ-कुछ समझने लगा। हर दिल जीतने का फन सहज बूझने लगा।।
जब भी मन से पूरे किसी को दुआ देने लगा। तब ये जाना कि मैं खुद की दुआ लेने लगा।। डगर पर प्रेम की कठिन जबसे चलने लगा।
हर कदम फूल सा हल्का में फिसलने लगा।। अंजाना कहां कोई भी यहां मुझे लगने लगा।
हर तरफ प्रतिबिंब बस मेरा ही दिखने लगा। यूँ धीरे-धीरे सही हो विदेह सा मैं झूमने लगा इत्र सा महकता हवा में हर ओर तैरने लगा।। मिला साथ उसका तो फिर मैं चहकने लगा। बाँहों में भर के उसे और भी थिरकने लगा।।
रोम-रोम मेरे सहस्त्र-दल नलिन खिलने लगा
वरदहस्त जबसे उसका सतत मिलने लगा।।
@नलिन#तारकेश
Sunday, 7 July 2019
प्यार में आओ
प्यार में आओ अपने मकरंद घोल दें।
इस जीवन को अपने मधुमास बोल दें।।
होंठ जो खोलें जब तो सरगम ही ढोल दें।
देखें जिस किसी को तो प्यार ही मोल दें।। एक दूसरे के हम हैं सदा ये भाव जोड़ दें। अपने बीच के परायेपन को आज तोड़ दें।।
जिंदगी को आओ अपनी नया मोड़ दें।
गिले शिकवे सारे हम अब तो छोड़ दें।।
वाणी और व्यवहार में एकरूपता को जोर दें। भीतर से हो शुद्ध भावना बस इस पर गौर दें।
@नलिन#तारकेश
Saturday, 6 July 2019
184-गजल
यूँ रोने को तो उम्र ये लंबी पड़ी है।
पर हंसने की आज जरूरत बड़ी है।।
रोना ही हो अगर तो शबे-कद्र* रोना।
*अल्लाह से क्षमा की रात
यूं ज़िंदगी की नियामत बस एक हंसी है।।
रोना जो चाहो तो दुनिया रूलाती रहेगी। खिलखिलाने पर मगर तेरे संग हँसती है।।
हँसते हुए होठों से तू सबसे मिलना।
तब देखना ये कैसी जादू की छड़ी है।।
जम के हँसो और सबको हँसाओ।
भला बांटने से हंसी कहां घटती है।।
चेहरे पर छाए खुद ब खुद नूरानी तेज।
होठों में जो मुस्कान तेरे बनी रहती है।।
दु:ख,दर्द,तकलीफ में करती है रौशन जहां।
सच कहे"उस्ताद"ये तो चिंतामणि* है।।
*चिंता को नष्ट करने वाली मणि।
@नलिन#उस्ताद
Friday, 5 July 2019
183-गजल
भले लोगों की कमी अगर होती।
बता दुनिया ये कहां बेहतर होती।।
साम-दाम होते सभी बाजारू घोटाले।
रूह भी कहो हमारी अगर पैकर*होती।।*जिस्म/रूप
ख्वाब में वो जो दिख जाएं तो हकीकत में।
दर्द,तकलीफ सभी अपनी छूमंतर होती।। तिनके-तिनके बटोर के गूंथे थे जो रिश्ते।
टूटते कहां हम में जो जरा भी कदर होती।।
भटकते कहां शहर छोड़ के इधर-उधर।
तेरे आने की हमको जो जरा खबर होती।।सोचता हूं रखता जो पूरी श्रद्धा-सबूरी।
इश्क की मेरे राधा सी लम्बी उमर होती।।
बना देता कांच को बेशकीमती हीरा।
उस्ताद की जो बेमिसाल नजर होती।।
@नलिन#उस्ताद
Thursday, 4 July 2019
182-गजल
बारिश में भीगना बड़ा प्यारा लगे।
साथ तेरा तब और भी प्यारा लगे।।
नन्हीं बूंदे अपनी पायल जो छनकाएं।
हर कदम दिले दहलीज तुम्हारा लगे।।
जोर की हो या फिर रिमझिम फुहार।
हर तरफ बस खूबसूरत नजारा लगे।।
गरजते हैं बादल चमकती है बिजली।
बिछुड़े दिलों को ये तो हंकारा* लगे।।*निमंत्रण
बरसात संग चलने लगे जो चाय-पकौड़ी।
ठहाकों का फिर तो मस्त चटकारा लगे।।
गर्मी उमस से था जो हलकान अभी।
संग बूंदों के वही झूमता आवारा लगे।।
इश्के हकीकी* की झमाझम बरसात में।*ईश्वरीय प्रेम
उस्ताद मोहन का जाना कहाँ गवारा लगे।।
@नलिन#उस्ताद
Wednesday, 3 July 2019
181-गजल
हुजूर ने दिए लाइलाज जख्म,हजार अवाम को।
चाटुकार मगर बरगलाते रहे खासो आम को।।
शर्म,हया सब बेच आए,जाने कहां कसम खुदा की।
बरगलाते हैं कसम खा,ये तो अब करीम* राम को।।*ईश्वर
संगदिल*समझेंगे कहां दर्द,तकलीफ किसी की।*पत्थर दिल
ये तो मानते हैं रब अपना लूट,खसोट,हराम को।।
कोयले पर मोहर है जहां गरीब,मजलूम के वास्ते।
लुटाते रहे अशर्फियां वहीं,ये अपने ऐशो आराम को।।
हवाओं का रुख भांप,चलते हैं हर सियासी चाल को।
कौम की परवाह किसे,करते हैं पसंद सत्ता
की तामझाम को।।
जमीर बेच जो हादसों पर करते हैं महज लीपापोती।
"उस्ताद"कुफ्र बरसेगा उन पर जिंदगी की शाम को।।
@नलिन#उस्ताद
180-गजल
बेफजूल के मसले जाने क्यों उछाल रहा।
हर जगह मीडिया दंगल को उबाल रहा।।
बर्बादी बढ़ गई पानी की इस हद तलक।
घर में हरेक अब इसका हो अकाल रहा।
कहीं गरीब को मयस्सर नहीं बमुश्किल दाल रोटी।
जलसों में ठसक से कोई कचरे में इसे डाल रहा।।
आंकड़ों की हकीकत पर उठें सवाल तो उठें।
यहां तो हुक्मरान अपने खुद बजा गाल रहा।।
जाहिली,नफरत सब कबूल है धर्म के नाम पर कुछ को।
पैंतरेबाजी से जिनकी कौम का हर आदमी बेहाल रहा।।
हर बाल जो नोच डालते थे कौम के गुमशुदा एक बाल पर।
मिला उन्हें जब उनका उस्ताद तो शांत सब बवाल रहा।।
@नलिन#उस्ताद
Tuesday, 2 July 2019
179-गजल
पहली बारिश है नहा तो लीजिए हुजूर।
जरा नखरे ताक पर रख आइए हुजूर।।
वो भी तो कम मगरूर नहीं है माशाल्लाह।
पहल थोड़ी आप ही निभा दीजिए हुजूर।।
बरसात में न भीगे तो भीगेंगे कब आप।
मौका ए दस्तूर यूं तो ना छोड़िए हुजूर।।
हंसी-ठिठोली चलती रहेगी ये तो उम्र भर।
नाराजगी इसलिए अब जरा छोड़िए हुजूर।।
मखमली सेज है हरी दूब की भीगी हुई। दूरियों को अब आप भी पाटिए हुजूर।।
शहर की बरसात में मिजाजे रंग है आपका।
भर के निगाह जरा सब पर बरसिए हुजूर।।
आवारा बादलों के मिजाज तो हैं जग जाहिर।
ये दिल्लगी आप न उस्ताद से कीजिए हुजूर।।
@नलिन#उस्ताद